Wednesday, December 11, 2024
- Advertisement -

वोटों के लिहाज से सूखती रही वोटों की नदी

  • 1989 के बाद संसदीय चुनावों में एक लाख वोट के लिए भी तरसे हैं कांग्रेसी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: जंग-ए-आजादी की नींव रखने वाला मेरठ पश्चिम उत्तर प्रदेश में राजनीति का केन्द्र माना जाता है। देश के पहले संसदीय चुनावों में यहां कांग्रेसी परचम शान से लहराया था। तब से लेकर आज तक यहां कांग्रेस का ग्राफ ऊपर नीचे होता रहा, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां पार्टी की गत बनी हुई है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस दुर्गति के पीछे संगठनात्मक कमजोरी है या फिर टांच खिंचाई अथवा गुटबाजी? अगर कहें कि तीनों वजह वाजिब हैं तो कुछ गलत न होगा।

1952 से लेकर यहां 1962 तक यहां कांग्रेस के जनरल शाहनवाज सांसद रहे। 1967 में इस सीट पर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महाराज सिंह भारती विजयी हुए। 1971 में फिर कांग्रेस का दौर आया और शाहनवाज खान फिर सांसद बन गए। 1977 के चुनावों में यहां जनता पार्टी के कैलाश प्रकाश सांसद बने। 1980 एवं 84 के चुनावों में कांग्रेस की मोहसिना किदवई सांसद बनी। अब इसके बाद 1989 में जब मेरठ सीट पर मोहसिना किदवई का कार्यकाल समाप्त हुआ उसके बाद यदि अवतार सिंह भड़ाना का अपवाद छोड़ दें तो तब से लेकर आज तक भी कांग्रेस यहां बैसाखियों पर है।

001

यदि 1989 के बाद के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो कई लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर पार्टी एक लाख वोट तक नहीं जुटा पा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह मानी जाती है कि कांग्रेस हाईकमान ने खुद इस सीट पर फोकस ही नहीं किया। 89 के चुनावों में यहां कांग्रेस प्रत्याशी को जनता दल के हरीश पाल ने हरा दिया। इसके बाद राम मन्दिर आंदोलन शुरु हुआ तो 1991, 1996 एवं 1998 में यहां भाजपा के अमरपाल सिंह ने लगातार जीत दर्ज की। हालांकि इसेक बाद 1999 में यहां कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना ने जीत दर्ज की।

हांलाकि यह ‘राजनीतिक मान्यता’ बन गई है कि मेरठ में अतवार सिंह भड़ाना ने चुनाव अपने दम पर जीता। 2004, 2009, 2014 एवं 2019 में यहां बसपा एवं भाजपा ने बाजी मारी। अब यहां फिर वही सवाल उठता है कि मेरठ में शुरु से मजबूत कांग्रेस को दीमक क्यों लगी। राजनीतिक पंडित इसका विश्लेषण करने जब बैठते हैं तो यही निष्कर्ष निकलता है कि मेरठ में संगठन की कमजोरी से लेकर गुटबाजी

और एक दूसरे की टांग खिंचाईके चलते पार्टी यहां अक्सर रुसवा हुई। कई पुराने कांग्रेसी वर्तमान स्थानीय संगठन पर भी अक्सर अंगुली उठाते हैं। हांलाकि लोकसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी हार्हकमान फिलहाल संगठनात्मक पहलु पर चुप है लेकिन मिशन 2024 को साधने के लिए कांग्रेस को अपने सबसे निचले स्तर के संगठन से लेकर जिला और शहर स्तर के संगठनों को मजबूत करना होगा।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है मुलेठी

अनूप मिश्रा प्राचीन काल से लेकर अब तक मुलहठी को...

जीवनशैली द्वारा पक्षाघात का बचाव

सीतेश कुमार द्विवेदी पक्षाघात होने पर व्यक्ति अपंग हो जाता...

कैस हो शीतकाल का आहार-विहार

वैद्य पं. श्याम स्वरूप जोशी एक जमाना था जब हमारे...

खुशी का दुश्मन

एक गांव में पति-पत्नी सुखी जीवन जी रहे थे।...
spot_imgspot_img