पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान-जय किसान’ जैसा लोकप्रिय नारा देश को दिया था उस नारे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने ‘जय विज्ञान’ और आगे चलकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जय अनुसंधान’ शब्द जोड़कर देश और दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश कि कि भारत केवल एक कृषि प्रधान व उच्च सैन्य क्षमता रखने वाला राष्ट्र ही नहीं, बल्कि अब यह विज्ञान व अनुसंधान संपन्न देश भी है। इसरो और डीआरडीओ सहित देश के अनेक वैज्ञानिक व अन्य विभिन्न अनुसंधान केंद्रों से सम्बंधित अनेक संस्थानों ने इसी विज्ञान व अनुसंधान के क्षेत्र में अनेक गौरव पूर्ण कार्य भी किये हैं। परन्तु अफसोस इस बात का है कि इसी समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी तर्कशीलता से दूर रहकर अंधविश्वास के चंगुल में बुरी तरह उलझा हुआ है। केवल अनपढ़ अशिक्षित या गरीब ही नहीं बल्कि स्वयं को पढ़े लिखे व शिक्षित बताने वाले यहां तक कि नेता व अधिकारी तक इसी अंधविश्वास का शिकार हैं। और इन्हीं अंधविश्वासी लोगों के बल पर ही पूरे देश में लाखों निठल्ले लोग तरह तरह के झाड़ फूंक ज्योतिष भविष्य राशिफल आदि अनेक तरीकों से अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं।
बिल्ली रास्ता काटे तो रुक जाओ,‘बुरी नजर’ से बचने के लिए नींबू और हरी मिर्च लटकाओ, किसी की शव यात्रा में शामिल होने के बाद स्नान करो, सूर्यास्त के बाद अपने नाखून न काटो,सूर्यास्त के समय झाड़ू न दें, गाय के गोबर से दीवार व फर्श पर लेप करें, घर से बाहर निकलने से पहले दही और चीनी या गुड़ खायें, फलां फलां दिन अपने बाल न धोएं, ग्रहण के समय बाहर न निकलें, फलां दिन यात्रा शुभ तो फलां फलां दिन अशुभ, काली गाय काले कुत्ते से जुड़ी अनेक अतार्किक बातें और आजकल लड़कियों का पैरों में काला धागा बाँधने जैसा पाखण्ड हमारे समाज में अपनी जड़ें बहुत गहरी कर चुका है।
और जब इसी तरह के अंधविश्वास इंसान के मस्तिष्क में विश्वास के रूप में स्थापित हो जाते हैं फिर तमाम तरह की अनहोनी घटनायें भी सामने आती हैं। यहां तक की हमारे देश में अनेकानेक हादसे ऐसे भी हो चुके हैं कि इन्हीं चक्करों में पड़कर कहीं किसी पूरे परिवार ने आत्म हत्या कर डाली, कहीं किसी ने अपने बच्चे की बलि दे दी तो कहीं अपने उद्धार के लिए दूसरे के बच्चे की बलि ले ली।
पिछले दिनों नेताओं व उच्चाधिकारियों के हवाले से राजस्थान के जयपुर जेल में चल रहा एक अंधविश्वासपूर्ण ‘तमाशा’ सामने आया। पता यह चला कि प्रदेश के अनेक नेता व अधिकारी जेल सुप्रीटेंडेंट से निवेदन कर जेल का खाना या तो जेल परिसर में ही बैठकर खाते हैं या कई लोग जिन्हें जेल में बैठकर खाते शर्म आती है वे जेल की बनी दाल रोटी सब्जी पैक कराकर घर ले जाकर खाते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं, क्योंकि पंडित या ज्योतिषी ने उन्हें बताया है कि जेल की रोटी पहले से ही खा लेने से उनका ‘जेल योग’ टल जाएगा।
जरा सोचिये, ये जेल से बचने के उपाय हैं या अच्छा आचरण करना आपराधिक व अनैतिक गतिविधियों से दूर रहना जेल जाने से बचने का वास्तविक एवं स्थाई उपाय है? पानीपत का एक पुलिस अधिकारी एक चोर की तलाश में मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित पंडोखर में किसी हनुमान भक्त बाबा के पास जा पहुंचा और हनुमान जी से चोर को पकड़वाने में सहायता की गुहार करने लगा। अब पुलिस भी अपने प्रशिक्षित माध्यमों से नहीं, बल्कि बाबा, पंडित, ज्योतिष व भगवान के भरोसे अपराधियों की तलाश पर ज्यादा भरोसा रखने लगी है।
इसी अंधविश्वास का पालन पोषण व इसे प्रचारित करने वाले लाखों अनपढ़ व निठल्ले किस्म के लोग समाज में दहशत फैलाकर तथाकथित प्रबुद्धजनों को भी अंधविश्वास के अपने जाल में फंसा लेते हैं और अपनी रोजी रोटी चलाते हैं। बसों, रेल गाड़ियों के अतिरिक्त अनेक सार्वजनिक स्थलों पर बंगाली बाबा,तांत्रिक,काला जादू, इंद्रजाल आदि कई तरह के भ्रमित करने वाले पोस्टर व पंप्लेट दीवारों पर चिपके दिखाई दे जाते हैं। इन सभी में भ्रामक प्रचार किए जाते हैं। भले ही इन भविष्य वक्ताओं को स्वयं अपने भविष्य के बारे में कुछ पता नहीं होता। हमारे देश के विभिन्न राज्यों में भूत प्रेत, चुड़ैल जैसी प्रथाओं की जड़ें भी इसी अंधविश्वास में छुपी हुई हैं।
सवाल यह है कि क्या ‘जय जवान-जय किसान’ के नारों में जय विज्ञान व जय अनुसंधान शब्द जोड़ देने मात्र से भारत वैज्ञानिक सोच रखने वाला देश कहलाने लगेगा? या इसके लिए वैज्ञानिक सोच को आत्मसात करना इसका अनुसरण करना व इसी के साथ अंधविश्वासों से मुक्ति पाना भी बेहद जरूरी है?
जब हम विकसित राष्ट्रों को इस तरह के अंधविश्वासों व पाखंडों से मुक्त होकर तरक़्की करते देखते हैं उस समय तो हमें भी अंधविश्वासों से मुक्ति पाने की जरुरत तो जरूर महसूस होती है, परंतु जब हमारे देश का रक्षा मंत्री ही किसी नए लड़ाकू विमान के सामने बैठकर पूजा पाठ करता है, उस पर नींबू मिर्च लटकाता है और उस पर सिंदूर से कुछ विशेष निशान अंकित करता है तो यह संदेह और मजबूत हो जाता है कि जब सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोग, नेता ,अधिकारी ही स्वयं को अंधविश्वासों व पाखंडों से मुक्त नहीं कर पा रहे फिर आखिर देश की आम विशेषकर अज्ञानी जनता समाज में गहराती अंधविश्वास की इन जड़ों से कैसे मुक्त हो सकती है?