Thursday, May 15, 2025
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दबकर रह जाती है असंगठित क्षेत्र के 28 करोड़ श्रमिकों की आवाज

  • मजदूर दिवस पर विशेष: विभिन्न श्रमिक संगठन और स्वयं सेवी संस्थाएं इस दिशा में बहुत कुछ करने की महसूस करती जरूरत

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है, इस दिन विभिन्न संगठनों के स्तर से श्रमिकों के हितों की बात करके इतिश्री कर ली जाती है। करीब 42 करोड़ असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक ऐसे भी हैं, जिनकी पुरजोर आवाज तक नहीं उठ सकी है।

हालांकि इनमें से 28 करोड़ के लिए ई-श्रम कार्ड बनाने का काम कर कुछ योजनाओं को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है, लेकिन विभिन्न श्रमिक संगठन और स्वयं सेवी संस्थाएं इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत महसूस करती हैं।

चुनावी घोषणा पत्र में मजदूरों का जिक्र तक नहीं

पूरे भारत वर्ष में जितनी संख्या किसान भाइयों की है, उतनी ही संख्या मजदूरों की भी है, लेकिन कोई भी सरकार मजदूरों की समस्याओं से न तो परिचित होना चाहती है, और न ही उनका समाधान करना चाहती है। इतना ही नहीं, विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र में मजदूरों का जिक्र तक नहीं किया जाता। जबकि संगठित और असंगठित क्षेत्र में मजदूरों की संख्या सरकारी आंकड़ों में ही 42 करोड़ से अधिक है,

लेकिन देश का मजदूर पूरी तरह से पीड़ित एवं शोषित है। जिसकी मुख्य वजह मजदूरों का संगठित न होना है। सफाई मजदूरों की यूनियन अलग काम करती हैं तो अन्य मजदूरों की यूनियन भी अलग-अलग संघों के रूप में काम करती हैं। यदि देश के सभी मजदूर एक मंच पर एक साथ इकट्ठा होकर बैठ जाएं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देश का मजदूर सरकार भी बदल सकता है। सरकारों में मजदूरों की भागीदारी भी हो सकती है। -विनोद बेचैन, अखिल भारतीय सफाई मजदूर कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री

मजदूरों से आज भी कराया जाता है 12 घंटे कार्य

आशा बहनें, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा भोजन माताओं को न्यूनतम वेतन को लेकर संघर्ष करना पड़ता है। उनकी मांग है कि पूरे भारत में स्वास्थ्य एवं शिक्षा बिल्कुल निशुल्क एवं एक समान लागू होनी चाहिए। बहुत जगह मजदूरों से आज भी 12 घंटे कार्य कराया जाता है। उसे तुरंत बंद कराते हुए संख्ती से आठ घंटे का कानून लागू किया जाना चाहिए। इसका उल्लंघन करने वालों और काम करा कर मजदूरी नहीं देने वालों के साथ कार्रवाई के लिए सख्त कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।

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श्रमिकों के लिए काम करने वाली अपनी संस्था के माध्यम से जुटाए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए ज्ञानेन्द्र गौतम का कहना है कि सभी पंजीकरण कार्ड धारकों को आयुष्मान कार्ड से जोड़ा जाना उनके परिवारों के स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बहुत जरूरी है। अभी भी बहुत से श्रमिकों के आयुष्मान कार्ड तक नहीं बने हैं। ई-श्रम कार्ड धारकों को भी योजनाओं का लाभ दिया जाना जरूरी है। स्थिति यह है कि ई-श्रम कार्डधारकों को अभी तक कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जिसके कारण 28 करोड़ कार्डधारक लोग अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। -ज्ञानेन्द्र गौतम, सामाजिक सुरक्षा फेडरेशन आॅफ इंडिया के अध्यक्ष

200-250 रुपये से अधिक नहीं मिल पाती दिहाड़ी

सफाई मजदूरों को ठेकेदारी के जरिये लेकर उन्हें बहुत कम मजदूरी दिए जाने की बात सर्वविदित है। इस क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए गंभीरता से काम किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा आज भी बहुत से स्थानों और कार्यक्षेत्र में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए 200-250 रुपये से अधिक दिहाड़ी नहीं मिल पाती। इसके लिए हालांकि न्यूनतम मजदूरी का कानून है,

लेकिन इसे लागू कराने की दिशा में आज तक गंभीरता से कदम नहीं उठाए जा सके हैं। ऐसे श्रमिक काम की तलाश में इधर से उधर भटकते रहते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि इनके लिए साल में 10 माह कार्य की गारंटी हो। इसी प्रकार भट्टे पर र्इंट पथाई करने वाले श्रमिक ठेकेदार के चंगुल में फंसकर कई जबह बंधुआ मजदूरों जैसा जीवन जीने पर मजबूर हो जाते हैं। फैक्ट्रियों में श्रमिकों की सुरक्षा के लिए हालांकि नियम और कानून बनाए गए, लेकिन इनका सख्ती से पालन नहीं कराया जा सका है। -सुभाष चावरियां, सफाई मजदूर कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष

इसलिए मनाया जाता है मजदूर दिवस

मजदूर दिवस मनाने के पीछे की वजह अमेरिका में एक मई 1886 से शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन है। एक मई को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत अमेरिका में तब हुई जब हजारों मजदूरों ने अपने काम की स्थितियां बेहतर करने के लिए हड़ताल शुरू की थी। वे चाहते थे कि उनके काम करने का समय एक दिन में 15 घंटे से घटाकर आठ घंटे किया जाए।

इसके लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा और कई श्रमिकों को अपने प्राणों की आहुति तक देनी पड़ी। इसका परिणाम यह सामने आया कि अंतत: उन्हें सफलता मिली। तब से एक मई का दिन मजदूर क्रांति की सफलता का ही नहीं, दुनिया भर में मजदूरों के हितों और उनके सम्मान के लिए मनाया जाने लगा। हालांकि, अमेरिका में राष्ट्रीय मजदूर दिवस सितंबर महीने के पहले सोमवार को मनाया जाता है।

भारत में श्रमिक दिवस को हुए 100 वर्ष पूरे

श्रमिक दिवस दुनिया के लगभग 80 देशों में मनाया जाता है। भारत में हालांकि सबसे पहले चेन्नई में लेबर किसान पार्टी आॅफ हिन्दुस्तान एक मई 1923 में मजदूर दिवस मनाया था। तब भारत में आजादी से पहले लाल झंडे का पहली बार उपयोग किया गया था। तब से इसे भारत में भी हर वर्ष एक मई को मनाया जाता है। सोमवार को भारत में मजदूर दिवस मनाने के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं।

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