Thursday, March 28, 2024
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सरकारों पर ब्रेक ही नहीं होती बल्कि कुरीतियों का विरोध भी करती हैं खाप पंचायतें

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  • बाल विवाह, दहेज प्रथा का विरोध, कन्या भ्रूण हत्या, मृत्यु भोज आदि के विरोध में होती रहीं हैं पंचायत
  • जिस क्षेत्र में खाप पंचायतें प्रभावी वहीं सामाजिक कुरीतियां कम

नरेशपाल सिंह तोमर |

बड़ौत: खाप पंचायतों का नाम आते ही अभिजात्य वर्ग के मन में कुछ ऐसे होना लगता है कि वह खाप पंचायतों को क्रूर मान बैठते हैं। उस सभ्य समाज के शरीर में झुरझुरी सी उठ जाती होगी, जो इन्हें कसाइयों की जमात समझते हैं। यही वह लोग हैं, जिन्होंने खाप पंचायतों के कार्यों को देखे बिना ही उन पर पाबंदी लगाने तक की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी लगाई थी।

सम्मान के लिए हत्या को लेकर देश में खाप पंचायतों को काफी ऐसे लोगों ने बदनाम भी किया, जो शहरी अभिजात्य वर्ग से थे और यहां की संस्कृति से वाकिफ नहीं थे। बल्कि यूं कहें कि वह पाश्चात्य संस्कृति की पैदाइश हैं। उनके कारण देश के सर्वोच्च न्यायालय ने खाप पंचायतों को तलब भी किया था।

खाप पंचायतों के सामाजिक दायित्व से ऐसे लोग अनजान भी रहे हैं। इन पंचायतों ने तो सदैव बालिका शिक्षा, दहेज रहित व बिना खर्च की शादियां कराने, ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देने, शिक्षा के मंदिरों को चंदे के रुपयों से पहाड़ से भवन बनाने में थोड़ा योगदान नहीं है। यानि यह कहा जाए कि खाप पंचायत हर उस बुराई का विरोध करती दिखेंगी, जो यहां की संस्कृति से मेल नहीं खाती हैं।

यही कारण रहा है कि खाप पंचायतों पर पाबंदी का षड़यंत्र कई बार हो चुका है। लेकिन इससे खाप पंचायत चौधरी डिग नहीं रहे हैं। हालांकि यह जरूर है कि खाप चौधरियों की सामाजिक शक्तियां जरूर कमजोर हुई हैं। यह भी उन खापों में ही है, जहां खाप चौधरी सामाजिक बुराइयों के प्रति सजग नहीं है।

खाप पंचायतों ने समाज में पैदा हुई आपसी रंजिशों को मिटाने और दाम्पत्य जीवन में आई दरारों को खत्म करने, नशाखोरी को रोकने, ग्रामीण क्षेत्रों में सौहार्द कायम करने के लिए दिशा-निर्देश देने, कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अभियान चलाने, एक ही गोत्र में शादी करने को रोकने, आपसी मुकदमों में समझौता कराने आदि कार्य किए हैं और फिलहाल भी कराए जा रहे हैं।

हरियाणा में दहिया खाप की ओर से वर्ष 1911 में सर्वखाप पंचायत का आयोजन कर बालिका शिक्षा पर जो दिया था। उसके बाद सौरम गांव में बालियान खाप की ओर से 1950 में सर्वखाप पंचायत कर दहेज विहीन व बिना खर्च के शादी करने के प्रस्ताव रखे थे। बड़ौत के निकट बरवाला में भी इसी तरह से नारी उत्पीड़न को रोकने, शिक्षा के प्रसार के लिए गांवों में शिक्षा के मंदिरों की स्थापना करने, दहेज व बिना आडंबर के शादी करने, समाज सुधार के लिए समय-समय पर बड़े-बुजुर्गों की बात मानने समेत आधा दर्जन से अधिक फैसले लिए थे।

तब इन निर्णयों का खूब सख्ती से पालन किया गया। लेकिन समय के साथ यह निर्णय कमजोर पड़ते गए। हालांकि यह फैसले कुछ जगह अभी भी लागू है। खाप पंचायतों की जरूरत अक्सर तभी होती है जबकि समाज में अधिक कुरीतियां घर गई हों। या फिर उस समय खापों की पंचायत होती हैं, जबकि सरकार यहां की संस्कृति पर चोट करती हो। चार दशक से तो खाप पंचायतें यहां की सरकारों का विरोध करती रहीं हैं।

इनमें खासकर बिजली की बढ़ौतरी के मुद्दे पर बालियान खाप की पंचायत ने चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में कई आंदोलन किए। उनके रहते हुए पंचाययों ने काफी जोर पकड़ा था। उसके बाद अब केन्द्र सरकार की ओर से तीन नए कृषि कानूनों के विरोध के लिए खाप पंचायतें सजग हो रही हैं।

अभी तक तो खाप पंचायतें सरकार की नीतियों को गलत बताते हुए उन पर ब्रेक लगाने का काम करती हैं। तीनों कृषि कानूनों के विरोध में जिस तरह से खाप पंचायतों की सजगता हुई है। इससे लगता है कि सरकार और खाप पंचायतों के बीच मुद्दे शीघ्रता से सुलझने के आसार नहीं हैं।

बड़ौत: देशखाप चौधरी सुरेन्द्र सिंह ने खापों में बताया बड़ी शक्ति

खाप पंचायतों के कार्य को लेकर देशखाप चौधरी सुरेन्द्र सिंह कहते हैं कि खाप पंचायतों की ओर से कोई भी गलत निर्णय नहीं दिए जाते हैं। शादी विवाह में दहेज की मनाही, बालिका शिक्षा, कन्या भ्रूण हत्या, आपसी रंजिश आदि को लेकर खाप सजग होती हैं। काफी समय से खाप पंचायतें समाज को जोड़ने का काम करती रही हैं। इनमें बड़ी शक्ति होती है। जब एकजुट होकर निर्णय लिए जाते हैं तो तब खापों में असीम शक्तियां पैदा हो जाती हैं।

बड़ौत: देहातों में बने शिक्षा मंदिर खाप पंचायतों की ही देन

जब देश आजाद नहीं था और देश के आजाद होने के बाद जब सरकारों के पास शिक्षा के मंदिर खोलने के लिए धन नहीं था। तब खाप पंचायतों की ओर से चंदा एकत्र कर शिक्षा के मंदिर बनाए गए थे। बड़ौत का जाट कालेज का निर्माण 1919 के आसपास में हो गया था। ऐसा ही मुजफ्फर नगर का जाट कालेज भी इसी समय के दायरे में शुरु हो गया था। शामली का किसान कालेज आजादी के बाद शुरु किया गया।

इनके अलावा किसानों के हर गांवों में इंटर कालेजों की नींव भी आजादी और आजादी के दो-चार साल बाद पड़ीं थीं। किरठल का प्रसिद्ध आर्य महाविद्यालय 1904 में शुरु हो गया था। यानि कि खाप पंचायतों ने देश और समाज को काफी दिया है। उसके बाद भी सरकारों की इनके प्रति टेढ़ी नजर रही हैं। यह इसलिए कि सरकार की समाज विरोध नीतियों का खाप पंचायतों या फिर सर्वखाप पंचायतों द्वारा पुरजोर विरोध होता रहा है।

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