Thursday, April 25, 2024
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आज भारत के प्रथम राष्ट्र​पति की पुण्यतिथि, देश कर रहा नमन

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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट में आपका हार्दिक स्वागत और ​अभिनंदन है। आज मंगलवार को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पुण्यतिथि है। आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के सिवान ज़िले के जीरादेई में हुआ था और मृत्यु 28 फरवरी सन् 1963 में हुई थी। इनकी पिता का नाम महादेव सहाय था।

राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई।

उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 मेें कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व भी निभाया था। सम्मान से उन्हें प्रायः ‘राजेन्द्र बाबू’ कहकर पुकारा जाता है।

राष्ट्रपति की शिक्षा

  • डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने वर्ष 1902 में प्रसिद्ध कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। वर्ष 1915 में प्रसाद ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के विधि विभाग से मास्टर इन लॉ की परीक्षा उत्तीर्ण की और स्वर्ण पदक जीता था।
  • वर्ष 1916 में उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में अपना कानूनी कॅरियर शुरू किया व 1937 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की।

गांधीजी के साथ संबंध

  • जब गांधीजी स्थानीय किसानों की शिकायतों को दूर करने के लिये बिहार के चंपारण ज़िले में एक तथ्यान्वेषी मिशन पर थे, तब उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने का आह्वान किया।
  • चंपारण सत्याग्रह के दौरान वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए इसके उपरांत उनका संपूर्ण जीवनदर्शन ही बदल गया।
  • वर्ष 1918 के रॉलेट एक्ट और वर्ष 1919 के जलियांँवाला बाग हत्याकांड ने राजेंद्र प्रसाद को गांधीजी के और करीब ला दिया।

 पत्नी राजवंशी देवी का निधन

सितम्बर 1962 में अवकाश ग्रहण करते ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। मृत्यु के एक महीने पहले अपने पति को सम्बोधित पत्र में राजवंशी देवी ने लिखा था – “मुझे लगता है मेरा अन्त निकट है, कुछ करने की शक्ति का अन्त, सम्पूर्ण अस्तित्व का अन्त।” राम! राम!! शब्दों के उच्चारण के साथ उनका अन्त 28 फरवरी 1963 को पटना के सदाक़त आश्रम में हुआ।

स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता

डॉ. राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित थे। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं महात्मा गांधी ने उनको अपने सहयोगी के तौर पर चुना था। इसी के साथ गांधी जी ने उन पर साबरमती आश्रम की तर्ज पर सदाकत आश्रम की एक नई प्रयोगशाला का दायित्व सौंपा था। ब्रिटिश प्रशासन ने राजेंद्र प्रसाद को नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल में डालकर कई तरह की यातनाएं दी थीं।

सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान

बता दें कि डॉ राजेंद्र प्रसाद एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जो लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बनें। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए साल 1962 में भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान के तौर पर भारत रत्न से नवाजा गया। इसके बाद उन्होंने अपने राजनैतिक सफर पर विराम लगाते हुए सन्यास ले लिया। बता दें कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपना आखिरी समय पटना के एक आश्रम में बिताया था। बीमारी के चलते 28 फरवरी 1963 को उनका निधन हो गया।

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