Saturday, July 27, 2024
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धूप को नीचे उतारने की कोशिश!

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Ravivani 29


सुधांशु गुप्त |

श्रद्धा श्रीवास्तव का पहला कहानी संग्रह ‘धूप नीचे नहीं उतरती’ (प्रकाशक, पुस्तकनामा) हाल ही में पढ़ा। बेशक उनकी कुछ कहानियां पहले पढ़ चुका था। लेकिन संग्रह की 13 कहानियां एक साथ पढ़ने के बाद कुछ दिलचस्प बातें साफतौर पर दिखाई दीं। श्रद्धा की इन कहानियों में गाय है, भैंस है, बकरी है, चूहा है, याक है, बिल्ली है और ये अनायास नहीं हैं बल्कि ये कहानी के केंद्र में हैं। और क्या है श्रद्धा की कहानियों में? श्रमिक हैं, जो अपना मूल स्थान छोड़कर दूसरी जगह नौकरी कर रहे हैं, वहां के दुख दर्द हैं, ‘नक्सलवादी’ हैं, आदिवासी हैं, इनके दुख तकलीफ हैं। और हैं लोककथाएं। मुझे श्रद्धा की कहानियां पढ़कर घोर आश्चर्य हुआ, खासकर इसलिए क्योंकि आज के समय में जो लिखा जा रहा है, उसमें कृत्रिमता, नाटकीयता, मार्मिकता, प्रेम का फूहड़ प्रदर्शन और नकली भव्यता अधिक दिखाई पड़ती है, लेकिन श्रद्धा की कहानियां बेहद सहज हैं और लेखकीय प्रतिबद्धता का संकेत देती हैं। उनकी प्राथमिकता है कि ‘पारिस्थितिक संतुलन’ बनाए रखने के लिए पशुओं को, यहां तक की चूहों को भी बचाया जाना चाहिए। इनके प्रति श्रद्धा का प्रेम कहानी में बिना किसी बनावट के आता है।

‘मानुस हों तो वही’, यह एक व्यक्ति रशीद की कहानी है, जिसके पास गाय-भैंसें और बकरियां हैं। वह अपने पशुओं को प्यार से रखता है और बच्चों की तरह उनकी देखभाल करता है। लेकिन उसके बच्चे नहीं चाहते कि ये पशु उनके घर में रहें। वे इन्हें बेच देना चाहते हैं। लेकिन रशीद बच्चों को जवाब देता है-अपने जीते जी तो कभी नहीं बेचूंगा। मवेशियों के प्रति प्रेम की यह शानदार कहानी है।

इसी तरह, ‘फलसफा’ विनायक नामक चूहे की कहानी है जो सपरिवार गांव से मुंबई आ गया है या उसे आना पड़ा है। इस कहानी में भी श्रद्धा एक तरफ महानगर की चकाचौंध और ‘चूहा दौड़’ की बात करती है तो दूसरी तरफ गाँवों की बदलती दुनिया-हरित क्रांति, फलां क्रांति और उत्पादन बढ़ाने के नाम पर डाले जाने वाले पेस्टीसाइड का भी जिक्र करते हुए कहती हैं कि इसने चूहों का गांवों में रहना मुहाल कर दिया है। इसलिए चूहे गांव छोड़कर मुंबई आ गए। गांव की जमीन को बचाना और पेस्टीसाइड से फसलों और अन्य जीवों को बचाना श्रद्धा की प्राथमिकता है।

कहानियां पढ़कर एक और बात लगती है कि श्रद्धा कहानियों के लिए कहीं नहीं जातीं बल्कि जहां जाती हैं, वहीं से कहानियां खोज लेती हैं। ‘उष्मा’ कहानी में लेह यात्रा के दौरान नेपाल से यहां आए दिनेश से नैरेटर की मुलाकात होती है। दिनेश के जरिये वह याक से मिलती है। यानी एकदम नई दुनिया देखती है। वह याक के साथ और दिनेश भाई के साथ लगातार खो रही रिश्तों में उष्मा तलाशती हैं। कहानियों के विषयों के चयन में कहीं भी, कुछ भी पूर्वनियोजित नहीं मिलेगा। ‘धूप नीचे नहीं उतरती’ ऐसे श्रमिकों की कहानी है, जो अपने घर और गांव से दूर कोको तोड़ने के लिए जाते हैं। कोको से चॉकलेट बनती है। जिन ऊंचे ऊंचे वृक्षों पर चढ़कर मजदूर कोको तोड़ते हैं, वहां धूप नीचे नहीं उतरती। श्रद्धा मजदूरों के दुखों का भी चित्रण करती है। कहानी के अंत में दलदल में गिरने से तीन श्रमिक मर जाते हैं। श्रद्धा अपनी कहानियों में झूठी नैतिकता और खोखले आदर्श आरोपित नहीं करतीं। यही वजह है कि उनकी कहानियां ‘रियल’ दिखाई देती हैं।
श्रद्धा की कहानियों में अव्वल तो प्रेम आता नहीं, और यदि आता भी है पूरे परिप्रेक्ष्य के साथ। पोयली और सुमेरू के यह प्रेम वास्तव में बस्तर में नक्सलवाद पर है। एक दिन गाँव में शोर मच जाता है कि जुडूम आ रहा है। जुडूम एक सरकारी योजना है जिसके तहत युवाओं नक्सवादियों से लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा है। कहानी में गांव की चिंताएं भी हैं। एक जगह श्रद्धा लिखती हैं-लोग यह चिंता भी साझा करते हैं कि गांव में कैसे र्इंट का भट्टा उग आया और उससे उनकी भूमि तवा के समान तपने लगी है, धरती का बढ़ता ताप उनकी नदी को सुखा देगा। आज भी वो जीने का व्यापार नहीं करना चाहते पर व्यापार उनके यहां घुस आया है अनचाहे ही।

बड़ी से बड़ी समस्या पर श्रद्धा सहजता से बात कह देती हैं, यह उनकी कहानी को खास बनाता है। बस्तर के प्रेमी-प्रेमिका की कहानी कहते हुए भी वह यह बात देख पाती हैं कि बाजार और व्यापार कैसे घरों में घुस आया है। प्रेम कहानी की शुरूआत में सुमेरू ने पोयली के जूड़े में सरहुल का फूल खोंसा था। सुमेरु नक्सलवादी कहकर मारा जा चुका है। लेकिन पोयली को हर पल लगता है कि सुमेरु उसके खोपे (जूड़े) के लिए सरहुल का फूल लेकर जरूर आएगा, वह लौटेगा, जल्द ही…। यही कहानी का अंत है। क्या इसके अलावा भी कहानी में कुछ और चाहिए! ऐसी ही एक और कहानी है ‘दावानल’। यह बस्तर के आदिवासियों का चित्रण करती है। इस कहानी का नायक बस्तर में रहने वाला एक आदिवासी है-महावीर। श्रद्धा ने महावीर का बेहतरीन चित्रण किया है। कहानी की नायिका कहीं महावीर के प्रति आकर्षित हो रही है। अंत में नायिका को पता चलता है कि महावीर की मृत्यु हो गई है-या उसे मार दिया गया। श्रद्धा अपनी कहानियों में रोने-पीटने से बचती हैं और यह अच्छी बात है।

स्त्री होने के अंधेरे भी श्रद्धा की कहानियों में बहुत धीरे से आते हैं। ‘रेत बवंडर’ कहानी में आशिया फिरोज से इश्क करती है। लेकिन उसके अपने घर में महिलाओं की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। एक दिन आशिया अपनी दादी से पूछती है, ग्यारह बच्चे जनने के बाद कैसा लगता है? दादी ने आह भरते हुए कहा-जवानी के 15 साल किसी न किसी बच्चे को दूध पिलाती रही। एक के बाद एक। माँ ही बनी रही। आशिया को समझ आ गया कि इस घर में औरत की क्या हैसियत है। इस हैसियत के लिए वह तैयार नहीं है। वह अपनी हैसियत बनाने के लिए, अपने सपने पूरे करने के लिए और खुले आकाश को छूने के लिए घर से भाग जाती है। वह जहां पहुंचती है वहां रेत ही रेत है-रेत का बवंडर। लेकिन उसने उस दुनिया से निकलने का फैसला तो किया जो उसके पैरों में जंजीर डालना चाहती है। अभी वह रास्ते में है लेकिन रास्ता ही मंजिल का आभास दे रहा है। ‘फेयरवल के बाद’ कहानी में भी स्कूल से विदा हो रही टीचर वत्सला के भीतर के अंधेरे अंडरटोन में बाहर आते दिखाई देते हैं। वह फिर से अपने इन अंधेरों को दूर करने की योजना बनाती है और चाहती है कि अब वह जीवन अपने अनुसार गुजारे और आसमान उससे मिले।

श्रद्धा की कहानियों की जमीन ऐसी नहीं है, जिसके दोनों और आपको गुलमोहर के पेड़ लगे मिलें, बल्कि यह ऐसी जमीन है, जहां प्रकृति को बचाने, श्रमिकों के हक की बात करने और पशुओं के साथ पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने की आवाजें सुनाई देती हैं। धूप को नीचे उतारने के प्रयास दिखाई देते हैं और यही बात श्रद्धा की कहानियों को मौलिकता प्रदान करती है।


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