अक्सर एक बात कही जाती है, आंसू हमेशा सच्चे होते हैं। बेशक ये सही भी है, पर हर जगह ये सही साबित नहीं होते हैं। आंसू के भी कई प्रकार होते हैं, जिसमें से सबसे खतरनाक टाइप की बात करूं तो सहानुभूति प्राप्त करने के लिए बहाया गया आंसू। इस आंसू में अच्छे-अच्छे लोगों को भी भ्रम हो सकता है और इस आंसू को थोड़ा और यथार्थ दिखाने के लिए दो चार कसमेें और साथ मे सीना पीट – पीट कर बहाया जाता है। थोड़ा बहुत नाटक भी होता है। फिर आता है एक दूसरे प्रकार का आंसू। इसमे आंसू सच्चे होते हैं, सारी चीजें ठीक होती हैं, पर ये तब आते हैं, जब खुद को तकलीफ हो। इस आंसुओं की सबसे खास बात होती है ये सिर्फ खुद की तकलीफ पर बहते हैं, पूरी दुनिया मे क्या चल रहा है, आस-पास, परिवार मे कितनी भी तकलीफें चल रही हैं, कोई मतलब नहीं होता है। सिर्फ खुद की दिक्कतों से लेना देना होता है, खुद के आंसू ही इनके लिए सर्वोपरि होते हैं। पर इन सबमें कुछ ऐसे भी आंसू होते हैं, जो खुद की तकलीफों मे कम पर दूसरों की तकलीफों में ज्यादा आ जाते हैं। किसी की परेशानी देख कर आ जाते हैं, किसी की समस्या देख आ आते हैं। फिर आता है, एक सबसे अलग तरह का आंसू, जो शायद दिखाई किसी को भी नहीं देते हैं, पर आंखों के किसी कोने में पड़े रहते हैं, जिसे इतना संभाल कर रखा जाता है कि बिना इजाजत के ये बाहर भी नहीं निकलते हैं, बस कभी-कभी एकांत मे ये फूट पड़ते हैं, जहां उनके अलावा कोई नहीं होता है।
-सुप्रिया सत्यार्थी
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