Wednesday, June 18, 2025
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थप्पड़ मारने पर दोस्तों ने काटी थी उज्जवल की गर्दन

  • तीन आरोपी गिरफ्तार, तमंचा व छुरा बरामद

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: खरखौदा थानांतर्गत बिजौली में हुई उज्जवल की हत्या उसके ही तीन दोस्तों ने निर्ममता से की थी। उज्जवल ने एक दोस्त को थप्पड़ मार दिया था, इस कारण तीन दोस्तों ने पहले तमंचे से गोली मारकर हत्या करने की कोशिश लेकिन तमंचा मिस होने के बाद दोस्तों ने छुरे और चाकू से गर्दन काट कर हत्या कर दी। पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद किये हैं।

थाना खरखौदा पुलिस ने 21 अप्रैल को ग्राम बिजौली में हुई उज्जवल की हत्या की घटना का खुुलासा कर दिया है। पप्पू उर्फ उज्जवल ने घटना में शामिल अभियुक्त निखिल के परिवार के ही कुनाल नामक लड़के को किसी बात पर थप्पड मार दिया तथा अभियुक्त शगुन व अभियुक्त विशाल उर्फ कालू को गालियां देने लगा था। जिससे तीनों दोस्त नाराज हो गए हो गये व पप्पू उर्फ उज्जवल को मारने की ठान ली बाद मैं निखिल व विशाल उर्फ कालू ने कॉल करके पप्पू उर्फ उज्जवल को अपने मोहल्ले के चौक में आने को कहा पप्पू उर्फ उज्जवल जैसे ही वहां पहुंचा तीनों अभियुक्तों ने उज्जवल से पूछा कि अब बता कि तुझे क्या दिक्कत है तथा इनमें गाली-गलौज व हाथापाई शुरू हो गयी।

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अभियुक्त विशाल उर्फ कालू ने जान से मारने की नियत से मृतक पप्पू उर्फ उज्जवल के सीने पर तमंचा लगाकर फायर किया जो मिस हो गया। बाद मैं निखिल ने मृतक पप्पू उर्फ उज्जवल को पकड़ लिया तथा अभियुक्त विशाल उर्फ कालू ने अपने पास पहले से रखे छुरा व अभियुक्त शगुन ने अपने पास पहले रखे चाकू से मृतक के सिर पर वार करते हुये गर्दन रेत कर हत्या कर दी।

गिरफ्तार आरोपी

शगुन त्यागी पुत्र दिग्विजय त्यागी उर्फ पिन्टू उम्र 22 वर्ष निवासी ग्राम बिजौली थाना खरखौदा, विशाल त्यागी उर्फ कालू पुत्र योगेश त्यागी उम्र 22 वर्ष निवासी ग्राम बिजौली थाना खरखौदा और निखिल पुत्र जयभगवान उम्र 20 वर्ष निवासी ग्राम बिजौली थाना खरखौदा आदि।

आरोपियों से बरामदगी

शगुन त्यागी से एक चाकू नाजायज, विशाल त्यागी से एक छुरा, निखिल से एक तमंचा 315 बोर व एक जिन्दा कारतूस 315 बोर नाल में फंसा हुआ।

हस्तिनापुर में जातीय रंजिश में अब तक सात लोगों की गई जान

हस्तिनापुर विधानसभा जिले की अकेली मात्र सुरक्षित विधान सभा होने पर यहां की राजनीति हमेशा सूबे की गद्दी तय करती आई है। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि दलित और गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र होने की स्थिति में यहां राजनीतिक पार्टियों ने हमेशा दोनोें जाति पर फोकस कर अपनी पैंठ बनाने की कौशिश की है।

लेकिन बीस वर्ष पूर्व दलित गुर्जर के बीच हुई जातिय रंजिश की तपिश वर्तमान में देखी जा सकती है। मवाना क्षेत्र का मीवा अकेला ऐसा गांव है जहां सात -आठ दलितों को इस जातिय वैमनस्यता की आग में झुलसकर अपनी जान गंवानी पड़ी। वैमनस्यता की इस आग को ठंडा करने के बजाय आज भी राजनीतिक पार्टियां आग में घी डालने का काम करने में लगी हैं। हस्तिनापुर के दलित आज भी सत्ता पक्ष को लेकर आक्रोशित हैं।

मवाना थाना क्षेत्र के मीवा गांव में दलित मजदूर पीताम्बर की शनिवार सुबह अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हुई तो ग्रामीणों मेंं आक्रोश देखने को मिला। ग्रामीणों ने बताया कि पीताम्बर को गांव के ही दो युवक भूसा ढोने के लिए घर से कहकर ले गए। उसके बाद उसे मारपीट कर बेहोश कर जंगल में फेंक दिया। चंद दिन पहले हुए हमले में पीताम्बर की उपचार के दौरान हुई मौत पर ग्रामीणों ने पोस्टमार्टम हाउस पर हंगामा कर सत्ता के विधायक पर गंभीर आरोप लगाये।

उनका कहना था कि डाक्टरों ने पीताम्बर के सिर का पोस्टमार्टम नहीं किया। खानापूर्ति करके पोस्टमार्टम की औपचारिकता की गई। जिसके लिए ग्रामीणों ने प्रत्यक्ष तौर पर वर्तमान सत्ता के विधायक पर गंभीर आरोप लगाये। मीवा के दलित ग्रामीणों का कहना है कि बीस वर्ष के बीच अब तक गांव में सात-आठ दलित मजदूर लोगों की हत्या हो चुकी हैं। इन हत्याओं में गुर्जर जाति पक्ष के आरोपी जेल तक गए। उन्होंने कहा कि गांव में जाटव जाति की संख्या साढ़े पांच सौ के करीब है।

वहीं गुर्जर जाति इससे कंही डबल की संख्या में हैं। ग्रामीणों ने बताया कि बीस साल पहले गांव के अतर सिंह की गोली मारकर हत्या की गई थी। इसके पांच साल बाद अर्थात वर्ष 2008 में दलित बालू की हत्या की भी इस तरह की गई। कुछ वर्ष बाद अतर सिंह के बेटे रामलाल को गोली मार मौत के घाट उतार दिया गया। करीब वर्ष 2020 में भी भालू जाटव को भी बेरहमी से पीटकर मौत की नींद सुला दिया गया था। डेढ़ वर्ष पहले गांव में हरी के बेटे महकार की भी हत्या की गई।

गांव के अनुज पुत्र रामरतन की भी दबंगों ने अब से दो वर्ष पहले मारपीट कर हत्या कर दी थी। गांव में सात से आठ हुई हत्याओं के बाद मीवा के ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में बढ़ रही जातिय रंजिश को बढ़ावा देने में सत्तारुढ़ पार्टी का हाथ रहता है। अगर सत्ता पक्ष के नेता इस बढ़ती जातिय रंजिश को चाहे तो हमेशा के लिए इस पर विराम लगा सकते हैं। लेकिन वोट की राजनीति की खातिर सफेदपोश नेता जातिय पक्षपात कर रंजिश की तपिश को ठंडा नहीं होने देना चाहते।

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