Friday, March 29, 2024
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अक्षम्य भूल

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रावण वध के पश्चात भगवान राम, लक्ष्मण, मां सीता एवं प्रभु भक्त हनुमान के साथ सभी अयोध्या को प्रस्थान कर गए। भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजने का आग्रह किया। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं।

ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी-देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा, चित्रगुप्त जी नहीं दिखाई दे रहे हैं? पता लगा कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था। गुरु वशिष्ठ की इस गलती को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया। स्वर्ग और नरक में हाहाकार मच गया।

मृत्यु के पश्चात कौन स्वर्ग जाएगा, कौन नरक, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तब भगवान राम ने अयोध्या में भगवान विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर, भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमा याचना की। इसके बाद नारायण रूपी भगवान राम का आदेश मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग 24 घंटे बाद पुन: कलम की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया।

ऐसा माना जाता है कि तभी से कायस्थ समाज दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं, और यम-द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते हैं। इस घटना के पश्चात ही, कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए। और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक भी कायस्थों को ही है।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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