Thursday, September 12, 2024
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Uttarakhand News: भाईयों के साथ पर्यावरण की रक्षा भी कर रही इको फ्रेंडली राखियां

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जनवाणी ब्यूरो |

ऋषिकेश: ऋषिकेश की ग्राम पंचायत खदरी खडकमाफ निवासी ईशा कलूड़ा चौहान प्राकृतिक उत्पादों से इको फ्रेंडली राखी बनाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही है। समूह की महिलाओं ,स्थानीय महिलाओं व बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए उत्तराखंड के राज्यपाल, उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों द्वारा सम्मानित ईशा कलूडा चौहान द्वारा बनाई गई इको फ्रेंडली राखियां जागरूकता का संदेश दे रही है ।

पर्यावरण संरक्षण,गौ-संरक्षण, हर घर स्वरोजगार उत्तराखंड की लोक कला व गढ़वाली भाषा का प्रचार प्रसार , लोकल फॉर वोकल, स्वच्छ भारत अभियान और पलायन जैसे गंभीर मुद्दों पर उनके द्वारा हस्त निर्मित वस्तुएं व राखियां जागरूकता का संदेश दे रही है जो की वाकई काबिले तारीफ है।

विभिन्न महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी और उनके लिए कार्य कर चुकी ईशा कलूड़ा चौहान इस त्यौहार में अभी तक 1500 से अधिक हस्त निर्मित राखियां बेच चुकी हैं। उनसे जुड़ी हुई प्रत्येक महिला यह पांच प्रकार की 600 – 700 राखियां बना चुकी है,और इन इको फ्रेंडली राखियों को लोग खूब पसंद कर रहे हैं। जिसके चलते उन्हें उत्तराखंड के विभिन्न शहरों सहित अन्य राज्यों से भी लगातार मांग आ रही है।

श्यामपुर खदरी निवासी ईशा चौहान व उनसे जुड़ी महिलाओं की ओर से बनाई गई राखियां सुंदर और आकर्षक दिखने के साथ खुशबूदार भी है। यह राखियां भाईयों की कलाई को चार चांद लगाने के साथ भीनी-भीनी खुशबू से भी महकाएंगी और भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूती प्रदान करेंगी। ईशा कलूड़ा ने बताया कि वह महिलाओं के साथ भीमल के रेशे, चीड़ की पत्तियाें (पील्टू), पीरुल, गाय के गोबर आदि से राखियां तैयार कर रही हैं। इस बार उन्होंने राखियाें के 100 डिजाइन पर काम किया है।

जिनमें भीमल की राखियों के 45 डिजाइन, पीरुल की राखियों के 30 डिजाइन, गाय के गोबर से बनी राखियों के पांच डिजाइन और मिट्टी और गोबर के मिश्रण से बनी राखियों के तीन डिजाइन तैयार किए हैं। इनके अलावा उनके पास उत्तराखंड की एपण कला सहित अन्य फैंसी राखियां भी उपलब्ध हैं। यह सभी राखियों 10 रूपये से लेकर 50 रूपये तक के बजट के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाई गई हैं।

इन सभी राखिंयों में कलावा (रोली) का प्रयोग किया गया है। और इन रियो को बनाते हैं समय स्वच्छता और शुद्धता के साथ साफ स्थान का विशेष ध्यान रखा जाता है, ईशा चौहान बताया कि सभी राखियां के डिजाइन किसी की नकल करके नहीं, बल्कि यह उनकी ही कल्पना और रचना का मिश्रण हैं। इन डिजाइनों को उन्होंने अन्य बहनों को समर्पित किया है।

उनके द्वारा बताया गया जब वह शिक्षण क्षेत्र में थी तो वह अपने छात्रों को वेस्ट मटेरियल से राखियां बनाना सिखाती थीं, जिसमें बीजों , फूलों ,पत्तियां से बनी हुई राखियां व शादी के कार्ड से राखियां बनाकर सीखाने का उद्देश्य पर्यावरण और स्वच्छता की ओर बढ़ाया गया है।

ईशा जी अभी तक वह करीब 500 महिलाओं व बच्चों को राखी बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण दे चुकी हैं। कई महिलाएं इसमें पारंगत हो चुकी हैं। वहीं कुछ महिलाएं अभी इसकी बारीकियां को सीख रहे हैं। ईशा होली, दीपावली, गणेश चतुर्थी, करवाचौध सहित अन्य त्योहारों पर प्राकृतिक उत्पादों से निर्मित सामग्रियां बनाती हैं। राखियां बनाने में सोनिया बलोदी, रुचि बंदोलिया, दीपा, मंजीता, सुमन रानी, नंदिनी, प्रतिष्ठा, गीता घंनाता, रचना, ज्योति ,विजयलक्ष्मी , पूनम रतूड़ी, आरती, कांति जोशी, आशा, आराधना, रेनू रतूड़ी आदि महिलाएं सहयोग कर रही हैं।

बेच चुकी हैं 1500 से अधिक राखियां, लगातार बढ़ रही डिमांड

ईशा ने बताया कि हाल ही में उन्हें राजस्थान से 500 राखियों का ऑर्डर मिला था। लेकिन राखियों की कम उपलब्धता के कारण सिर्फ 300 राखियां ही डिलीवर की गईं। क्योंकि इन्होंने बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी है, इसके अलावा उन्हें देहरादून, दिल्ली, सहारनपुर सहित स्थानीय लोगों से भी डिमांड मिल रही है। लोग अपने रिश्तेदारों के लिए भी दस-दस राखियां मंगवा रहे हैं।

वहीं संयुक्त परिवारों से सौ-सौ राखियाें के ऑर्डर आ रहे हैं। डिमांड के अनुसार राखियां ऑर्डर पर बनाई जा रही हैं। क्योंकि इनको बनाने की विधि थोड़ी लंबी है। प्रकृति से प्राप्त होने के बावजूद पहले इनका ट्रीटमेंट किया जाता है। फिर इनको आकार व डिजाइन में पिरोया जाता है और खूबसूरती पैकिंग की जाती है।

गाय के गोबर की राखी के हैं गजब के फायदे

ईशा ने बताया कि गाय के गोबर से बनी राखियां सर्वप्रथम पूजा में चढ़ाने या भगवान को अर्पित करने के लिए खासतौर पर बनाई गई हैं। जिसे गोमय राखी भी कहा जाता है। गोमय राखियां वास्तु स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बहुत उपयुक्त हैं। शरीर पर गोमय राखी का स्पर्श होने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल व रेडिएशन की रोकथाम के साथ वास्तु के दोष को दूर करता है और बुरी नजर से भी बचाता है। इनमें सुंदर तितली, मिकी माउस, पत्तियों का डिजाइन आदि बनाकर बच्चों के लिए आकर्षक राखियां भी तैयार की गई हैं।

दस हाथी वाले डिजाइन की बढ़ी डिमांड

ईशा ने बताया कि इस वर्ष दस हाथी के डिजाइन वाली पिरूल और भीमल से बनी राखियों की डिमांड काफी बढ़ी हैं। एक कला शिक्षिका होने के नाते उनकी राखियां थीम-बेस है, यही खासियत उनकी पीरुल और भीमल से बनी रखियो में देखने को मिली । दस हाथी के समूह का अर्थ दस हजार हाथियों का बल होता है और हाथी शक्ति का सूचक होता है।

शक्ति का प्रतीक होने के कारण भाईयों को बुरी नजर और बला से बचाएगा। वहीं इस राखी में रुद्राक्ष,ओम, तुलसी और स्वास्तिक का उपयोग कर आकर्षक डिजाइन बनाया गया है। इनकी पैकिंग पर ध्यान दिया जाए तो यह राखियां 100 रूपये तक आसानी से बिक सकती हैं।

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