विनम्रता आपके आंतरिक प्रेम की शक्ति से आती है। दूसरों को सहयोग व सहायता का भाव ही आपको विनम्र बनाता है। यह कहना गलत है कि यदि आप विनम्र बनेंगे, तो दूसरे आपका अनुचित लाभ उठाएंगे। जबकि यथार्थ स्वरूप में विनम्रता आपमें गजब का धैर्य पैदा करती है। सोचने समझने की क्षमता का विकास करती है। विनम्र व्यक्तित्व का एक प्रचंड आभामंडल होता है। लोग उसकी कद्र करते हैं। ऐसा ही बनने की नसीहत देते हैं। धूर्तों के मनोबल उस आभा से निस्तेज हो स्वयं परास्त हो जाते हैं। जो विमम्र नहीं होते, वे आसानी से धूर्तों के प्रभाव में आ जाते हैं, क्योंकि धूर्त को तो अहंकारी का मात्र चापलूसी से अहं सहलाना भर होता है। जहां विनम्रता होती है, वहां तो व्यक्ति को सत्य की अथाह शक्ति प्राप्त होती है। विनम्रता के प्रति पूर्ण समर्पण युक्त आस्था जरूरी है। मात्र दिखावे की ओढ़ी हुई विनम्रता अक्सर असफल ही होती है। सोचा जाता है, ‘पहले विन्रमता से निवेदन करूंगा, यदि काम न हुआ तो भृकुटि टेढी करूंगा’ यह चतुरता विनम्रता के प्रति अनास्था है, छिपा हुआ अहं भी है। इंसान के अंदर मौजदू विकृति है। अहंकार सदैव आपसे दूसरों की आलोचना करवाता है। वह आपको आलोचना-प्रतिआलोचना के एक प्रतिशोध जाल में फंसाता है। अहंकार आपकी बुद्धि को कुंठित कर देता है। आपके जिम्मेदार व्यक्तित्व को संदेहयुक्त बना देता है। अहंकारी दूसरों की मुश्किलों के लिए उन्हें ही जिम्मेदार कहता है और उनकी गलतियों पर हंसता है। विनम्रता हृदय को विशाल, स्वच्छ और ईमानदार बनाती है। यह आपको सहज संबंध स्थापित करने के योग्य बनाती है। विनम्रता से ही दिल जीते जाते हैं।