Wednesday, June 18, 2025
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Vat Vrat 2024: ज्येष्ठ माह का वट पूर्णिमा व्रत आज, यहां जानें इसके महत्व और पूजन विधि

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। सनातन धर्म में ज्येष्ठ माह का विशेष महत्व बताया गया है। इस महीने में आने वाले व्रत त्योहार की महत्ता को बढ़ाते हैं। कहा जाता है कि, इस माह में पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती हैं। इसके अलावा भगवान ​विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए यह शुभ समय होता है। ज्येष्ठ माह में बड़ा मंगल, अपरा एकादशी, शनि जयंती और गंगा दशहरा जैसे बड़े पर्व मनाए जाते हैं।

यह माह सुहागिन महिलाओं के लिए और भी खास होता है, क्योंकि इस माह में एक नहीं दो बार वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस दौरान एक व्रत कृष्ण पक्ष में और दूसरा व्रत शुक्ल पक्ष में रखा जाता है। इन दोनों व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विधान है, बिना इसके पूजा अधूरी मानी जाती है।

माना जाता है कि, इसमें त्रिदेवों -ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, इसलिए पूजा करने पर इन तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पूजा के दौरान हमेशा वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। मान्यता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के जीवन के लिए यमराज की पूजा बरगद पेड़ के नीचे की थी।

इस दौरान दूसरा वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रखा जाएगा। ऐसे में यह व्रत 21 जून 2024 को रखा जा रहा है। इसे वट पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन कुछ खास पूजा मंत्र को जपने और विधिपूर्वक पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। आइए इसके बारे में जान लेते हैं।

सामग्री

वट व्रत की पूजा में बरगद के पेड़ की पूजा का विधान है। अगर आपके आसपास बरगद का पेड़ नहीं है, तो कहीं से इसकी टहनी तोड़कर उसकी भी पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा बांस का पंखा, कलावा या सफेद सूत (हल्दी में रंगा हुआ), मौसमी फल जैसे आम, लीची, तरबूज, अक्षत, केला का पत्ता, पान और तांबे का लोटा व मिठाई जैसी व्रत सामग्री पूजा में जरूर शामिल करें।

पूजा-विधि

वट व्रत के दिन महिलाएं सुबह ही स्नान कर लें। इसके बाद लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें। बाद में मुहूर्त के अनुसार पूजा सामग्री के साथ पूजा स्थान पर पहुंचे। फिर वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद वट वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें। बाद में आप हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें। अंत में अपनी इच्छानुसार दान करें।

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