Tuesday, December 3, 2024
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मुनव्वर राणा ने मेरठ में भी लूटी थी कई महफिलें

  • मशहूर शायर मुनव्वर राणा का निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: जाने माने शायर मुनव्वर राणा का रविवार देर रात दिल का दौरा पढ़ने से निधन हो गया। वह संजय गांधी पीजीआई संस्थान लखनऊ में भर्ती थे। उनकी बेटी सुमैया ने उनके निधन की पुष्टि की है। मुनव्वर राणा पिछले काफी दिनों से बीमार थे। वह हार्ट और किडनी की समस्याओं के अलावा कई अन्य बीमारियों से ग्रस्त थे। दो दिन पहले ही उन्हें वेंटिलेटर पर से आईसीयू वार्ड में शिफ्ट किया गया था। उनके निधन की सूचना से समूचा साहित्य जगत शोक में डूब गया। अपनी शायरी से सियासत पर अक्सर तंज कसने के साथ साथ वह विभिन्न कुरीतियों पर अनोखे भी शायराना लहजे में अनोखे तंज कसते थे।

मेरठ में कई मुशायरा में लूट चुके हैं महफिल

शायर मुनव्वर राणा वैसे तो पूरे विश्व में आयोजित मुशायरो में भाग लेने जाते थे, लेकिन वह देश के अंदर आयोजित होने वाले मुशायरो में भाग लेने को ज्यादातर तरजीह देते थे। मेरठ में आयोजित हुए कई मुशायरो में भाग लेने वो यहां आए और श्रोताओं से जमकर दाद बटोरी। बताते हैं कि मेरठ में लगभग आधा दर्जन मुशायरों में उन्होंने शिरकत की। मेरठ में जब भी वह अपना कलाम पेश करते थे तो मां विषय पर वह भावुक हो जाते थे और मां विषय पर कई कलाम पेश करते थे।

जब दैनिक जनवाणी से साझा की थी अपनी बीमारी की दास्तान

लगभग 9-10 साल पहले जब मुनव्वर राणा एक मुशायरा में शिरकत करने मेरठ आए हुए थे तब दैनिक जनवाणी ने उनसे विशेष बातचीत की थी। गढ़ रोड स्थित एक होटल में दैनिक जनवाणी से बात करते हुए उन्होंने सबसे पहले अपने घुटनों की बीमारी के बारे में बताया और उसके बाद उम्र के तकाजे का हवाला देते हुए अपनी कई अन्य जिस्मानी बीमारियों का जिक्र किया था।

कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं

मुनव्वर राणा को साहित्य जगत के कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। 1993 में रईस अमरोही पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया। 1995 में दिलखुश पुरस्कार उन्हें मिला। 1997 में सलीम जाफरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद 2004 में सरस्वती समाज पुरस्कार से नवाजे गए। 2005 में ग़ालिब उदयपुर पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किया। इसके बाद 2006 में कबीर सम्मान उपाधि से सम्मानित किए गए।

2011 में मौलाना अब्दुल रज्जाक मलिहाबादी पुरस्कार उन्हें प्राप्त हुआ, जबकि 2014 में उर्दू साहित्य के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। हालांकि यहां कुछ कंट्रोवर्सी के चलते 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार उन्होंने वापस लौटा दिया और यह घोषणा भी की थी कि वह भविष्य में अब कोई भी सरकारी पुरस्कार नहीं लेंगे।

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