Saturday, July 27, 2024
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गंगा आज भी मैली क्यों है?

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KP MALIKहिंदुस्तान की सबसे पवित्र माने जानी गंगा आज मैली हो चुकी है। करोड़ों लोगों के लिए आस्था और विश्वास की यह नदी, केवल नदी ही नहीं, बल्कि वैतरणी की तरह स्वर्ग से उतरी वह जलधारा है, जिसमें लोगों की आस्था उतनी ही है, जितनी की भगवान में। लेकिन सदियों से इंसानों ने इस गंगा को तो मैला करके छला ही है, अब नेता भी इसके नाम पर करोड़ों-करोड़ों रुपए का घोटाला करके इसके साथ छल रहे हैं। सवाल उठता है कि तो क्या सरस्वती नदी की तरह ही गंगा जी के भी पाताल जाने का समय आ गया है? या क्या उत्तराखंड का गठन केवल गंगा जी को दफन करने के लिए हुआ है? क्या जीवन दायिनी गंगा का विनाश ही एकमात्र रोजगार का साधन है?

क्या भारत सरकार उत्तराखंड में गंगा जी की दशा से अनभिज्ञ है? या वह भी यही चाहती है कि इसके नाम पर जितना कमा सकते हो कमा लो? हरिद्वार में 2,000 से ज्यादा मठ और आश्रम हैं, वे गंगा जी के लिए आवाज क्यों नहीं उठाते? क्या अपना पेट भरने के लिये मां को नीलाम करना जायज है? क्या हम अपने बच्चों को यह पढ़ाने के लिए तैयार हो चुके हैं कि गंगा एक नदी हुआ करती थी?

लगता तो ऐसा ही है कि यह 45वीं सभ्यता नष्ट होने के कगार पर खड़ी है। मानव को इतिहास से सबक लेना चाहिए, मगर अफसोस ऐसा हुआ नहीं। तो क्या जो गलतियां पूर्व की 44 सभ्यताएं कर चुकी हैं, उसी रास्ते पर हम चल चुके हैं? गंगा सफाई के लिए लगातार करीब चार महीने अनशन पर बैठे पर्यावरणविद् प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपनी जान दे दी, मगर सरकारों के कान पर जूं नहीं रेंगी।

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए लगातार जी-जान से कोशिश करते रहे। उन्होंने इतना बड़ा त्याग आखिर किसके लिए किया था? मानव कल्याण और धरती पर जीवन के इस खास तत्व पानी को ही बचाने के लिए। फिर भी उनकी किसी ने नहीं सुनी।

नेता पैसा डकारते गए और स्वामी जी के पास तक नहीं कोई गया। नेता तो छोड़िए, खुद संतों और दिन रात गंगा किनारे दोनों हाथों से धन बटोरने वाले पंडे-पुजारियों ने भी उनका साथ नहीं दिया। दरअसल, स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी की मांग थी कि गंगा और इसकी सह-नदियों के आस-पास बन रहे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के निर्माण को बंद करके गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम को लागू किया जाए।

उनका कहना था कि अगर इस मसौदे को पारित किया जाता है, तो गंगाजी की ज्यादातर समस्याएं लंबे समय के लिए खत्म हो जाएंगी। उनकी जिद थी कि वे अनशन तभी तोड़ेंगे, जब सरकार यह विधेयक पारित कर देगी। सरकार किसकी थी? भाजपा की।

जो भाजपा हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र की बात करती है, हिंदू धर्म की बात करती है और धर्म पताका को ऐसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती है, जैसे उसके बगैर हिंदू धर्म ही नष्ट हो जाएगा, वही भाजपा गंगा सफाई पर चुप्पी साधे हुए है। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी ने इस मांग के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और जल संशाधन मंत्रालय तक को कई पत्र लिखे थे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

आखिर उनका बलिदान गंगा बचाओ अभियान में हो गया, लेकिन गंगा साफ नहीं हुई और न ही उसमें गिरने वाली तरह-तरह की गंदगी और केमिकल पर कोई अंकुश लग सका। साल 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वाराणसी में उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि ‘न मैं यहां आया हूं, न मुझे लाया गया है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।

इसके बाद भाजपा की बड़ी जीत के बाद वह प्रधानमंत्री बने और उन्होंने यानि केंद्र की मोदी सरकार ने गंगा सफाई के लिए वित्तीय वर्ष 2014-15 से 31 अक्टूबर, 2022 तक एनएमसीजी को कुल 13,709.72 करोड़ रुपये जारी किए, जिसमें से 4,205.41 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश को आवंटित किए गए। इसी तरह बिहार को 3,516.63 करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल को 1,320.39 करोड़ रुपए, दिल्ली को 1,253.86 करोड़ रुपए और उत्तराखंड को 1,117.34 करोड़ रुपए, झारखंड को 250 करोड़ रुपए, हरियाणा को 89.61 करोड़ रुपए, राजस्थान को 71.25 करोड़ रुपए, हिमाचल प्रदेश को 3.75 करोड़ रुपए और मध्य प्रदेश को 9.89 करोड़ रुपए आवंटित किए गए।

इस पैसे से गंगा की 2 हजार 525 किलोमीटर से ज्यादा गंगा की सफाई होनी थी। इसके अलावा केंद्र की मोदी सरकार ने जून 2014 में 20,000 करोड़ रुपए के कुल बजट से नमामि गंगे योजना शुरू की, जिसका मकसद गंगा की सफाई और उसके जल को हर प्रकार के प्रदूषण से मुक्त करना था।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गंगा सफाई की मुख्य जिम्मेदारी उस समय की केंद्रीय मंत्री उमा भारती के जिम्मे थी, जिन्होंने कहा था कि अगर वो गंगा की सफाई नहीं करवा सकीं, तो इसी गंगा में छलांग लगाकर अपने प्राण दे देंगी। लेकिन न गंगा साफ हुई और उमा भारती ने अपना वचन निभाया। आज उनसे पूछा जाना चाहिए कि आपका वायदा क्या हुआ?

बहरहाल, केंद्र की मोदी सरकार ने गंगा और उसकी सहायक नदियों का कायाकल्प करने के लिए 2014-15 में नमामि गंगे कार्यक्रम के जरिए 31 मार्च 2021 तक का वक्त तय किया था, जो कब का निकल चुका है। अब न गंगा सफाई केंद्र की मोदी सरकार और किसी केंद्रीय नेता, और यहां तक खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान से सुनने को मिलता है और न ही नमामि गंगे का नाम सुनने को मिलता है।

हालांकि 2018-19 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12.88 करोड़ रुपए गंगा स्वच्छ निधि में दिए थे। लेकिन यह नहीं पता, वो पैसे कहां गए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार वाराणसी के काशी घाट का दौरा कर चुके हैं, वो गंगा के दर्शन भी कर चुके हैं और उसमें डुबकी भी लगा चुके हैं।

लेकिन लगता है कि उन्होंने भी गंगा सफाई के बारे में उतनी दिलचस्पी नहीं ली, जितनी दिलचस्पी से उन्होंने नमामि गंगे योजना की शुरुआत की थी। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी याद दिलाने की आवश्यकता है, ताकि भारत की जन-जन की आस्था का केंद्र गंगा और बाकी सभी जीवनदायिनी नदियों का अस्तित्व बच सके।

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर खुद प्रधानमंत्री मोदी पर गंगा सफाई के नाम पर अरबों रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा चुके हैं। उन्होंने पिछले समय में साफ शब्दों में एक ट्वीट में कहा था कि गंगा सफाई के नाम पर अरबों रुपये का घोटाला हुआ है।

उन्होंने कहा कि दो वर्ष में गंगा की सफाई के नाम पर सात हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन गंगा अब भी मैली है। इसके लिए राजभर ने जुलाई 2017 की एक रिपोर्ट का हवाला भी दिया। क्या राजभर के इस आरोप का जवाब किसी भाजपा नेता, मंत्री या खुद प्रधानमंत्री के पास है? कोई बताएगा कि क्या हुआ केंद्र सरकार के गंगा सफाई अभियान का, जो बहुत जोर-शोर से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठाया था?


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