पिछले कुछ वक्त से साउथ के फिल्म मेकर और एक्टर्स यहां आकर नॉर्थ वालों को पीछे छोड़ रहे हैं। यह सिलसिला एसएस राजामौली की फिल्म ‘बाहुबली: द बिगिनिंग’ (215) के साथ शुरू हुआ था। लेकिन इसकी गति में तेजी ‘केजीएफ चैप्टर 1’ (2018), बाहुबली 2: द कन्क्लूजन’ (2017), ‘पुष्पा द राइज’ (2021) ‘केजीएफ चैप्टर 2’ (2022) ‘कांतारा’ (2022) और ‘आरआर आर’ (2022) के बाद आई। ‘पुष्पा द राइज’ की कुल कमाई 365 करोड़ थी, जिसमें से फिल्म ने 108.26 करोड़ नॉर्थ बेल्ट से कमाए। इसी तरह ‘आरआरआर’ ने अपनी कुल 1100 करोड़ की कमाई में से अकेले नॉर्थ बेल्ट में 274 करोड़ कमाए थे। ‘केजीएफ चैप्टर 2’ ने 1232 करोड़़ का रिकार्ड बिजनेस किया था जिसमें से 434.40 करोड़़ उसने हिंदी बेल्ट से कमाए थे।
एक लंबे वक्त से नार्थ की फिल्में साउथ में भी रिलीज होती रही हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से नॉर्थ की फिल्में वहां कुछ खास नहीं कर पा रही हैं। ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की कुल 55.5 करोड़ की कमाई में से साउथ में सिर्फ 5.5 करोड़ ही कमाए। इंडिया वाइज बॉक्स आॅफिस पर ‘झंडे गाड़ देने वाली फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने इस साल 340 करोड़़ की कमाई करते हुए अनपेक्षित रूप से हर किसी को हैरान कर दिया था। लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि उस फिल्म ने साउथ में सिर्फ 24 करोड़ की ही कमाई की। इसी तरह कोरोना के बाद बॉलीवुड को मायूसी के भंवर से उबारने वाली, कार्तिक आर्यन की फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ की 164 करोड़ की कमाई में साउथ बेल्ट का योगदान सिर्फ 15.50 करोड़ का ही रहा।
साउथ वाले समझ चुके हैं कि उनकी फिल्मों और कंटेंट को नॉर्थ इंडिया में वहां की फिल्मों से ज्यादा पसंद किया जाने लगा है। शायद यही वजह है कि धीरे धीरे पैन इंडिया फिल्मों का चलन बढ़ता जा रहा है। किसी रीजनल भाषा में बनने वाली फिल्म को कम से कम 4 अन्य भाषाओं में डब कर रिलीज किए जाने वाली फिल्म को पैन इंडिया फिल्म कहते हैं। इस चलन के बाद फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादातर फिल्मों और वेब सीरीज को हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ में डब कर रिलीज किया जा रहा है।
जिस तरह से रिलीज के पहले ही ‘बाहुबली 2: द कन्क्लूजन’ 500 करोड़, ‘आरआरआर’ 500 करोड़, ‘केजीएफ चैप्टर 2’ 525 करोड़ का दमदार बिजनेस किया। वैसा नार्थ में एक अरसे बाद हाल ही में शाहरुख की फिल्म ‘पठान’ के साथ देखने को मिला वर्ना ऐसा नजारा यहां एक लंबे अरसे से देखने को नहीं मिल सका है। मल्टीप्लेक्स की टिकट दरें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं, लेकिन उसके मुकाबले उनके खर्चों और रख रखाव में भी उसी गति से इजाफा होता जा रहा है और इसका नतीजा इस रूप में सामने आ रहा है कि आॅडियंस द्वारा मल्टीप्लेक्स में जाकर किसी फिल्म का आनंद उठाना उनकी पहुंच से बाहर होता जा रहा है।
नतीजा, फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही हैं और इन फ्लॉप फिल्मों का नुक्सान एक्टर और प्रोडयूसर से ज्यादा डिस्ट्रिब्यूटर और एक्जीबीटर्स को झेलना पड़ रहा है। इसलिए फिल्में खरीदने के मामले में डिस्ट्रिब्यूटर और एक्जीबीटर्स ज्यादा सतर्क नजर आने लगे हैं।
किसी फिल्म के लागत मूल्य की वसूली बाक्स आॅफिस से करीब 50 से 60 प्रतिशत, डिजिटल राइट्स से करीब 20 प्रतिशत, सैटेलाइट राइटस से 10, म्यूजिक राइटस से 7 से 10 प्रतिशत और अन्य राइटस से लगभग 3 प्रतिशत होती है। बॉक्स आॅफिस को छोडकर शेष आवक स्थाई है, लेकिन यदि बॉक्स आॅफिस पर इस औसत से अधिक तो फिल्म हिट और कम का मतलब फिल्म फलॉप होता है। फिल्म के मेकर तो किसी भी तरह अपनी फ़्लॉप फिल्म से भी ओटीटी राइट्स, सैटेलाइट राइट्स और यू टयूब चैनल के जरिए सिंडिकेशन कमाई कर अपनी भरपाई कर ही लेते हैं लेकिन डिस्ट्रिब्यूटर और एक्जीबीटर्स हर बार घाटे में ही रहते हैं।
सुभाष शिरढोनकर