Thursday, April 25, 2024
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आइए जानते हैं, कैसे फटता है बादल ?, क्यों नहीं मिलता पूर्वानुमान ?

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जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: अगर किसी पहाड़ी स्थान पर एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होती है को इसे बादल फटना कहते हैं। भारी मात्रा में पानी का गिराव न केवल संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाता है बल्कि इंसानों की जान पर भी भारी पड़ता है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के निदेशक मृत्युंजय महापात्रा कहते हैं कि बादल फटना एक बहुत छोटे स्तर की घटना है और यह अधिकतर हिमालय के पहाड़ी इलाकों या पश्चिमी घाटों में होती है। महापात्रा के अनुसार जब मानसून की गर्म हवाएं ठंडी हवाओं से मिलती हैं तो इससे बड़े बादल बनते हैं। ऐसा स्थलाकृति (टोपोग्राफी) या भौगोलिक कारकों के कारण भी होता है।

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समाचार एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार स्काइमेट वेदर में वाइस प्रेसिडेंट (मौसम विज्ञान और जलवायु) महेश ने बताया कि ऐसे बादलों को क्युमुलोनिंबस (Cumulonimbus) कहते हैं और ये ऊंचाई में 13-14 किलोमीटर तक खिंच सकते हैं।

अगर ये बादल किसी इलाके के ऊपर फंस जाते हैं या वहां पर हवा नहीं होती है तो ये वहां बरस जाते हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन कहते हैं कि ऐसा लगता है कि बादल फटने की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। इस महीने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं।

आईएमडी की वेबसाइट पर मौजूद एक एक्सप्लेनर के अनुसार, ‘बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाना कठिन है क्योंकि स्थान और समय के मामले में ये बहुत छोटे स्तर पर होती हैं।

इसकी निगरानी करने के लिए या तुरंत जानकारी देने के लिए हमें उन इलाकों में बहुत सघन राडार नेटवर्क की जरूरत होगी जहां ऐसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं या हमारे पास एक बहुत अधिक रिजॉल्यूशन वाला मौसम पूर्वानुमान मॉडल हो।’

इस एक्सप्लेनर में बताया गया है कि बादल फटने की घटनाएं मैदानी इलाकों में भी होती हैं। लेकिन, पर्वतीय इलाकों में कुछ भौगोलिक कारकों की वजह से ऐसी घटनाएं अधिक घटित होती हैं।

महापात्रा कहते हैं कि बादल फटने का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन हम बहुत भारी वर्षा का अलर्ट जरूर देते हैं। हिमाचल की बात करें तो यहां हमने रेड अलर्ट जारी किया था।

पूर्वानुमान में डॉपलर राडार साबित हो सकते हैं प्रभावी 

हालांकि, बादल फटने की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना कठिन है, लेकिन डॉपलर राडार इस काम में काफी मददगार साबित हो सकते हैं। लेकिन हर इलाके में राडार मौजूद नहीं हो सकता, खासकर हिमालयी क्षेत्र में। 23 जुलाई को पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में बताया था कि हिमालयी क्षेत्र में सात डॉपलर राडार हैं।

इनमें से दो जम्मू-कश्मीर (सोनमर्ग और श्रीनगर) में, दो उत्तराखंड (कुफरी और मुक्तेश्वर), एक असम (मोहनबाड़ी) में, एक मेघालय (सोहरी) में और एक त्रिपुरा (अगरतला) में है। हिमाचल प्रदेश में दो और डॉपलर राडार के लिए राज्य सरकार से एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) का इंतजार है।

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