नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। आज देशभर में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। सनातन धर्म के लोगों के लिए यह बड़ा महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य से जोड़ा गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह में शुक्ल की चतुर्थी के दिन गणेश चतुर्थी पर्व का शुभारंभ हो जाता है, जो 10 दिनों तक चलता है। बहुत से लोग अपने घर में बप्पा की मूर्ति की स्थापना करते हैं। इस दिन को लेकर एक मान्यता यह भी है कि इस दिन चांद को नहीं देखना चाहिए।
लेकिन, कहा जाता है कि यदि आपने गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देख लिया तो यह एक अशुभ संकेत होता है। लेकिन यदि आपने अंजाने में चांद देख लिया है तो इसके प्रकोप से बचने के लिए कुछ उपाय भी बताए गए हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है और यदि चांद देख लिया है तो कौन से उपाय किए जा सकते हैं।
क्यों नहीं देखना चाहिए गणेश चतुर्थी पर चांद?
गणेश चतुर्थी के दिन चांद को देखना अशुभ माना जाता है। मान्यता है कि यदि इस दिन चांद को देख लिए जाए तो मिथ्या दोष लग जाता है। मिथ्या दोष लगने पर आपके जीवन में कई सारी दिक्कतें आने लगती हैं। ये एक अनचाहा दोष है, जो व्यक्ति गलत और झूठे आरोपों में फंसा सकता है।
ये है दोष के पीछे की मान्यता
इस दोष के पीछे एक पौराणिक कहानी बताई जाती है, जो गणेश जी और चंद्र देव से जुड़ी है। एक बार गणेश जी चूहे की सवारी कर रहे थे, इस दौरान वह अपने भारी वजन के कारण लड़खड़ा गए। ऐसे में चंद्र देव उन्हें देखकर हंसने लगे। इस पर गणेश जी क्रोधित हो गए और चंद्रमा को श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी की बेला में यदि कोई रात में चांद को देख लेता है तो उसे समाज में तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ेगा।
चांद देख लिया तो करें ये उपाय
इस दिन चांद को देखना अशुभ होता है, लेकिन अगर गलती से कोई चांद देख ले तो इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कुछ उपाय भी बताए गए हैं। इस की मदद से आप मुक्ति पा सकते हैं। इस दोष से मुक्त होने के लिए आप गणेश भगवान का व्रत रख सकते हैं। साथ ही एक मंत्र का जाप करने से भी इस दोष से मुक्ति पा सकते हैं।
अगर आप सच्चे मन से इस मंत्र का जाप करते हैं, तो आप इस दोष से मुक्त हो सकता है। यह मत्रं है, सिंहः प्रसेनमवधीतसिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मरोदिस्तव ह्येषा स्यामंतकः॥