- बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के सभी काम मठाधीश बाबू के मुताबिक होते है
- ट्रांसफर, जांच, ट्रेनिंग, अटैचमेंट, प्रमोशन और समायोजन जैसे महत्वपूर्ण कार्य है शामिल
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: क्या मठाधीश बाबू पर गाज गिरेगी? यह बड़ा सवाल है। उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। शिक्षा विभाग में बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से जुड़े सभी कार्य यहां पर नियुक्त मठाधीश बाबू के ही इशारों पर होते है। बाबू का इतना रौब है कि कोई उसके खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। ऐसा करने वाले को बाबू भुगतलेने की धमकियां देने के साथ ही अपनी मनमर्जी के मुताबिक ट्रांसफर कराने की बात करता है।
शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जिसके हासिल करने के बाद किसी की भी जिंंदगी बदल जाती है। सरकार ने गरीब परिवारों के बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानें के लिए सरकारी स्कूलों में मोटी तनख्वाह पर शिक्षकों की नियुक्तियां कर रखी है। प्राथमिक-उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ानें वाले शिक्षकों से जुड़े सभी तरह के कामों के लिए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय है।
इसी कार्यालय में शिक्षको से जुड़े कार्य होते है, लेकिन इन कार्यो को मेरठ में एक बाबू की निगरानी में किया जाता है। मिली जानकारी के अनुसार यह बाबू शिक्षकों के ट्रांसफर से लेकर जांच, ट्रेनिंग, अटैचमेंट, प्रमोशन, समायोजन जैसे सभी कार्य अपनी मर्जी से कराता है। इसके बदले यह मोटा सुविधा शुल्क लेता है।
जो शिक्षक सुविधा शुल्क देनें में आनाकानी करता है, उसका काम रोक दिया जात है। यहां तक की एक ऐसा भी एक शिक्षक है। जो पिछले 22 सालों से शिक्षक के पद पर तो नियुक्त हुआ है, लेकिन इसने कभी किसी छात्र को शिक्षा नहीं दी।
यह शिक्षक सहायक अध्यापक गणित के पद पर नियुक्त हुआ था, जिसके बाद इसका कई स्कूलों में ट्रांसफर हुआ, लेकिन मठाधीश बाबू की कृपा से यह कहीं पर भी पढ़ाने नहीं गया। बाबू की इस शिक्षक पर इतनी कृपा दृष्टि है कि बिना बच्चोंं को पढ़ाए ही यह अपनी नौकरी कर रहा है और मोटा वेतन भी पा रहा है।
इस शिक्षक का ट्रांसफर 2015 में नंगली आजमाबाद इंचौली क्षेत्र में हुआ था, लेकिन यह कभी वहां पढ़ानें नहीं गया। इससे पहले 2004 से 2015 तक रजपुरा ब्लॉक के रुकनपुर-मोरना गांव में रहा, लेकिन वहां पर भी कभी किसी छात्र को पढ़ाया नहीं। मठाधीश बाबू ने इस शिक्षक का अटैचमेंट करानें का ठेका ले रखा है।
देखने वाली बात यह है कि जो शिक्षक बच्चों को पढ़ानें के लिए नियुक्त हुआ है वह कंप्यूटर आॅपरेटर का काम कर रहा है और विभाग इसको लेकर मौन साधे बैठा है। शिक्षकों की नियुक्ति होने के बाद उनकी तनख्वाह 50 हजार से शुरू होकर पौने दो लाख तक जाती है, लेकिन यह सीनियरटी पर निर्भर करता है।
अब इस बात का अंंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सरकार करोड़ों रुपये बजट पर खर्च कर रही है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल रहा है। आज भी सरकारी स्कूलों मेंं शिक्षा का स्तर बेहद खराब है। इसके पीछे की वजह है मठाधीश बाबू जैसे पदों पर जमे ऐसे कर्मचारी जिन्होंने शिक्षा जैसे सम्मानित पेशे का मजाक बनाकर रख दिया है।