- गर्भ में पल रहे बच्चे को खतरा हो तो प्रसूता भी छोड़ सकती है रोजा
जनवाणी संवाददाता |
देवबंद: मुकद्दस माह रमजान के रोजों में मर्द के मुकाबले औरत को अधिक सहूलियत दी गई है। महिलाएं रमजान माह में इन सहूलियतों का फायदा उठाकर रोजा छोड़ सकती हैं। लेकिन छोड़े गए रोजों की कजा लाजिम होगी।
दारुल उलूम वक्फ के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना नसीम अख्तर शाह कैसर ने औरतों के रोजों के बारे में कुछ खास मसलों पर रोशनी डाला। इस्लामी पुस्तक फतावा शामी का हवाला देते हुए मौलाना ने बताया कि अगर कोई औरत बच्चे को दूध पिला रही हो तो उसके लिए रोजा छोडऩे की इजाजत है।
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लेकिन ऐसी औरत को यह देख लेना चाहिए कि उसके रोजा रखने से उसका स्वास्थ्य प्रभावित होगा या नहीं या फिर उसके रोजे रखने से उसके बच्चे के दूध में कमी आएगी या नहीं। अगर तजुर्बे से या डाक्टर के मशवरे से यह बात सामने आए कि दूध पिलाने की हालत में दोनों को या किसी एक को नुकसान है तो रोजा छोड़ा जा सकता है। इस छोड़े गए रोजे का बाद में कजा (बाद में रोजा रखना) होगा।
इसके अलावा हैज (मासिकधर्म या पीरियड) के दौरान भी रोजा रखना और नमाज पढऩा दुरुस्त नहीं है। ऐसी सूरत में नमाज पूरी तरह माफ है लेकिन पीरियड के दौरान छोड़े गए रोजों की कजा (बाद में रोजा रखना) करनी होगी। अगर रोजा रखने के बाद दिन में किसी वक्त पीरियड शुरू हो गए तो रोजा टूट जाएगा।
ऐसी औरत बाद में कजा करेगी। इस्लामी पुस्तक फतावा आलमगीरी का हवाला देते हुए मौलाना नसीम ने बताया कि अगर हामला (प्रसूता) महिला को यह डर हो कि रोजा रखने से उसकी सेहत को नुकसान पहुंचेगा या पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान होगा। तो ऐसे में रोजा न रखना जायज है।