रेलवे में उच्च पद पर कार्यरत अधम सिंग पिछले कई दिनों से तनाव के माहौल में देखते हुए व्यापारी ने उनके चेहरे के हाव भाव पहचानते हुए चाय पीने के बहाने ‘ईअ’ अधीकारी की तरह पूछताछ करते हुए पूछा, अधम सिंग आज क्या बात है, आपका चेहरे विपक्ष की तरह उखड़ा-उखड़ा क्यों नजर आ रहा है, जबकि आप खुद ही सरकार की तरह सरकार हैं, तो फिर तुम इतने तनावग्रस्त क्यों दिखाई दे रहे हो? सेठ साहब आपने त्योहारों के बारे में जो भी कुछ कहा, वह शत प्रतिशत सही सही हैं परंतु, ये अधम सिंग क्या करे? सुरसा के रूप में खड़ी महंगाई के चलते हम बौने क्यों दिखाई दे रहे हैं? अब आप ही बताइए भोरा मनक (भोला भाला आदमी) बोले तो क्या बोले? मत पूछो व्यापारी महोदय मेरे हाल के हालात महीने के आखरी समय में कैसे गुजरते हैं। यह हमारी आत्मा से पूछो और कभी किसी त्योहार का आना किसी सरकारी कर्मचारी की लिए किसी तनाव से कम नहीं है? ऐसे समय में उत्सव कैसे मनाएं?
बच्चों के स्कूल का शुल्क, कोचिंग की फीस के साथ-साथ अन्य प्रकार के टैक्स चुकाने के बाद त्योहार के अवसर पर घर-परिवार की खुशियों में कपड़े, मिठाई और किराने का सामान लाना किसी विश्वयुद्ध से कम नहीं है? व्यापारी ने गंभीर होते हुए कहा, हां, अधम भाई, तुम सही कह रहे हो और मैं भी यह सोच रहा हूं, जब किसी सरकारी कर्मचारी की अच्छी खासी पगार होने के बाद उसके हाथ इतनी तंगी में दिखाई दे रहे हैं, यह आज के समय में किसी आश्चर्य से कम नहीं है, तो फिर आम नागरिकों के हाथों की लकीरें इस महंगाई के दौर में किस कदर विचलितरूप से तंगी मे होंगी, कुछ बता नहीं सकता। वर्तमान हालात को देखते अपने व्यापार को लेकर मैं काफी परेशान हो रहा हूं। आखिर करें तो क्या करें?
अधम भाई! जिस प्रकार से तुम सरकारी कर्मचारी होते हुए इतने परेशान लग रहें हो तो आम आदमी किस परिस्थिति से गुजर रहा है, यह देख कर, यह सोच कर मैं अपने मन की बात कहूं तो कोई गलत नहीं होगा। महंगाई के माहौल में बस सब की अपनी-अपनी एक दंत कथा है और मन की व्यथा है। अधम सिंग जी मुझे तो ऐसा लगता है कि अब हमारे हालात पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। ऐसे में किसी पर्व पर गर्व करने जैसी कोई बात दृष्टिगत नहीं है। आज-कल जश्न तो ऊंचे लोग की ऊंची पसंद बन गई है। उनके जलवे ही किसी जलसे से कम नहीं हैं। आप सच सच कह रहे हैं, यह मंहगाई की ताकत है कि किसी भी अधिकारी, कर्मचारियों को, व्यापारी, आम आदमी को सूकुन से देखना नहीं चाहती हैं? परिस्थितियां किसी भी प्रकार की हों, जीना तो बहुत जरूरी है, क्योंकि वर्तमान हालात को देखते हुए गांधी जी के तीन बंदर की तरह सिद्धान्त अपनाकर कोई बोलना नहीं चाहता, बस कैसे भी करके परिवार के लिए महंगाई के साथ में अपना जीवन यापन कर रहा है और रूठे हुए त्योहारों को मनाने में जुटे हुए हैं। इतने में अधम सिंग के मोबाइल पर रिंगटोन बजने लगी। तुम रूठी रहो में मनाता रहूं, इन अदाओं पर और प्यार आता है।

