जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: भारतीय राजनीति और समाजवादी वर्ग की एक बुलंद आवाज गुरुवार, 12 जनवरी को खामोश हो गई। जेडीयू के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद शरद यादव नहीं रहे। शरद भले का जन्म भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो लेकिन उनकी छात्र राजनीति में कॉलेज की पंचायत से लेकर लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत संसद तक उनकी बुलंद आवाज गूंजती रही।
छात्र राजनीति से लेकर संसद तक का सफर तय करने वाले शरद यादव ने मध्य प्रदेश का मूल निवासी होते हुए भी अपने राजनीतिक जीवन की धुरी बिहार और उत्तर प्रदेश की सियासत से बनाई। शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक दबदबा दिखाया और राष्ट्रीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनाया।
पढ़ाई में काफी होशियार थे शरद यादव
शरद यादव का जन्म एक जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। शरद बाल्यकाल से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने इंजीनियर बनने का सपना देखा था। इसके लिए उन्होंने मध्य प्रदेश के जबलपुर के ही इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया और बीई की डिग्री ली।
शरद इस दौरान राजनीति से प्रभावित हुए थे और उन्होंने न केवल कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज) के छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए। वे एक कुशल वक्ता भी थे। उन्होंने अपनी डिग्री गोल्ड मेडल के साथ पूरी की थी।
डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों ली प्रेरणा
जब शरद यादव छात्र राजनीति में मशगूल थे तब देश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के लोकतंत्र वाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रांति की लहरें परवान चढ़ रही थीं। शरद यादव भी इनसे खासे प्रभावित हुए। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित होकर शरद ने अपने मुख्य राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। युवा नेता के तौर पर सक्रियता से कई आंदोलनों में भाग लिया और जेल भी गए।