एक राज्य में अकाल पड़ गया। वहां के राजा को बहुत नुकसान हुआ। उसे प्रजा से लगान नहीं मिल पाया। राज्य चलाने के लिए राजा के धन भी नहीं बचा था। राजा को ये भी चिंता थी कि पड़ोसी राजा हमला न कर दे। राजा ने एक बार अपने कुछ मंत्रियों को उसके खिलाफ षडयंत्र रचते भी पकड़ लिया था।
इन सारी परेशानियों की वजह से राजा रातभर जागते रहता था। उसकी नींद उड़ गई थी। उसे भूख नहीं लगती थी। उस राजा के शाही बाग के एक माली था। राजा रोज उसे देखता था, वह प्याज और चटनी के साथ रोटियां खाता था और हमेशा खुश रहता था।
राजा ने ये बातें अपने गुरु को बताई तो गुरु ने कहा, अगर आपको चौकीदार की नौकरी ज्यादा अच्छी लगती है तो ये राज्य मुझे दे दो और आप मेरे यहां नौकरी कर लो। मैं तो ठहरा साधू मैं आश्रम में ही रहूंगा, लेकिन इस राज्य को चलाने के लिए मुझे एक नौकर चाहिए।
आप पहले की तरह ही महल में रहें। राज सिंहासन पर बैठें और राज्य चलाएं, यही आपकी नौकरी होगी। इसकी पगार मैं आपको दूंगा। उसने गुरु की बात मान नौकरी स्वीकार कर ली। अब वह अपने काम को नौकरी की तरह करने लगा।
फर्क कुछ भी नहीं था काम वही था, लेकिन अब राजा जिम्मेदारियों और चिंता से लदा हुआ नहीं था। कुछ महीनों बाद उसके गुरु आए। उन्होंने राजा से पूछा, अब आपको भूख लगती है और नींद आती है या नहीं? राजा ने कहा, अब खूब भूख लगती है और आराम से सोता हूं।
गुरु ने राजा को समझाया, सब कुछ पहले जैसा ही है, लेकिन पहले तुमने जिस काम को बोझ समझ रखा था। अब सिर्फ उसे अपना कर्तव्य समझ कर रहे हो। हमें ये जीवन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए मिला है। किसी चीज को अपने ऊपर बोझ की तरह लादने के लिए नहीं मिला है। काम कोई भी हो, चिंता उसे और ज्यादा कठिन बना देती है। जो भी काम करें उसे कर्तव्य समझकर करें।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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