Saturday, June 14, 2025
- Advertisement -

बुलडोजर मॉडल स्वीकार्य न हो

Samvad 52


anjani kumarइस मानसून सत्र में राहुल गांधी का संसद में लौटना संसदीय लोकतंत्र में एक बड़ी घटना की तरह देखा गया। लेकिन, अब भी वह दृश्य आंखों में खटक रहा है जब संसद में राहुल गांधी ने कहा कि आज मैं दिमाग से नहीं दिल से बोलूंगा। उन्होंने जो भाषण दिया, उसमें दिल कहां था और दिमाग की अनुपस्थिति कहां थी, यह मैं कई बार टटोल गया। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं था जहां हाथ रखकर कहा जाय कि यहां दिल था और यहां दिमाग था। भारतीय राजनीति के पटल पर, भाजपा शासित राज्यों में हिंसा के कई मॉडल उभरकर आते हुए दिखे हैं और दिख रहे हैं। इन मॉडलों के बीच में एक प्रतियोगिता सी होती हुई दिख रही है।

दस साल को यदि हम अवधि मान लें, तब आपको पहला मॉडल लिचिंग का दिखाई देगा। इसके समानांतर लव जिहाद का मॉडल भी चल निकला। इन्हें लेकर कानून तक बनाये गये। लेकिन, जो सबसे अधिक चर्चित हुआ वह बुलडोजर मॉडल था। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश में यह मॉडल एक दूसरे से प्रतियोगिता करते हुए आगे निकल जाने में मानो भिड़े हुए थे।

इसका असर बेहद संक्रामक था। शिवसेना को जब महाराष्ट्र में सत्ता मिली तो वह भी इसका प्रयोग करने में पीछे नहीं रही। प्रसिद्ध कॉमेडियन कुणाल कामरा ने तो अपने कार्यक्रम में संजय राउत को बकायदा बुलडोजर का एक मॉडल भेंट कर दिया। शायद वह इसे जैसे को तैसा न्याय की अवधारणा के तौर पर देख रहे थे।

लेकिन, इस मानसून सत्र के समय में यह साबित हुआ कि बाबा का बुलडोजर सबसे आगे निकल चुका है। यह बुलडोजर की जीत थी। न्याय प्रणाली को धकियाते हुए एक किनारे कर देने वाली यह मशीन विधायिकाओं को महज शासकों के एक मंच से अधिक नहीं रहने दिया। इसके सामने नागरिक होने का कोई अर्थ नहीं बचा।

प्रशासनिक कार्रवाइयां बुलडोजर का रास्ता साफ करती हैं। और जब आप अपने घरों के दलान में बैठे होते हैं यह सामने आकर खड़ा हो जाता। तब आपको पता चलता है कि जहां आप हैं वहां कानूनन आपको नहीं होना चाहिए। देखते-देखते बुलडोजर आपके घरों को नोंच डालता है।

जब राहुल गांधी संसद में दिल और दिमाग में से एक का चुनाव कर रहे थे तब ऐसे बुलडोजर नूंह के इलाकों में प्रशासन के नेतृत्व में घरों, दुकानों, दलानों आदि को नोंच रहे थे। जिन लोगों की रिहाइशों को नोंचा जा रहा था, वे एक खास धर्म और समुदाय के थे। उससे उजड़ने वाले बड़ी संख्या में मजदूर थे। उच्च न्यायालय ने इसे ‘एथनिक क्लींजिंग’ का नाम दिया और इस पर रोक लगाया।

लेकिन मसला अभी रुका नहीं है। जिन लोगों के घर नोचे जा रहे थे, वे जार-जार रो रहे थे, वे शहर छोड़कर भाग रहे थे। जो गांव के ही थे वे पास के जंगलों की ओर भाग गये और जिनमें कुछ होश-हवास बचा था, वे कोर्ट की दौड़ लगा रहे थे। उनके सामने कोई खास चुनाव नहीं बचा था। उनके सामने दिल या दिमाग में से एक को चुनकर बोलने का मौका नहीं था।

यही हाल मणिपुर का है। स्थिति में कुछ खास सुधार पढ़ने को नहीं मिल रहा है। मणिपुर में हथियारों के लूटे जाने की खबरें काफी दिनों से आ रही थीं। अभी भी ये खबरें बंद नहीं हुई हैं। वहां बुलडोजर नहीं हैं। वहां एक मुख्यमंत्री हैं और उत्तर-पूर्व की केंद्र की अपनी नीति है। हथियारों का प्रयोग लोगों द्वारा खुलकर हो रहा है। इसका प्रयोग करने वाले खुद के प्रति और अपने समुदाय के प्रति न्याय करने के दावे के साथ कर रहे हैं।

पुलिस है, असम राइफल है, प्रशासन है और लोग हैं। वहां कितना संसदीय लोकतंत्र है, इस बारे में फिलहाल संसद में कोई ऐसी रिपोर्ट नहीं है जिससे इसके होने का पता लगाया जा सके। राहुल गांधी ने मणिपुर में इस भयावह स्थिति को ठीक करने के लिए संसद में जिस हल को सुझाया, वह सेना का प्रयोग है। वह मानते हैं कि सेना दो दिन में शांति बहाल कर सकती है।

इस सोच में उनका कितना दिल था और कितना दिमाग, कहना मुश्किल है। जब लोगों का खून बहा हो तब उन धब्बों को साफ करने का काम सेना कर सकेगी, ऐसा दावा न दिल करता है और न दिमाग ही। अराजकता उस स्थिति को जन्म देती है, जिसमें संवैधानिक और संसदीय प्रक्रिया अपनी प्रासंगिकता खोने लगती है।

खुद, चुने हुए प्रतिनिधि अपनी अर्थवत्ता खोने लगते हैं। प्रशासनिक अधिकारी महज एक साधन में बदल जाते हैं, जिन्हें या तो आदेशों का पालन करना है या अनुशासनहीनता का परिणाम झेलना है। इन प्रयोगों को देखना कोई कठिन काम नहीं है। इस बात को भाजपा अनजाने में कर रही है, ऐसा भी नहीं है।

यह एक मॉडल है जिसका प्रयोग कांग्रेस के ह्य70 सालह्ण के विरोध में किया जा रहा है। पिछले 70 सालों में संसदीय लोकतंत्र का जो रूप देखा गया, अब उसकी जगह इन दस सालों का एक मॉडल भी अब पेश हो चुका है। ऐसा लगता है कि संसदीय लोकतंत्र में 70 बनाम 10 एक विभाजक रेखा है।

अभी तक एक पार्टी बनाम दूसरी पार्टी की सरकार का मॉडल सामने होता था। कई बार इस मॉडल को सांपनाथ बनाम नागनाथ भी कह दिया जाता था। लेकिन, अब मॉडल को बदल दिया गया है। इसमें बुलडोजर एक प्रतीक बनकर उभरा है और बेपरवाही एक कार्यशैली की तरह। अब प्रधानमंत्री के लिए संसद बस एक औपचारिकता से अधिक नहीं दिख रही है।

अविश्वास प्रस्ताव की जरूरत आन बनी तो वह आकर बोल गये, उनके नारों के साथ सत्ता पक्ष ने कोरस किया। आप इस पर हंस सकते हैं। दरअसल, खुद मोदी भी देश के इन बुरे हालात पर ज्यादा समय हंसते हुए ही बोल रहे थे। वह एक शासक की तरह बोल रहे थे जिसमें समय का कोई अर्थ नहीं बचता है और बातों में किसी अर्थवत्ता की जरूरत ही नहीं रहती है।

ऐसे में राहुल गांधी का यह चुनाव करना कि दिल से बोलूं या दिमाग से, कोई खास अर्थ नहीं रखता है। आज जब 70 साल के मॉडल को बुलडोजर और बेपरवाही रौंद रहा है तब भले ही राहुल गांधी के सामने यह विकल्प हो कि वह दिल से बोलें या दिमाग से, लेकिन आम लोगों के सामने ऐसा कोई विकल्प नहीं है।

यह विकल्पहीनता उन लोगों के सामने भी है जिन्होंने 70 साल में ‘संसदीय लोकतंत्र को विकसित होते हुए देखा’ और उन लोगों के सामने भी जिन्होंने संसदीय लोकतंत्र को बेहतर करने का ख्वाब देखा। आज राजनीतिक मॉडल की जो विभाजक रेखा दिख रही है, वह किधर जाएगी, यह मूलत: जनता की उस चेतना में निहित है जिसमें वह एक नये विकल्पों को गढ़ती रही है। जब मॉडलों की विभाजक रेखा खिंच गई है।

तब आप आप दिल से बोलें या दिमाग से, मॉडल का फर्क तो दिखना ही चाहिए। बोलने का साहस और बोलने में स्पष्टता होना ही जरूरी नहीं है। इन मॉडलों की विभाजक रेखा पर खड़े बुलडोजर के सामने खड़े होने के साहस का इंतजार अब भी है। यदि आंदोलन बनाना है तब इन बुलडोजरों के सामने खड़े होकर कहना होगा, बस बहुत हुआ।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Saharanpur News: 11 वर्षीय आलिमा की ई-रिक्शा से गिरकर मौत,अज्ञात वाहन की टक्कर लगने से उछलकर हुई मौत

जनवाणी संवाददाता ।नानौता/सहारनपुर: रिश्तेदारी में जाते समय अज्ञात वाहन...

NEET UG 2025 का जारी हुआ Result, लाखों छात्रों का इंतजार खत्म, इस link पर click कर देखें अपना परिणाम

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...

Nail Care Tips: गर्मियों में ऐसे रखें नाखूनों का ख्याल, धूप और धूल से बचाने के आसान टिप्स

नमस्कार, दैनिक जनवाएणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

16 वर्षीय किशोर की करंट लगने से मौत, परिजनों ने अधीक्षण अभियंता, एसडीओ को बनाया बंधक

जनवाणी संवाददाता |सरसावा: थाना क्षेत्र के गांव कुंडी निवासी...
spot_imgspot_img