जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: साइकिल ट्रैक का जिक्र जैसे ही आता है, तभी पुरानी यादे कौंधने लगती है। क्योंकि एक एक्सईएन समेत तीन इंजीनियर साइकिल ट्रैक नामक घोटाले में जेल जा चुके हैं। तब यह बड़ा घोटाला था, लेकिन वर्तमान में कोई जिक्र नहीं है। जिस कंपनी ने यह कार्य किया है, उसे भी क्लीन चिट दे दी गई है, लेकिन जो इंजीनियर जेल गए, उनकी इज्जत की भरपाई कौन करेगा? साइकिल ट्रैक पर लाइट जल गई हैं।
काम पूरा हो चुका हैं। लाइट तो जल गई, लेकिन जो साइकिल ट्रैक बना था, वह क्लीयर नहीं है। उसकी राह में जगह-जगह अवरोध हैं। खंभे अभी तक ऊर्जा निगम ने नहीं हटाये? आखिर इसके लिए जवाबदेही किसकी हैं? एमडीए के कई उपाध्यक्ष आये और चले गए, लेकिन साइकिल ट्रैक की फाइल ही कोई छेड़ने को तैयार नहीं है।
जब इस साइकिल ट्रैक पर साढ़े तीन करोड़ रुपये खर्च हो चुके है तो फिर इसे जनता के लिए क्यों नहीं खोला गया है। कम से कम लोग साइकिल ट्रेक से साइकिल तो दौड़ा सकते हैं। इस तरह से तो सरकारी खजाने की फिजूलखर्ची की जा रही है। क्योंकि कई वर्षों से इसकी जांच अभी भी अधूरी बतायी जाती है।
इंजीनियर जेल चले गए। हाईकोर्ट से ठेकेदार को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन फिर भी जांच अधूरी क्यों हैं? ठीक है साइकिल ट्रैक सपा ने बनवाया था, लेकिन पैसा तो सरकारी खजाने से ही खर्च हुआ हैं। अब प्रदेश में भाजपा की सरकार है। भाजपा सरकार में पीएम आवास बनाये जा रहे हैं।
क्योंकि सरकार बदलने के बाद पीएम आवास जनता को आवंटित नहीं किये जाने चाहिए? पीएम आवास भी तो सरकारी खजाने से बनाये जा रहे हैं। इस तरह तो सरकारी खजाने का दुरुपयोग ही किया जा रहा है। जो भी सरकार आती है, वह अपनी योजना चलाती है।
पिछले सरकार ने जो योजना चलाई, उसको ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। भले ही उस योजना पर सरकार ने सरकारी खजाने से कितना भी धन क्यों नहीं खर्च किया हो?
जल गई लाइट
साइकिल ट्रैक पर स्ट्रीट लाइट जल गई है। ये लाइट अच्छी क्वालिटी की लगाई गई है। शहर में एक जगह भी इस तरह की लाइट नहीं लगाई गई है। सर्किट हाउस से लेकर गढ़ रोड तक बने साइकिल ट्रैक के किनारे पर स्ट्रीट लाइट लगाई गई है। यह लाइट विदेशों की तर्ज पर लगाई गई है।
रात में जब जलती है तो सुन्दरता चार चांद लगाती है, लेकिन लाइट के नीचे घास-फंूस उगा हुआ हैं, जिसको साफ कराने की फुर्सत सरकारी सिस्टम को नहीं है।
यहां लाइट पर सरकारी खजाने से खर्च तो कर दिया गया, लेकिन वर्तमान में शताब्दीनगर में स्ट्रीट लाइट पर एमडीए खर्च कर रहा हैं। खर्च तो कर दिया जाता है, लेकिन उसके बाद उसकी देख-रेख एमडीए नहीं कर पाता है। इस तरह से सरकारी धन का दुरुपयोग ही किया जा रहा है।