बच्चों के सर्वांगीण विकास में खेल और खेल के मैदानों के महत्व को लेकर बहुत लंबे समय से हमेशा बात की जाती है और उस पर अमल भी किया जाता रहा है। लेकिन अफसोस आज खेल के मैदान पर बात केवल एक बिंदु मात्र बनकर सीमित होकर रह गई है, उस पर कागजों से निकल कर धरातल पर कभी अमल नहीं किया जाता।देश में अव्यवस्थित विकास की अंधी दौड़ सरकारी संस्थाओं व बिल्डरों के अधिक धन कमाने के लालच ने बचपन को भी खेलने से रोकने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया है। देश में जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से शहरों, कस्बों व गांवों से खेल के मैदान बहुत तेजी से गायब होते जा रहे हैं, वह हमारे बच्चों के साथ-साथ हम सभी लोगों को चिंतित करने वाले है। क्योंकि हमारे बच्चों के सर्वांगीण विकास व पूर्ण शारिरिक विकास के लिए जीवन में खेलकूद बहुत आवश्यक है। घर से बाहर जाकर मैदान में खेलने से बच्चे की संचित ऊर्जा का सदुपयोग होता है और शारिरिक लाभ के साथ बच्चों को अच्छा समय बिताने की अनुमति देता है। खेल से ही बच्चों में शारिरिक बल के साथ-साथ आत्मबल भी बढ़ता है।
क्या सिस्टम में बैठे लोगों ने यह सोचा है कि सरकार का दायित्व बनता है कि वो बच्चों को खेलने की जगह निशुल्क व सुलभता से हर शहर कस्बे व गांव में आवश्यक रूप से उपलब्ध करवाएं। आज जिस तरह से गली-मोहल्ले के छोटे-बड़े पार्कों व खेल के मैदानों पर भूमाफियाओं, बिल्डरों व खुद सरकार ने खुद के बनाए हुए नियम-कायदों को ताक पर रखकर कब्जा जमाने के लिए गिद्ध दृष्टि लगाई हुई है, वह हमारे बच्चों के खुशहाल बचपन के लिए उचित नहीं है।
आज हमारे देश के शहरों के अधिकांश सेक्टरों में यह स्थिति हो गई है कि जब से खुले मैदान की जगह सौंदर्यकरण होकर वहां पर सुंदर पार्कों का निर्माण हुआ है, तब से ही संबंधित नगर पालिका, नगर निगम व आरडब्ल्यूए की पार्कों में खेलने पर रोक की वजह से बच्चों के खेल बंद हो गए हैं। आज देश के अधिकांश स्कूलों में खेल के मैदानों के नाम पर मान्यता लेने के लिए केवल कागजी खानापूर्ति हो रही है, जहां खेल के मैदान हैं, उनमें स्कूल के वाहनों की पार्किंग बन गई।
आज हमारी कॉलोनियों के पार्कों पर नियंत्रण करने वाली संस्थाओं ने अधिकांश पार्क के बाहर बड़े-बड़े शब्दों में नोटिस बोर्ड पर लिखवा रखा है कि यहां पर किसी तरह का खेल खेलने की सख्त मनाही है। अगर कोई बच्चा गलती से किसी पार्क में खेलने की कभी गुस्ताखी कर देता हैं, तो उसको पार्क के रखरखाव करने वाले कर्मचारी, आरडब्ल्यूए के पदाधिकारी और आसपास के निवासी तत्काल रोक देते हैं, जिसको लेकर के कई बार तो नासमझी के चलते बच्चों के अभिभावकों के साथ इन लोगों की लड़ाई तक भी हो जाती है।
आज प्रत्येक माता-पिता व अभिभावकों के लिए सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि रोजाना की चिकचिक व गायब होते खेल के मैदानों के चक्कर में बहुत सारे बच्चों ने तो घर से बाहर निकल कर बिल्कुल खेलना छोड़कर पूरे दिन मोबाइल या इनडोर खेलों पर लगकर फ्लैटों में बंद रहना शुरू कर दिया है, जिसके चलते देश के बच्चे तेजी से बहुत सारी गंभीर बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं। इसकी वजह से बच्चे तेजी से मोटापे के शिकार होते जा रहे हैं।
डॉक्टरों व विशेषज्ञों के अनुसार पूरे-पूरे दिन फ्लैटों में बंद रहने के कारण बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर बहुत तेजी से नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। घरों में बंद रहकर इंटरनेट व मोबाइल के उपयोग करने के चलते आज बच्चे अपने बचपन को भूलकर समय से पहले बड़े होते जा रहे है, जो स्थिति हमारे बच्चों के नजरिए से व समाज के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। देश में बहुत तेजी से बढ़ती आबादी और सेक्टरों में स्थित पार्कों के सौंदर्यकरण व डेवलपमेंट के चलते धीरे-धीरे पूरे शहर से खेल के मैदान गायब होते जा रहे हैं।
आजकल हालत यह हो गई है कि देश की राजधानी दिल्ली के पास स्थित उत्तर प्रदेश के बड़े शहर गाजियाबाद की उदाहरणार्थ अगर मैं बात करूं तो यहां की बड़ी कॉलोनियों को विकसित करने वाले गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने कोई भी निशुल्क छोटा-बड़ा खेल का मैदान नहीं छोड़ा है। इन कॉलोनियों में छोटे-बड़े पार्क तो हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश में खेल खेलना मना है।
यही स्थिति उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद’ के द्वारा विकसित आवास योजनाओं की है। हद तो वसुंधरा में हो गई है, जहां पर सेक्टर सात व आठ को जन सुविधाओं के लिए विकसित किया जाना था, जिसमें स्टेडियम भी था, लेकिन अब परिषद ने धन कमाने के लालच में नक्शे के विपरीत जाकर के मास्टर पालन में उसका भू उपयोग व्यवसायिक में परिवर्तन करवा लिया है। आवास विकास परिषद ने भू उपयोग बदलवा कर बच्चों के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है।
उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद ने निजी बिल्डर को भी पीछे छोड़ते हुए धन कमाने के लालच में खुद ही लोगों से छल करने का कार्य किया है। जिस तरह से वसुंधरा में स्टेडियम को समाप्त कर दिया गया, उसी तरह से देश के विभिन्न शहरों में धीरे-धीरे खेल के मैदानों को निजी व सरकारी तंत्र बहुत तेजी से आयेदिन लील रहा है।
खेल के गायब होते मैदानों पर मेरी देश के सर्वोच्च नीति निर्माताओं से गुजारिश है कि वो हमारे देश के भविष्य को स्वस्थ बनाए रखने के लिए व अवसाद मुक्त रखने के लिए देश से तेजी से गायब होते खेल के मैदानों को राज्य सरकारों के सामजंस्य से सुरक्षित करने का कार्य करें और प्रत्येक शहर कस्बे व गांव में खेलने के लिए नए स्थानों को चिन्हित करवा कर बच्चों को खेलने के लिए आवश्यक रूप से जगह उपलब्ध करवाएं।