Saturday, April 20, 2024
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भरपूर उत्पादन फिर भी दूध महंगा

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32 2अमूल ने दूध की कीमतें फिर 3 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ा दी हैं। पिछले ही साल अमूल दूध 8 रुपये प्रति लीटर महंगा हुआ था। अब पीछे- पीछे सारे दूध ब्रांड महंगे हो जाएंगे। देश में दूध की किल्लत नहीं है, फिर भी दूध के दाम लगातार उबाल मार रहे हैं। बीते तीस सालों के दौरान देश में प्रति व्यक्ति दूध उत्पादन दुगुना से ज्यादा बढ़ा है- 1991-92 में 178 से 2018-19 में 394 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन। कप का हिसाब लगाएं, तो आज देश में हर व्यक्ति के हिस्से डेढ़ कप से ज्यादा दूध आने लगा है, जो 1955 के आसपास महज आधे कप से भी कम था। आंकडों के मुताबिक 2018-19 में भारत का दूध उत्पादन लगभग 188 मिलियन मीट्रिक टन है, जो विश्व दूध उत्पादन का लगभग 21 प्रतिशत है। यह कम बड़ी बात नहीं है।

आज देश में दूध की कीमतों के नियंत्रण पर बेशक अमूल का राज है। लेकिन अमूल आने से पहले 1970 के सालों में तो देश के कई राज्यों में दूध पर पहरा लगने लगा था। बाकायदा उत्तर प्रदेश दुग्ध एवं दुग्ध पदार्थ नियंत्रण अधिनियम लागू किया गया, जिससे दूसरे राज्यों को दूध की सप्लाई पर रोक लग गई। यही नहीं, गर्मियों में पनीर और दूध की मिठाइयां बनाने- बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता, ताकि दूध का इस्तेमाल इनके लिए न हो सके।

इससे पहले 1965 में पश्चिम बंगाल में छैना स्वीट्स कंट्रोल आर्डर जारी किया गया, तो ऐसा ही कानूनी नियंत्रण पंजाब में 1966 में। इसी बीच दिल्ली में भी दूध की रोक-टोक के लिए कड़ा कानून लागू किया गया। कानूनी रोक के मुताबिक दिल्ली में विवाह समारोह में खोया, छैना, रबड़ी और खुरचन से बनी मिठाइयां नहीं खाई जा सकतीं। ऐसे नियम 25 से अधिक मेहमान संख्या के समारोह आयोजन पर लागू था।केंद्र सरकार भी ऐसे देशव्यापी अधिनियम लागू करने में पीछे नहीं थी।

नब्बे के दशक के मध्य तक हर साल गर्मियों के दो महीने दिल्ली समेत देश के ज्यादातर राज्यों में दूध से बने पदार्थों पर पाबंदी लगती रही। किसी- किसी साल तो दो बार प्रतिबंध लगाना पड़ता था। यानी खोया, पनीर वगैरह बनाने- बेचने पर सख्त पाबंदी रहती थी। इस दौरान बेसन बर्फी, मोती चूर लड्डू, पिन्नी, बालूशाही, पेठा, कराची हलवा वगैरह बिना खोए की मिठाइयों को बनाया- बेचा जा सकता था।आमतौर पर खोया- छैना के मुकाबले बाकी मिठाइयों की खपत 30 फीसदी ही होती है।

आज हर राज्य की अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं। पंजाब में वेरका, गुजरात में अमूल, हरियाणा में वीटा, राजस्थान में सरस, उत्तर प्रदेश में पराग, महाराष्ट्र में गोकुल व महानंद, मध्य प्रदेश में सांची, कर्नाटक में नंदिनी, केरल में नीलमा, तमिलनाडु में आविन, तेलंगाना में विजया,आंध्र प्रदेश में विशाखा, ओड़िसा में ओमफेड, पश्चिम बंगाल में बेनमिल्क, असम में पूरबी और बिहार में सुधा कुछ राज्यों की बड़ी दुग्ध सहकारियां हैं। कह सकते हैं कि आज बेशक भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन करीब 75 साल पहले दूध की नदियां बहाने में छोटी- सी शुरुआत हुई थी गुजरात के कैरा जिले से।

तब आज के आनंद के दो गांवों से केवल 250 लीटर दूध एकत्रित कर श्रीगणेश किया गया। दरअसल, इस सहकारी संगठन का लक्ष्य ‘पोलसन डेयरी’ नामक एक प्राइवेट दुग्ध कंपनी के एकाधिकार का सफाया करना था।अंग्रेजी हुकूमत के दौरान पोलसन डेयरी खासी फलती- फूलती रही। साल 1946 में प्रारम्भ यह एक प्रकार का आंदोलन या क्रान्ति ही थी। इसकी रूपरेखा सरदार वल्लभभाई पटेल, मुरारजी देसाई जैसे देश के कद्दावर नेताओं ने बनाई थी।तब तक पोलसन डेयरी ने कैरा जिÞले में दूध उत्पादन समूचे अधिकार हासिल कर लिए थे।पहली दफा ही अंग्रेजों ने दूध उत्पादन में दखलंदाजी शुरू की थी।किसान और ग्वाले अंग्रेजों के इस कदम से आक्रोशित थे क्योंकि पोलसन डेयरी उनका शोषण करने लगी थी।

इसी बीच, मिशिगन यूनिवर्सिटी के युवा छात्र डॉ वर्गीज कुरियन छह महीने के सरकारी छात्रवृत्ती पाठ्यक्रम के अंतर्गत आनंद आए, और ताउम्र यहीं के हो कर रह गए।वह न्यूक्लियर पीजिक्स में आगे बढ़ना चाहते थे, लेकिन सहकारी दुग्ध आंदोलन ने उनकी जिंदगी को ऐसे मायने दिए कि किसानों की भलाई के लिए यदा- कदा अपना वेतन तक गंवाने लगे।आजादी के बाद पोलसन डेयरी से सरकार का अनुबंध टूट गया और कैरा सहकारी को डेयरी स्थापित करने के लिए कहा गया।देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नवंबर 1954 में नींव रखी और अक्टूबर 1956 में सरदार पटेल के जन्मदिवस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डेयरी का उद्घाटन किया।

तभी कुरियन सर की मुलाकात डेयरी तकनीक के महारथी एच एम दलाया से हुई। बंटवारे की वजह से वह कराची की सबसे बड़ी डेयरी से बेदखल हो गए थे। उनके पास भैंस के दूध से दुग्ध पाउडर बनाने का हुनर था। भारतीय डेयरी उद्योग के लिए यह जादू की छड़ी से कम नहीं था। इससे पहले विकसित देशों के डेयरी उद्योग की धारणा थी कि दुग्ध पाउडर केवल गाय के दूध का ही बनाना चाहिए। न्यूजीलैंड जैसे दूध के बड़े उत्पादक देशों ने भैंस के दूध को पाउडर में परिवर्तित करने की योजना को सिरे से नकार दिया। लेकिन कुरियन सर इसे सफल बनाने में जुट गए। सन् 1957 में अमूल ब्रांड की स्थापना की गई।

अमूल का शाब्दिक अर्थ है अनमोल और वाकई अमूल्य बन कर उभरा। तभी एक लाख लीटर प्रति दिन की क्षमता का पहला डेयरी प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया। 1960 के दशक के मध्य सालों में सहकारी दुग्ध आंदोलन सूरत, वडोदरा वगैरह गुजरात के अन्य शहरों में भी फैलता गया। लेकिन देश के अन्य राज्य अभी तक श्वेत क्रांति से अछूते ही थे।

फिर 1964 के एक दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अमूल की गाय- भैंस के मैदानों का उद्घाटन करने गए। तब उन्होंने आनंद की विजय गाथा पर बारीकी से गौर किया। अमूल सहकारी से प्रेरित हो कर, उन्होंने वर्गीज कुरियन की अध्यक्षता में देश भर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की।जुलाई 1970 आते- आते देश भर में ‘आॅपरेशन फ्लड’ का आगाज हुआ। यही ‘श्वेत क्रांति’ बन कर देश के कोने- कोने में फैल गई। देखते ही देखते 1990 के आखिरी सालों तक दूध की कमी से जूझता भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन कर उभरा। और भारत पिछले 22 वर्षों से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है।


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