रोज की तरह मंदिर के सामने वाले पीपल के पेड़ की छांव में स्कूल से आते हुए कई बच्चे सुस्ताने से ज्यादा उस बूढ़े की कहानी सुनने के लिए उत्सुक आज भी उस बूढ़े के इर्द-गिर्द बैठ गए और बोले, ‘दादाजी दादा जी आज भूत की कहानी नहीं सुनाओगे?’ बूढ़े ने कहा, ‘नहीं आज मैं तुम्हें इंसानों की कहानी सुनाऊंगा।
वो देखो उस घर के ऊपर जो कौवे मंडरा रहे हैं, आज वहां उस लाचार बूढ़े का श्राद्ध मनाया जा रहा है, जो पैरों से चल नहीं सकता था। पिछले वर्ष उसकी खटिया जलने से मौत हुई थी।
उसकी खाट के पास उसकी बहू ने एक छोटी सी स्टूल पर भगवान की फोटो रखी और कुछ अगरबत्तियां सोते हुए बूढ़े के हाथ में माचिस और एक अगरबत्ती पकड़ा दी और उसके बिछौने के चारों कोनों में आग लगाकर दरवाजा बंद करके कर चली गई।
सुबह आग की लपटों को देख आसपास के लोगों ने बूढ़े को अधजला मृत पाया और बात फैल गई कि पूजा करते हुए बिस्तर में चिंगारी लग गई और ये हादसा हो गया। जीते जी तो इंसानों की कद्र नहीं करते और मरने के बाद देखो कैसा जश्न मना रहे हैं।
देखो, जो आज भोजन की थाली में हलुआ रखा है न उस हलुए के लिए मैं हमेशा तरसता-तरसता चला गया। बच्चों ने, जो अभी तक कौवों को ही देख रहे थे, यह सुनते ही अचानक जो पलट कर देखा, वो बूढ़ा दादा जी गायब था और बच्चे अनसुलझी पहेली को सुलझाने में लगे थे।
जो वाणी बूढ़ा सुना गया था, वह आज आम है। हम अपने बुजुर्गों की जीते जी तो सेवा नहीं करते, लेकिन मरने के बाद कई तरह के आडंबर जरूर करते हैं।