Friday, March 29, 2024
Homeसंवादसप्तरंगअंधेरे के बीच

अंधेरे के बीच

- Advertisement -

अमृतवाणी


एक था चूहा, एक थी गिलहरी। चूहा शरारती था। दिन भर ‘चीं-चीं’ करता हुआ मौज उड़ाता। गिलहरी भोली थी। ‘टी-टी’ करती हुई इधर-उधर घूमा करती। संयोग से एक बार दोनों का आमना-सामना हो गया। अपनी प्रशंसा करते हुए चूहे ने कहा, ‘मुझे लोग मूषकराज कहते हैं और गणेशजी की सवारी के रुप मे रूप में खूब जानते हैं।

मेरे पैने-पैने हथियार सरीखे दांत लोहे के पिंजरे तो क्या, किसी भी चीज को काट सकते हैं।’ मासूम-सी गिलहरी को यह सुनकर बुरा सा लगा। उसे लगा कि चूहे महाराज की बातों में घमंड बोल रहा है। बोली, ‘भाई, तुम दूसरों का नुकसान करते हो, फायदा नहीं। यदि अपने दांतों पर तुम्हें इतना गर्व है, तो इनसे किसी का नुकसान नहीं, कोई नक्काशी क्यों नहीं करते? इनका उपयोग करो, तो जानूं! जहां तक मेरा सवाल है, मुझमें तुम सरीखा कोई गुण नहीं है। जो दाना-पानी मिल जाता है, उसका कचरा साफ करके संतोष से खा लेती हूं।

मेरे बदन पर तीन धारियां देख रहे हो न, बस ये ही मेरी खास चीज है।’ चूहा बोला, ‘तुम्हारी तीन धारियों की विशेषता क्या है?’ गिलहरी बोली, ‘वाह! तुम्हें पता नहीं? दो काली धारियों के बीच एक सफेद धारी है। यह अंधेरे के बीच आशाओं का प्रकाश है।

दो काली अंधेरी रातों के बीच ही एक सुनहरा दिन छिपा रहता है। यह प्रतीक है कि कठिनाइयों की परतों के बीच में ही असली सुख बसता है।’ सुनकर चूहा लज्जित हो गया। सामर्थ्य का उपयोग दूसरों को हानि पहुंचाने में नहीं, आशा जगाने में होनी चाहिए।


SAMVAD 5

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments