Thursday, April 25, 2024
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जानिए, क्या है आर्यन खान की प्याज के छिलके वाली तकनीक ?

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जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: ड्रग्स मामले में गिरफ्तार शाहरुख खान के बेटे ‘आर्यन खान’ व दूसरे आरोपियों की कड़ियां अब धीरे-धीरे जुड़ रही हैं। इन लोगों के पास ड्रग्स कहां से आती है, कैसे आती हैं और सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों की कौन सी कमी का ये लोग फायदा उठाते हैं, ऐसी कई बातों का खुलासा हुआ है।

खासतौर पर, युवा पीढ़ी को उस ‘दुकान’ का पता मालूम हो गया है, जहां पर नशा, हथियार और साइबर क्राइम बिकता है। वे उस दुकान के ग्राहक बनने को लालायित हैं। दुकान की एक खासियत यह भी है कि वह अपने ग्राहकों को पूरी सुरक्षा प्रदान करती है। कौन ले रहा है और कौन दे रहा है, ये कोई नहीं जानता।

हां, बिना किसी झंझट के माल पहुंचने की गारंटी होती है। ‘आर्यन खान व गप्पी’ ही नहीं, बल्कि नशे की लत वाले दूसरे लोग भी इसी ‘प्याज के छिलके’ उतारने वाली तकनीक यानी ‘ओनियन राउटिंग’ का इस्तेमाल करते हैं। जांच एजेंसियों के लिए अभी यह ‘दुकान’ एक चुनौती है। सायबर विशेषज्ञ कहते हैं, डार्क वेब को लेकर अब सुरक्षा एजेंसियों की भूख बढ़ रही है।

एनसीबी के मुताबिक, व्हाट्सएप चैट, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम और सोशल मीडिया के दूसरे माध्यम, ड्रग्स का सौदा करने के बड़े प्लेटफार्म बनते जा रहे हैं। ड्रग्स के सौदागर और ठिकाने तक पुख्ता डिलीवरी करने वाले पैडलर यानी ‘गप्पी’ आजकल ‘दुकान’ की मदद लेने लगे हैं।

वह दुकान, जहां पर अपराध करने का सामान और तकनीक, दोनों मिल जाती हैं। साइबर विशेषज्ञ रक्षित टंडन बताते हैं, डार्क वेब या डार्क नेट, ड्रग्स की बुकिंग और सप्लाई का एक बड़ा जरिया बन गया है। अमेरिका ने डार्क वेब का यह फुल प्रूफ सिस्टम अपनी सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों के लिए तैयार किया था।

जब यह सिस्टम लोगों के पास गया तो उन्होंने अपने तरीके से इसे तोड़कर इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। इसे ‘टोर’ और ‘द ओनियन राउटर’ भी कहा जाता है। यही वो नेटवर्क है, जहां पर यूजर को छिपा दिया जाता है। इसके इस्तेमाल से इंटरनेट पर असली यूजर सामने नहीं आता। यूजर कहां पर है, उसकी ट्रैकिंग और सर्विलांस, जांच एजेंसियों के लिए यह काम बहुत मुश्किल होता है।

बतौर रक्षित टंडन, जब कोई व्यक्ति डार्क नेट की दुनिया में घुसता है तो किसी दूसरे देश की लोकेशन आती है। अगले कदम पर दोबारा से लोकेशन बदल जाती है। कई देशों में एंट्री होने के बाद जब बाहर निकलने की बारी आती है तो वेब पर कोई अन्य देश दिखाई पड़ता है।

ऐसे में जांच एवं सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह पता लगाना बहुत कठिन होता है कि सर्वर कहां बना हुआ है। यह सौ फीसदी ट्रेसेबल नहीं है। आजकल स्कूल, कालेज व यूनिवर्सिटी के बच्चे डार्क नेट पर जाने लगे हैं। नशे की लत लगने के बाद ट्यूशन फीस उड़ा देते हैं। उसके बाद चोरी और साइबर क्राइम की तरफ बढ़ जाते हैं।

पहले टेलीग्राम, इंस्टाग्राम पर कोड वर्ड में नशा बुक करते हैं। जब यहां मुश्किल आने लगती है तो वे डार्क नेट का सहारा लेते हैं। उन्हें मालूम है कि पुलिस या एनसीबी जैसी एजेंसियों का यहां तक पहुंचना आसान नहीं होता। डार्क नेट पर गप्पी और ग्राहक का आपस में कोई लिंक नहीं रहता। वे पेमेंट भी बिटकॉइन से करते हैं। ऐसे में उनका लेनदेन भी छिप जाता है। मुंबई में आर्यन खान व दूसरे आरोपियों के केस में ड्रग्स मंगाने के लिए इन्हीं साधनों का इस्तेमाल होने की बात सामने आई है।

डार्क नेट का इस्तेमाल, केवल ड्रग्स या हथियार के लिए नहीं होता। आजकल ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ जैसे गंभीर अपराध के लिए डार्क नेट की मदद ली जा रही है। पिछले साल ऐसे कई रैकेट पकड़े गए थे। रक्षित टंडन बताते हैं, डार्क वेब एक ऐसी दुकान है, जहां से आप साइबर क्राइम या नशा खरीद सकते हैं।

युवाओं से अपील है कि वे इस तकनीक से दूर रहें। इससे उनका कंप्यूटर या मोबाइल हैक हो सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल केवल एडवांस हैकर ही कर सकते हैं। बिना किसी गाइड के डार्क नेट में घुसना नुकसानदायक साबित होता है। इस बाबत पुलिस एवं केंद्रीय जांच एजेंसियों को ट्रेनिंग दी जा रही है।

लिहाजा इंटरनेट और सोशल मीडिया के अधिकांश प्लेटफार्म जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, गूगल, याहू और यूट्यूब आदि के सर्वर भारत से बाहर हैं। ऐसे में वहां तक पहुंचने के लिए भारतीय जांच एजेंसियों को एक विशेष प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। भारत ने इसके लिए 42 देशों के साथ परस्पर वैधानिक सहायता संधि या समझौता किया है। इसे ‘एमलेट’ संधि का नाम दिया गया है।

आर्यन खान पर एनडीपीएस की जो धाराएं 8C, 20B, 27 व 35 लगाई गई हैं, उनमें ड्रग्स खरीदना, जानबूझकर ड्रग्स लेना या सेवन करना, आदि शामिल है। आर्यन और गप्पी के बीच कोडवर्ड में बातचीत हुई है। जांच एजेंसी यह पता लगा रही है कि डार्क नेट के जरिए क्रूज पर सवार अन्य लोगों में से कितने लोगों ने ड्रग्स मंगाई थी।

साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन कहते हैं, डार्क नेट को लेकर अब यूएस और दूसरे कई देशों में सावधानी बरती जा रही है। हालांकि डार्क नेट पर अपराध होने से पहले उसका पता लग जाए, ऐसा कहीं भी संभव नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए ‘अलर्ट’ मिल जाए, ऐसा सिस्टम तैयार करने पर काम हो रहा है।

जैसे चाइल्ड पोर्नोग्राफी या ड्रग्स को लेकर कुछ ‘की-वर्ड’ का अलर्ट मिल जाएगा। व्हाट्सएप का उदाहरण सामने है। उस पर नियमों के उल्लंघन वाला कंटेट जाते ही अकाउंट बंद हो जाता है। डार्क नेट के जरिए जो अपराध हो रहे हैं, वहां तक पहुंचने के लिए भी रेड अलर्ट जैसा सिस्टम तैयार किया जा रहा है। यह सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ‘एआई’ बेस्ड टूल्स के जरिए संभव हो सकता है। भारत में इस बाबत अच्छा काम हो रहा है। केंद्रीय जांच एवं सुरक्षा एजेंसियां इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं।

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