एक तपस्वी, जो एक नगर में रहते थे, भगवान की भक्ति में अपना अधिकांश समय व्यतीत करते थे। एक बार नगर भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया। सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए नगर छोड़ कर जाने लगे तो उन्होंने तपस्वी से भी पूछा, महाराज बाढ़ से बचना है तो हमारे साथ चलिए। तपस्वी बोले, तुम अपनी जान बचाओ, मेरी रक्षा तो भगवान करेंगे। पानी का स्तर धीरे धीरे बढ़ने लगा।
तभी वहां से एक नाव गुजरी। मल्लाह ने कहा, हे साधु महाराज, मेरी नाव में सवार हो जाओ, मैं तुम्हे सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा। तपस्वी ने उत्तर दिया, मुझे आपकी आवश्यकता नहीं है, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा। मल्लाह अपनी नाव लेकर वहां से चला गया। कुछ देर बाद बाढ़ अपनी चरम पर पहुंच गई। तपस्वी एक पेड़ पर चढ़ कर बैठ गए और अपने ईश्वर को याद करने लगे।
इतने में एक बचाव दल का हेलीकॉप्टर वहां पहुंचा। पायलट ने तपस्वी को पेड़ पर देख लिया और बचाव दल ने रस्सी तपस्वी की ओर डाली और रस्सी पकड़ कर ऊपर आने की बात कही। परंतु तपस्वी ने फिर उत्तर दिया, मुझे तो मेरा भगवान ही बचाएगा, तुम यहां से जाओ। बचाव दल भी तपस्वी को बिना बचाए ही वहां से चला गया। कुछ ही देर में पेड़, बाढ़ के पानी के साथ बह गया और तपस्वी की मृत्यु हो गई।
मृत्यु उपरांत तपस्वी स्वर्ग में पहुंचे और वहां अपने इष्ट से शिकायत करने लगे कि मैंने आपकी इतनी भक्ति और तपस्या की, पर मुसीबत में आप मुझे बचाने नहीं आए। ईश्वर बोले, मेरे प्रिय भक्त, मैं तो तुम्हें बचाने एक बार नहीं, तीन बार आया। पहली बार मैं गाववालों के रूप में आया, फिर मल्लाह के रूप में आया और फिर बचाव दल के रूप में आया, पर तुम ही मुझे पहचान नहीं पाए। अगर हम पहचान लें तो अवसर हमारे लक्ष्य तक पहुंचा देते हैं।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा