प्रत्येक धर्म समुदाय में जाने अनजाने में किए गए बुरे कर्मों और पाप से मुक्ति के लिए अलग अलग अनुष्ठान , रीति रिवाज , विधान बने हुए हैं। जैसे ईसाई समुदाय में लोग चर्च में कन्फेशन रूम में अपने द्वारा हुई गलतियों के लिए प्रभु के सामने कॉन्फेस करते है कि प्रभु यीशु उन्हे , उनके बुरे कर्मों के लिए क्षमा प्रदान करें। हिंदू धर्म में अनजाने में हुए बुरे कर्मों के दंड से मुक्ति हेतु पापमोचनी एकादशी व्रत का अनुसरण व्यक्ति को ऐसे पापों से मुक्त कर सकता है।
एकादशी व्रतों की संख्या एवं नाम
हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में मासिक एकादशी का बहुत महत्व है। पूरे वर्ष भर में अधिकमास को छोड़कर , 24 ( शुक्ल और कृष्ण पक्ष ) एकादशियां आती हैं जिन्हें धार्मिक अनुष्ठानों और पर्वों के अनुसार भिन्न भिन्न नामों से संबोधित किया जाता है जैसे पापमोचनी, कामदा, मोहिनी, वरुथिनी, अपरा, निर्जला, योगिनी, देवशयनी, कामिका, श्रवण पुत्रदा, अजा, पाश्र्व, इंदिरा, पांपकुशा, रमा, देव उठनी, उत्पन्ना, मोक्षदा, सफला, पौष पुत्रदा, षटतिला, जया, विजया, आमलकी हिन्दू धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने पाप नहीं हुआ हो। पाप एक प्रकार की गलती है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता हैं अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का हृदय से स्मरण किया जाए ।
पापमोचनी एकादशी की कथा
पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पाप मोचिनी है अर्थात पाप को नष्ट करने वाली है। राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से पूछा, प्रभु! यह बताएं कि मनुष्य अनजाने में हुए पाप से कैसे मुक्त हो सकता है?
राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुंदर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव ने भी अप्सरा की मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता की। अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं। उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और ऋषि ने अप्सरा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे दिया। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के समक्ष गिड़गिड़ाने लगी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय करने लगी।
मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप का निवारण हुआ। उधर अप्सरा भी व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो , स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी।
पापमोचनी एकादशी की अनुष्ठान विधि
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। साधक को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन कर, मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि स्मरण में मन को लगाना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु को जल, पीला फूल, माला, पीला चंदन, अक्षत आदि चढ़ाएं। इसके बाद केला सहित अन्य भोग लगाएं और तुलसी दल चढ़ाएं। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भगवद कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। एकादशी तिथि को रात्रि जागरण का कई गुणा पुण्य मिलता है। अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत होकर ,विष्णु भगवान की पूजा अर्चना के उपरांत, ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही स्वयं भोजन करना चाहिए।
पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्व
जिस तरह भगवान श्रीराम पर रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या का दोष लगा था और उन्होंने इस दोष की मुक्ति के लिए कपाल मोचन तीर्थ में स्नान और तप किया था। ठीक उसी प्रकार पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।पद्मपुराण के अनुसार, एकादशी को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सांसारिक सुखों को भोगने के साथ मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम मिलता है। पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने से ब्रह्महत्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
पापमोचनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
ज्योतिषचार्य पंडित सुरेश चंद्र शर्मा के अनुसार, इस साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 04 अप्रैल, 2024 दिन बृहस्पतिवार शाम 04 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी तथा इसका समापन अगले दिन 05 अप्रैल, 2024 दिन शुक्रवार दोपहर 01 बजकर 28 मिनट पर होगा। चूंकि उदयातिथि 5 अप्रैल को होगी अत: पापमोचनी एकादशी का व्रत 05 अप्रैल को ही रखा जाना सर्वश्रेष्ठ होगा।