- जन्म से छह माह तक मां का दूध ही होता है बच्चे के लिए सम्पूर्ण आहार
- लेटकर स्तनपान कराने से हो सकता है कान में इंफेक्शन
जनवाणी संवाददाता |
सहारनपुर: स्तनपान के एक नहीं हजार फायदे हैं। इससे जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। हां, स्तनपान के दौरान बच्चे का सिर स्तन से ऊंचा या 45 डिग्री के कोण में रखना चाहिए। डाक्टरों की राय में इसीलिए बैठकर स्तनपान कराना सबसे उचित होता है। लेटकर स्तनपान कराने से कान का इंफेक्शन हो सकता है। ऐसे में मांओं को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्तनपान कराने का असर ये होता है कि इससे शिशु मृत्युदर में भी कमी आएगी।
यह बताने की जरूरत नहीं स्तनपान सप्ताह चल रहा है। ऐसे में महिलाओं को विशेष जानकारियां उपलब्ध कराई जा रही हैं।मसलन, स्तनपान के फायदे बताए जा रहे हैं। जिला कार्यक्रम अधिकारी आशा त्रिपाठी ने बताया कि शिशु को दूध पिलाने के बाद तुरंत बिस्तर पर नहीं लिटाना चाहिए, क्योंकि ऐसी स्थिति में शिशु पिया गया दूध मुंह से निकाल सकता है। दूध पिलाने के बाद उसे कंधे पर लेकर पीठ पर धीरे-धीरे हाथ फेरें। इससे बच्चे के पेट में दूध का पाचन होता है। जन्म के तुरंत बाद बच्चे को कराया गया स्तनपान कई रोगों से लड़ने की क्षमता देता है। बच्चे में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वह रोगों से लड़ने में समर्थ हो जाता है। यही नहीं, आगे चलकर भी बच्चा स्वस्थ रहता है। हर मां को अपने बच्चे को कम से कम छह माह तक केवल अपना ही दूध पिलाना चाहिए। शिशु की अच्छी सेहत के लिए सभी माताओं को बच्चों को अपने दूध का ही सेवन कराना चाहिए। आशा त्रिपाठी ने बताया कि स्तनपान के लिए विभिन्न माध्यमों से महिलाओं को जागरूक किया जा रहा है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ सभी आशा कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में गर्भवती को स्तनपान कराने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
जिला अस्पताल में तैनात बाल रोग विशेषज्ञ डा. वीरेंद्र भट्ट का कहना है कि बच्चे का जन्म होने के 24 घंटे बाद तक मां के दूध में कोलोस्ट्रम निकलता है। इसमें बहुत अधिक मात्र में एंटीबॉडीज होते हैं। जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात को स्तनपान शुरू कराने से 20 फीसद शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है।
स्तनपान से मां को लाभ
गर्भाश्य का संकुचन हो जाता है जिससे आंवल आसानी से छूट जाती है।
प्रसव के बाद अधिक रक्तस्राव का खतरा कम हो जाता है।
स्तन कैंसर,गर्भाश्य कैंसर और अंडाशय के कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
हड्डियों के कमजोर पड़ने के प्रकरण कम हो जाते हैं।
परिवार नियोजन में कुछ हद तक सहयोग प्राप्त होता है।