Thursday, March 28, 2024
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सामयिक: कोरोना में टीकाकरण बड़ी चुनौती

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डॉ. श्रीनाथ सहाय
डॉ. श्रीनाथ सहाय
विश्व ने कोरोना वायरस संक्रमण के एक साल बाद उससे मुक्ति पाने की कारगर वैक्सीन तलाश ली है। अब पूरी दुनिया इस महामारी की समाप्ति के अंतिम चरण की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुकी है। रूस, ब्रिटेन व अमेरिका आदि देशों में टीकाकरण की शुरुआत हो चुकी है। हालांकि, रूस की वैक्सीन स्पुतनिक को गंभीरता से नहीं लिया गया लेकिन अमेरिकी कंपनी फाइजर व बायोएनटेक की वैक्सीन को गंभीरता से लिया गया, जिसकी सबसे पहली शुरुआत ब्रिटेन में हो चुकी है। भारत में भी वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है। भारत बॉयोटेक, सीरम इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया के अलावा फाइजर ने वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी है। लेकिन केंद्र के सामने चुनौती इस बात की है कि सवा करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में वैक्सीन संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील वर्ग व उम्रदराज लोगों को पहले मिले। देश में कुछ हफ्तों में वैक्सीन उपलब्ध होने की उम्मीद है। एक अरब से ज्यादा की आबादी वाले देश में हर किसी को वैक्सीन मिल पाएगी या नहीं? इस सवाल और टीकाकरण अभियान में आने वाली चुनौतियों को लेकर चिंता जताई जा रही है।
दरअसल, कोरोना से लड़ाई के अंतिम चरण में जरूरतमंदों तक वैक्सीन पहुंचाने के मार्ग में कई तरह की चुनौतियां शामिल हैं। इसमें टीके का उत्पादन, खरीद, भंडारण, परिवहन, वितरण और कुशल प्रबंधन शामिल हैं। चिकित्सा तंत्र के ढांचे को देखते हुए आकलन है कि पहले चरण में तीस करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जाएगी, जिसके जुलाई-अगस्त तक पूरा होने का अनुमान है। केंद्र सरकार के विभिन्न निर्देशों में से एक निर्देश यह है कि प्रत्येक दिन हर सत्र में 100-200 लोगों को टीका दिया जाएगा जिसके बाद आधे घंटे तक उन लोगों पर नजर रखी जाएगी कि किसी पर इसके प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं है। इसके अलावा एक वक्त पर सिर्फ एक व्यक्ति को टीके के लिए सेंटर के अंदर जाने की अनुमति होगी। राज्यों को जारी किए गए दिशानिर्देशों में कहा गया है कि टीका लेने वाले लोगों और कोरोना वायरस की वैक्सीन को ट्रैक करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म कोविड वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (को-विन) सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा। टीकाकरण वाली जगह पर सिर्फ पहले से पंजीकृत लोगों को ही टीका दिया जाएगा ताकि प्राथमिकता तय की जा सके। उसी समय पंजीकरण का कोई प्रावधान फिलहाल नहीं किया गया है।
भारत में बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं, यहां दुनिया भर की 60 प्रतिशत वैक्सीन बनती हैं और यहां आधे दर्जन वैक्सीन निर्माता मौजूद हैं, जिनमें दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शामिल है। इसमें हैरानी की बात नहीं कि भारत सरकार अरबों लोगों तक कोविड-19 की वैक्सीन पहुंचाने की इच्छा रखती है। भारत की अगले साल जुलाई तक वैक्सीन की 50 करोड़ डोज बनाने और 25 करोड़ लोगों का टीकाकरण करने की योजना है। उम्मीद है कि जब तक अगले दो वर्षों में हर व्यक्ति तक वैक्सीन पहुंचेगी, तब तक कोरोना वायरस का खात्मा हो चुका होगा। आने वाले समय में टीके के कई विकल्प मौजूद होंगे क्योंकि दो टीकों को आपातकालीन उपयोग की अनुमति मिल चुकी है और छह अन्य टीके इसके करीब हैं। भारत का ये आत्मविश्वास तब और बढ़ जाता है जब वो हर साल बड़ी संख्या में टीकाकरण के अपने पिछले रिकॉर्ड को देखता है। देश का 42 साल पुराना टीकाकरण अभियान दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य अभियानों में से एक है जिसे 55 करोड़ लोगों तक पहुंचाया जाता है। इनमें खासतौर पर नवजात शिशु और गर्भवती महिलाएं शामिल हैं जिन्हें हर साल कई बीमारियों से बचाव के लिए वैक्सीन की करीब 39 करोड़ मुफ्त खुराकें मिलती हैं। भारत के पास इन वैक्सीन को संग्रहित करने और उन पर नजर रखने का एक बेहतरीन इलैक्ट्रॉनिक सिस्टम भी है। इन सबके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि पहली बार लाखों वयस्कों सहित अरबों लोगों तक कोरोना की वैक्सीन पहुंचाना सरकार के सामने एक असाधारण चुनौती होगी।
भारत में विकसित की जा रहीं 30 वैक्सीन में से पांच का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। इनमें से एक है आॅक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनिका की वैक्सीन जिस पर फिलहाल भारत के सीरम इंस्टीट्यूट में ट्रायल चल रहा है। भारत बायोटेक एक स्वदेशी कोरोना वैक्सीन विकसित कर रही है। वास्तव में ऐसे वर्ग को वैक्सीन पहले मिलनी चाहिए, जिसने संकट में अपनी जान की परवाह न कर कोरोना के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया है। जबकि विशिष्ट वर्ग अपने घरों तक सीमित थे। इसके अलावा उन क्षेत्रों में सक्रिय लोगों को प्राथमिकता देनी होगी, जो भीड़भाड़ वाले इलाकों में रहने को मजबूर हैं। मसलन कैदियों, भीड़-भाड़ वाले व्यापारिक प्रतिष्ठानों व सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। फिलहाल जिस भी वर्ग को पहले वैक्सीन न मिले, उन्हें शांति व धैर्य से उन उपायों का गंभीरता से पालन करना चाहिए, जो कोरोना संकट में कारगर बताये जा रहे थे, जिससे संक्रमण की किसी भी संभावना को टाला जा सके।
वैक्सीन प्रभावी रहे इसके लिए जरूरी है कि उसे उचित तापमान पर स्टोर किया जाए। भारत में 27,000 कोल्ड स्टोर्स हैं जहां से संग्रहित की गईं वैक्सीन को 80 लाख स्थानों पर पहुंचाया जा सकता है। लेकिन, क्या ये पर्याप्त होगा? देश में जितनी संख्या में वैक्सीन की जरूरत होगी, उतनी ही संख्या में अपने आप नष्ट हो वाली सीरिंज की भी जरूरत होगी ताकि उनके दोबारा इस्तेमाल और किसी तरह के संभावित संक्रमण को रोका जा सके।
अच्छा होगा कि देश में तैयार वैक्सीन को ही प्राथमिकता मिले क्योंकि कीमत और परिस्थिति के हिसाब से वह अनुकूल है ताकि देश के हर गरीब आदमी को भी वैक्सीन का लाभ मिल सके। निस्संदेह वैक्सीन निर्माण में भारत की महारथ इस लक्ष्य को हासिल करने में मददगार होगी। इतना ही नहीं, दुनिया के गरीब व विकासशील देश भारत की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं। वैक्सीन उपलब्ध कराने में केंद्र व राज्यों का सहयोग कारगर होगा। वहीं कई राज्यों के मुफ्त टीका उपलब्ध कराने के वादे से आर्थिक बोझ सरकारों पर तथा अंतत: आम आदमी पर ही पड़ेगा। टीकाकरण की प्रक्रिया पारदर्शी, तर्कसंगत तथा न्यायपूर्ण होनी चाहिए ताकि देश की बेशकीमती जिंदगियों की रक्षा की जा सके। निस्संदेह, कोरोना के खिलाफ अंतिम लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने में केंद्र तथा राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में जिस तरह राजनीतिक दलों ने सकारात्मक व्यवहार व उत्साह दिखाया, वह सुखद संकेत ही है।

 


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