- शिकायतकर्ताओं ने लगाया था बड़ा गंभीर आरोप, सेवा पुस्तिका में सेटिंग से होता है बदलाव
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम में सेटिंग के खेल के चलते कई कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि में फेरबदल या फर्जी दस्तावेजों से नगर निगम में खुलेआम नौकरी करने के गंभीर मामले प्रकाश में आए हैं। ऐसी तमाम शिकायतों के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश के बावजूद ऐसे गंभीर मामलों में कार्रवाई करने के नाम पर नगरायुक्त समेत तमाम अधिकारी आंखे मूंद लें, तो उसे निगम में अंधेरगर्दी ही कहा जाएगा।
नगर निगम में देखा जाये तो एक मामले में नहीं अनेक मामलों में शिकायतकर्ताओं द्वारा साक्ष्यों के आधार पर शिकायत करने के बाद भी निगम के अधिकारी भ्रष्टाचार के खेल के मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं करते। यदि कोई जिले या कमिश्नरी व शासन स्तर से कार्रवाई के लिये मामले में संज्ञान के लिये पत्र आदि आता है तो उस पर भी गोलमोल जवाब देकर मामले का दबा दिया जाता है।
ठेकेदारों के निर्माण के पेमेंट का मामला हो या फिर गाड़ी चालक गफ्फार के वेतन का मामला रहा हो। अनेक ऐसे मामले हैं। जिनमें संज्ञान होने के बाद भी नगरायुक्त या कोई सक्ष्म अधिकारी इन भ्रष्टाचार जैसे मामलों में ठोस कार्रवाई करने के नाम पर खानापूर्ति कर रिपोर्ट उच्चाधिकारियों के पास भेज देता है। जिस तरह लेखाधिकारी द्वारा नगर स्वास्थ्य अधिकारी के कुछ अतिरिक्त प्रभार को पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी हरपाल सिंह को देने का मामला हो।
यदि निगम में किसी कर्मचारी की नियुक्ति एवं उसके पदभार (किस पद पर नियुक्त हुई) की, एक ही मामले की जांच सही तरीके से हो जाये तो इस भ्रष्टाचार के खेल में कितने अफसर एवं सफेदपोश नेताओं की गर्दन फंसती नजर आयेगी। हाल ही में 23 कर्मचारियों की नियुक्ति निरस्त एवं वेतन वापसी का मामला जोकि स्थानीय स्तर पर सही तरीके से नहीं होने के कारण सीबीसीआईडी तक पहुंचना तो एक बानगी भर है।
फिलहाल नगर निगम में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार के तमामा आरोपों के बीच निगम के कर्मचारियों की ही नहीं, अधिकारियों की निष्पक्ष एवं बेदाग छवि की प्रतिष्ठा जरूर दांव पर दिखाई पड़ रही है। एडीएम दिवाकर सिंह ने नगरायुक्त को एक पत्र 17 अगस्त 2022 को लिखा था, जिसमें उन्होंने 24 जून 2022 के संदर्भ में लिखा। जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेशीय सफाई मजदूर संघ शाखा नगर निगम के द्वारा लिखित शिकायतों पर संज्ञान लेने के लिये निगम के अधिकारियों निर्देशित किया।
जिसमें एक लिपिक पर सेवा पुस्तिका में छेड़छाड़ करने एवं सेवा पुस्तिका गायब कर देने के साथ ही महिला लिपिक से भी छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था। महिला लिपिक से छेड़छाड़ का मामला तो पुलिस क्षेत्राधिकारी कोतवाली को दिया गया। वहीं, सेवा पुस्तिका गायब करने एवं उसमें छेड़डाड़ करने की जांच निगम के अधिकारियों को दे दी गई। वहीं शिकायतकर्ताओं ने सेवा पुस्तिका में परिर्वतन एवं उसे बदलवाने जैसे अनेक मामलों में दो मामले, जिसमें रंजीत पुत्र भगत, अरुण पुत्र बिशन की सेवा पुस्तिका की जांच कराने की बात कही।
वहीं इसी तरह से सुदर्शन की सेवा पुस्तिका में फेरबदल का बताया और करीब 11 वर्ष सेवा पुस्तिका हिसाब से अधिक नौकरी करने का आरोप, जिसमें संजय हजारी की मृत्यु के बाद भी उसके वेतन बिल भुगतान करने का भी गंभीर आरोप लगाया गया था। एडीएम को भेजे शिकायती पत्र में लगाया गया। जिसमें लिपिक राजेश को किसी अन्य जगह स्थनांतरित करने की बात कही गई।
जिसमें ऐसे सेवा पुस्तिका में अंतर एवं वेतन संबंधी फाइल की जांच कराने की भी मांग पर एडीएम दिवाकर ने नगरायुक्त को लिखा। जिसमें लिपिक को स्टोर लिपिक के पद पर भेज दिया गया। वहीं लिपिक राजेश ने बताया कि उसका छेड़छाड़ के मामले में समझौता समाज के लोगों ने करा दिया। लिपिक का यह मामला तो निबट गया, लेकिन जो गंभीर आरोप सेवा पुस्तिका में फेरबदल एवं पुस्तिका गायब करने के नाम पर हुये भ्रष्टाचार के मामले में गंभीर अभी तक ठोस कार्रवाई अमल होती दिखाई नहीं दी।
इसमें नगर प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी ने 7 नवंबर 2022 को समस्त अधिष्ठापन लिपिक स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखा। जिसमें निर्देशित किया कि जिन व्यक्तियों की सेवा पुस्तिका पत्रावली गायब या न मिलने संबंधी मामलों में जांच चल रही है, ऐसे कर्मचारियों का तत्काल प्रभाव से वेतन रोक दिया जाये। कुछ ऐसे भी कर्मचारी हैं, जिन्होने बैंक से ऋण लिया है, वह बैंकों की किस्तों का भी भुगतान नहीं कर रहे हैं।
वहीं निगम के गाड़ी चालक गफ्फार के 15 वर्षों में मात्र एक बार वेतन मिलने का मामला रहा हो, जबकि गफ्फार की बेटी ने बताया था कि उनके पिता के साथ अन्य 11 कर्मचारी भी रखे गये और वह पदोन्नत भी हुए, लेकिन उनके पिता को वेतन के लिये भी निगम के अधिकारियों के चक्कर काटना पड़ रहा है। वहीं, ठेकेदारों के निर्माण बिलों के भुगतान का मामला हो,
जिनकी अच्छी सेटिंग या पकड़ निगम में हैं, उनकी निर्माण संबंधी फाइलों के भुगतान जल्द हो जाते हैं। बाकी को चक्कर काटने पड़ते हैं। तमाम ऐसे मामले निगम में चल रहे हैं। जिनको लेकर पीड़ित फरियादियों द्वारा यही कहते सुना जा सकता है कि निगम में अंधेरगर्दी चरम पर हैं। तभी तो 23 कर्मचारियों की नियुक्ति निरस्त एवं उनकी वेतन वापसी का मामला सीबीसीआईडी तक जा पहुंचा है।
कई कर्मचारियों की सेवा पत्रावली नहीं मिल रही हैं,या जांच के लिये गई हैं। ऐसे संदर्भों को लेकर लिखा गया है कि जब तक ऐसे मामलों की जांच पूरी नहीं हो जाती, तक ऐसे मामले में कर्मचारी का वेतन न बनाया जाये।
दो तीन मामले ऐसे सामने आये हैं, जिनकी सेवा पत्रावली की जांच चल रही है। वहीं शिकायती पत्रों में जो अनेक आरोप लगाये हैं, वह बेबुनियाद हैं। -डा. हरपाल सिंह, प्रभारी नगर स्वास्थ्य एवं पशु चिकित्सा, कल्याण अधिकारी नगर निगम।