Saturday, July 27, 2024
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शहीद स्मारक में मंगल पांडे के बगलगीर होंगे धन सिंह

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  • चंडीगढ़ में तैयार कराई गई फाइबर की 19 फीट ऊंची प्रतिमा क्रांति दिवस पर मेरठ पहुंची

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: 1857 की क्रांति के नायक के रूप में जहां मंगल पांडेय का नाम सबसे पहले आता है, वहीं मेरठ में होने वाले पले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांति नायक धन सिंह कोतवाल का योगदान इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित है। मेरठ के लिए गौरव की बात यह है कि शहीद स्मारक में अब मंगल पांडेय के साथ ही धन सिंह कोतवाल की 19 फीट ऊंची प्रतिमा भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनेगी।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जब मेरठ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 10 मई को आगमन का कार्यक्रम घोषित किया गया, उसके साथ गुपचुप तरीके से यह भी योजना बनाई गई कि अगर पीएम शहीद स्मारक आएं तो उसके कर कमलों से धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा का अनावरण करा लिया जाएगा। हालांकि उनका कार्यक्रम कैंसिल हो गया, लेकिन प्रतिमा बनाने का काम चंडीगढ़ की कंपनी ने समय रहते पूरा कर लिया।

यह 10 फीट ऊंची प्रतिमा फाइबर से बनाई गई है, जिस पर किसी भी मौसम का कोई प्रभाव लंबे समय तक पड़ने वाला नहीं है। क्रांति दिवस पर यानि बुधवार 10 मई को चंडीगढ़ की कंपनी ने प्रतिमा शहीद स्मारक पहुंचा दी। शहीद स्मारक की देखरेख करने वाले अतुल शुक्ला का कहना है कि धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा यहां आने से पहले इस बात को काफी गोपनीय रखा गया है।

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हालांकि इस बीच बहुत तेजी के साथ मंगल पांडेय की प्रतिमा के बिल्कुल बगल में एक फाउंडेशन जरूर तैयार करा लिया है। इसी फाउंडेशन पर धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा को लगाया जाएगा। यह भी उल्लेखनीय है कि यहां पूर्व में लगाई गई मंगल पांडेय की प्रतिमा 17 फीट ऊंची है, जबकि धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा का कद उनसे दो फीट ज्यादा रखा गया है। अब इस प्रतिमा को फाउंडेशन पर लगाकर अनावरण का काम कब होता है, इसके लिए पर्यटकों को कुछ दिन इंतजार करना पड़ सकता है।

अंग्रेजों की नौकरी के बावजूद आजादी के लिए छटपटा रहे थे धन सिंह कोतवाल

मेरठ के पांचली खुर्द गांव में जन्मे धन सिंह गुर्जर 10 मई 1857 को हुई क्रांति के समय सदर थाने में कोतवाल के पद पर तैनात थे। चर्बी वाले कारतूस चलाने से इंकार करने वाले 85 भारतीय सैनिकों का कोर्ट मार्शल करके उन्हें विक्टोरिया पार्क में बनाई गई जेल में बंद कर दिया गया था। देखते ही देखते ये खबर पूरे इलाके में फैल गई और सिपाहियों को जेल भेजे जाने से आग-बबूला हो उठे ग्रामीण सदर कोतवाली क्षेत्र में हजारों की तादाद में एकत्रित हो गए।

आजादी के लिए उठी इस चिंगारी ने कोतवाल धन सिंह का हृदय एकदम बदल दिया और वे ग्रामीणों के साथ मिल गए। इसके बाद धन सिंह गुर्जर ने विद्रोही सैनिकों और ग्रामीणों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जिसने भी भीड़ को रोकने का प्रयास किया, उसका कत्ल कर दिया गया। धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में ही सैनिकों और ग्रामीणों ने मौका देखते हुए रात के करीब दो बजे जेल तोड़कर 839 कैदियों को छुड़ा लिया

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और जेल में आग लगा कर उसे खाक कर दिया। रात में ही कोर्ट, जेल, तहसील व अंग्रेज अफसरों के कार्यालय तक फूंक दिए गए। इस घटना का बदला लेने के लिए अंग्रेज अफसरों ने कोतवाल धन सिंह के गांव पांचली को निशाना बनाया। चार जुलाई, 1857 को अंग्रेजों ने पांचली गांव में तोपों से हमला करके करीब 400 लोगों को शहीद कर दिया। साथ ही जिंदा पकड़ लिए गए 40 लोगों को फांसी के फंदे पर भी लटका दिया। धन सिंह कोतवाल को भी पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहादत नसीब हुई थी।

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