एक जून की शाम को सभी चैनलों पर एक्जिट पोल जारी होंगे। इससे अनुमान लगाया जाएगा कि केंद्र में किसकी सरकार बनने वाली है। आज आपको एग्जिट पोल से जुड़ी कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं। आपको बताएंगे कि एग्जिट पोल क्या होता है और यह ओपिनियन पोल से कितना अलग है। एग्जिट पोल दरअसल एक चुनावी सर्वे है। न्यूज चैनल और एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के प्रतिनिधि मतदान के बाद मतदान केंद्रों के बाहर मतदाताओं से चुनाव से जुड़े कुछ सवाल पूछते हैं। उनके जवाब के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसके आकलन से पता चलता है कि मतदाताओं का रुझान किधर है। नियम है कि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद कोई भी एग्जिट पोल या सर्वे जारी नहीं किया जा सकता है। अंतिम चरण के मतदान के बाद वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल जारी किया जा सकता है। इसका उल्लंघन करने पर दो साल कारावास, जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है। आपको बता दें कि निर्वाचन आयोग ने पहली बार 1998 में एग्जिट पोल की गाइडलाइंस जारी की थी। 2010 में छह राष्ट्रीय और 18 क्षेत्रीय दलों के समर्थन के बाद धारा 126 ए के तहत मतदान के दौरान सिर्फ एग्जिट पोल जारी करने पर रोक लगाई गई थी। हालांकि चुनाव आयोग चाहता था कि ओपिनियन और एग्जिट पोल दोनों पर रोक लगे। ओपिनियन पोल के जरिए जनता के मूड को समझने का प्रयास किया जाता है कि राज्य या देश के लोग किस पार्टी की तरफ झुकाव रखते हैं या किस पार्टी को वोट देने वाले हैं। उनके मुद्दे क्या हैं और चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा है। क्या जनता किसी खास राजनीतिक पार्टी के मुद्दों के साथ है या नहीं। ओपिनियन पोल में हर वर्ग के लोगों की राय ली जाती है, भले ही वो वोटिंग करेगा या नहीं। इसे वोटिंग से काफी पहले किया जाता है। उनकी राय के आधार पर ओपिनियन पोल की रिपोर्ट तैयार होती है।
सवाल है कि कौन ज्यादा सटीक होता है, एग्जिट पोल या ओपिनियन पोल? दोनों को तैयार करने के तरीकों पर नजर डालेंगे तो सीधे तौर पर पाएंगे कि सर्वे एजेंसी के एग्जिट पोल ज्यादा सटीक होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे उन वोटरों की मदद से तैयार किया जाता है जो मतदान के दिन वाकई में वोटिंग करते हैं। हर ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल शुद्ध वोटरों की राय नहीं होती, उसमें चुनाव का इतिहास, मीडिया से आ रही खबरों और हवा के रूख का घालमेल भी होता है। इसलिए 2014 के सारे ओपिनियन और एग्जिट पोल धरे रह गए थे, क्योंकि कोई भी जनता की नब्ज नहीं पहचान पाया था। उस समय इतना अनुमान तो हर किसी को था कि भ्रष्टाचार की चर्चा के कारण देश की जनता कांग्रेस को वापस सत्ता में नहीं लाना चाहती, लेकिन पोल करने वाले आम लोगों की इस राय पर भरोसा ही नहीं कर पाए कि भाजपा की इतनी बंपर जीत हो सकती है। इसके पीछे उनकी सोच थी कि भाजपा के इतिहास में सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में कारगिल युद्ध जीतने के बावजूद 182 सीट से आगे नहीं बढ़ पाए थे, और 2004 में उन्हीं वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा हार भी गई थी। देश में 1989 से त्रिशंकू नतीजे आ रहे थे, क्षेत्रीय दल मिलकर ढाई सौ सीटें जीत रहे थे, जबकि दोनों मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस और भाजपा मिलकर भी तीन सौ पर अटक रहे थे। इसलिए कोई भी सरकार बिना क्षेत्रीय दलों के समर्थन के बन ही नहीं पा रही थी।
इसी तरह 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान लगभग सभी एग्जिट पोल ने मोदी सरकारी की वापसी की भविष्यवाणी की थी लेकिन ओपिनियन पोल कंपनियां भाजपा को बहुमत देती हुई दिखाई नहीं दे रही थीं। दूसरी ओर 14 फरवरी 2019 को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने पुलवामा में सेना के काफिले पर हमला किया था, उसके बारहवें दिन 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में घुस कर आॅपरेशन कर दिया। पाकिस्तान के बालाकोट पर हुए इस हमले को प्रधानमंत्री मोदी ने घर में घुस कर मारने की देश की नई नीति घोषित कर दिया, तो लोग गदगद थे। इसके बावजूद ओपिनियन पोल करने वाले जनता का मिजाज नहीं पहचान पाए। मार्च से लेकर 8 अप्रैल तक हुए सभी ओपिनियन पोल एनडीए को 264 से 285 तक अटकाए हुए थे। सात में से तीन ओपिनियन पोल तो एनडीए को बहुमत मिलने का अनुमान नहीं लगा रहे थे। जिन चार ने एनडीए को बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की थी, वे भी एनडीए को 275 से 285 के बीच सीटें दे रहे थे।
2024 में फरवरी के बाद कुल 14 ओपिनियन पोल हुए, इनमें से आठ ओपिनियन पोल एनडीए को 2019 से ज्यादा सीटें मिलने की बात कह रहे हैं, जबकि न्यूज 18 ने मार्च के अपने ओपिनियन पोल में एनडीए को 411 सीटें मिलने की बात कही थी। एक जून को एग्जिट पोल आ जाएंगे ओर 4 जून को परिणाम आने पर इन दोनों की वास्तविकता सबके सामने आ जाएगी।