- अधिकारियों को ढूंढने से भी नहीं मिल रहे काम करने को मजदूर, पड़े लाले
जनवाणी संवाददाता |
सरूरपुर: केंद्र सरकार की महत्वकांशी योजना मनरेगा में काम कराने के लिए अब ढूंढे मजदूर नहीं मिल रहे हैं। बढ़ती महंगाई और कम मजदूरी के तहत 100 दिन रोजगार गारंटी के लिए अधिकारियों को मजदूर काम करने के लिए ढूंढे तक नहीं मिल रहे हैं। महज 230 रुपये की मजदूरी होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों ने मनरेगा योजना से एक तरह से अब मुंह मोड़ लिया है। जिसके चलते गांव में विकास कार्यों में मनरेगा मजदूर ढूंढे नहीं मिलते और काम अधर में लटके हुए हैं तो वहीं ज्यादातर कार्य अब मशीनरी से करने पर अधिकारी विवश है।
केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी योजना यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के लिए मजदूर गांव में ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। गांव में योजना के तहत विकास कार्य करने के लिए अधिकारियों को मजदूर ढूंढ नहीं मिल रहे हैं। कम मजदूरी और बढ़ते महंगाई के कारण इस मनरेगा से अब ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों ने एक तरह से मुंह मोड़ लिया है। गांव में विकास कार्यों के लिए रुपये 230 प्रतिदिन के हिसाब से मिलने वाली मनरेगा की मजदूरी से अब ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों का मन ऊब गया है।
100 दिन गारंटी रोजगार योजना में शामिल होने तक के लिए अधिकारियों को मजदूर नहीं दिख रहे हैं। सरूरपुर ब्लॉक व रोहटा ब्लॉक अधिकारियों की माने तो गांव में विकास करने के लिए प्रति घन मजदूरी के हिसाब से 100 दिन गारंटी रोजगार योजना में रजिस्टर्ड मजदूर भी अब इससे उबन लगे हैं। मजदूरी और विकास कार्य तक के लिए मजदूरों को ढूंढा जा रहा है, लेकिन इससे दूर भाग रहे हैं।
लागत बढ़ने के साथ मनरेगा मजदूर योजना पर पलीता लग रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा योजना के तहत मिट्टी के कच्चे कार्य करने के लिए मजदूरों को प्रति घन मीटर के हिसाब से मजदूरी पर लगाया जाता था। ज्यादातर मजदूर ने पिछले कई महीनो से योजना में शामिल होने तक के लिए 100 दिन रोजगार गारंटी योजना तक को ठेंगा दिखाकर मुंह मोड़ लिया है।
मनरेगा से होते हैं गांव में मिट्टी के कार्य
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत गांव में मिट्टी के कच्चे कार्य कराए जाते थे।ब्लॉक से मस्टरोल जारी होने के बाद गांव में तालाब सफाई से लेकर तमाम कच्ची मिट्टी के कार्य मजदूर करते थे। जिन्हें 100 दिन पक्का रोजगार मिलता था। जिसके 230 की मजदूरी के हिसाब से बाद में उनके खाते में भेजे जाते है। हालांकि अब इसमें बदलाव करते हुए 40 प्रतिशत पक्का और 60 प्रतिशत कच्छा कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया है।
दिहाड़ी मजदूर की मजदूरी 500 मनरेगा की 230
सरकार की महत्वाकांक्षी रोजगार योजना मनरेगा में जहां 230 की मजदूरी तय है तो वहीं आमतौर पर महंगाई के दौर में मिलने वाली मजदूरी की दर 500 तक पहुंच चुकी है। ऐसे में 230 और वह भी बाद में मिलने वाली रकम के चलते मनरेगा से मजदूरों का मन ऊब गया। जिसके चलते हुए घर का चूल्हा जलाने के लिए दिहाड़ी मजदूरी के रूप में 500 पाकर खुश हैं। जिससे फिलहाल योजना पर ग्रहण सा लग गया है।
कम मजदूरी बढ़ती महंगाई से बनी दूरी
दिनों दिन लगातार बढ़ती जा रही महंगाई और घर के खर्चे से मजदूरों की रीढ़ टूट कर रह गई है। इसी वजह से मनरेगा में 230 प्रति दिन के हिसाब से वह भी बाद में मिलने वाली मजदूरी में घर के खर्च तक भी पूरे नहीं हो पाते हैं। मजदूरों का मानना है की बढ़ती महंगाई में इतनी मजदूरी बेहद कम है। जिसके चलते ज्यादातर मजदूरों ने अब इस योजना से मुंह मोड़ लिया है। मनरेगा में मजदूरी करने वाले मजदूरों का कहना है कि 230 की मजदूरी और वह भी लंबी वेटिंग के बाद खाते में आती है। ऐसे में मजदूर के सामने रोज कमा कर चूल्हा जलाने तक की परेशानी होती है। जिससे अब ज्यादातर मजदूरों ने इससे किनारा कर लिया है।
कम मजदूरी, दो बार हाजिरी और लिखा पढ़ी का झंझट
मनरेगा में जहां 230 की मजदूरी कम होने के साथ दो बार हाजिरी लगाने का झंझट और लिखा पढ़ी के लफड़े से बचने के लिए ज्यादातर मजदूर ने अब दिहाड़ी पर मजदूरी करना शुरू कर दिया है। जिस मनरेगा गारंटी रोजगार योजना फ्लॉप शो साबित होकर रह गई है।
मजदूरी बढ़ी मजदूर घटे
मनरेगा के तहत वर्ष 2023 में सरकार ने पहले जहां 217 रुपये मनरेगा मजदूर को दिए जाते थे। वहीं 13 रुपये बढ़कर अब इसे 230 कर दिया गया, लेकिन बावजूद इसके मजदूरी बढ़ाने के साथ मजदूर घट गए हैं।
योजना में बदलाव की जरूरत
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि योजना में बदलाव की जरूरत है। वक्त के साथ बदले हालात और बढ़ती महंगाई के कारण योजना में नगद भुगतान और मजदूरी बढ़ाने के साथ कुछ बदलाव के आवश्यक दरकार है। विशेषकों का मानना है कि यदि सरकार ने योजना में बदलाव नहीं किया तो योजना बंद करनी पड़ सकती है।
6000 मजदूर रजिस्टर्ड 60 भी काम करने को तैयार नहीं
मनरेगा में जहां सरूरपुर और रोहटा ब्लॉक में लगभग 6000 मजदूर पंजीकृत हुआ करते थे, लेकिन अब इस योजना से मुंह मोड़ते हुए मजदूरों ने किनारा कर लिया है और ब्लॉक के अधिकारियों को गांव में काम करने के लिए मनरेगा के तहत मजदूर मयस्सर नहीं हो पा रहे हैं।