Tuesday, April 16, 2024
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अर्श मिला, लेकिन बेजान

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नाले में अर्श का शव तो मिल गया, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन?इसके जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। नगर निगम व अन्य विभाग कौन इस घटना के लिए जवाबदेही है। क्या उस पर कार्रवाई की जाएगी। हाल ही में परतापुर में होटल क्रोम में स्विंग पुल से गिरकर युवक की हादसे में मौत हो गई, इसमें पुलिस ने तमाम कार्रवाई कर दी, मगर बड़ा सवाल यह है कि होटल पर तो हादसे की घटना पर कार्रवाई कर दी, लेकिन अर्श की मौत भी हुई। वह भी हादसा, लेकिन इसके लिए जिम्मेदारों पर क्या प्रशासन कार्रवाई करेगा या फिर पूर्व की भांति अर्श की मौत के मामले को भी ठंडे बस्ते में डालकर रफा-दफा कर दिया जाएगा।

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: पूरी रात नाले में डूबे अर्श के घर वाले अल्लाह से दुआ करते रहे कि किसी तरह उसके लाडले को जिंदा दिलवा दें। रात भर पूरे परिवार की नींद आंखों से दूर रही। सुबह एक उम्मीद के साथ जब लोग नाले के पास पहुंचे तो उनकी निगाह बच्चे के बहते शव पर पड़ी।

यह दर्दनाक नजारा देखकर परिजनों के होश उड़ गए और लाचार मां वहीं नाले के पास गश खाकर गिर पड़ी। मौके पर पहुंचे पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने शव को बिना पोस्टमार्टम के परिजनों के सुपुर्द कर दिया। बाद में शव को सुपुर्देखाक कर दिया गया।

अहमद नगर निवासी तस्लीम का 10 वर्षीय बेटा अर्श बारिश के बाद बेहद खतरनाक लोहे के पुल के पास अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। तभी उसका पैर फिसला और वो देखते देखते मौत के नाले में धंसता हुआ चला गया।

सोमवार को रात आठ बजे तक सघनता से सर्च ऑपरेशन चलाया गया, लेकिन अर्श का कहीं पता नहीं चला। फायर ब्रिगेड नगर निगम और गोताखोर बुलाने के बाद भी बच्चे का कोई पता नहीं चला। जेसीबी मशीन से करीब एक किमी दूरी तक नाला खंगाला गया है।

ओडियन नाले में कमेला रोड पर गिरे बच्चे का शव सुबह छह बजे मिला। परिजन और कालोनी के लोग सुबह पांच बजे से ही तलाश करने में जुट गये थे। नाले से बच्चे का शव निकाल कर परिजन उसे घर ले आए। घर वालों ने पोस्टमार्टम न कराने की गुहार लगाई।

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पुलिस ने शव का पंचनामा कर शव परिजन को सौंप दिया। सोमवार को अहमद नगर के रहने वाले रिजवान, जुम्मन, जसीम, अब्दुल कलाम सुबह से ही जेसीबी के साथ मिलकर बच्चे की तलाश कर रहे थे। बदर अली ने मछेरान से गोताखोर बुलाए, वह भी बच्चे को तलाश नहीं कर पाए।

एक किमी तक नाले का पूरा मलबा छान दिया गया है। सीओ अरविंद चौरसिया का कहना है कि रात आठ बजे सर्च ऑपरेशन बंद कर दिया गया था, लेकिन सुबह छह बजे बच्चे का बहता शव बरामद हो गया। उधर, खूनी हो रहे नालों के कारण साल में छह घटनाएं हो चुकी हैं।

कई मासूमों की जान भी जा चुकी है। बावजूद इसके खुले नाले ढके नहीं जा रहे। शहर में कुल 285 नाले हैं। इनमें से 12 नाले बड़े हैं। गंभीर बात यह है कि ये सभी खुले हैं और लाखों की जनता की जान के लिए मुसीबत बने हुए हैं। इनमें कई जान जा चुकी है।

 15 जून 2021-फतेहउल्लापुर रोड स्थित हरि मस्जिद के पास वाले नाले में एक बच्चे का शव मिला।

 23 दिसंबर, 2020-मलियाना के गांवड़ी मोहल्ले में बंबे की पुलिया के पास नाले में गिरी बच्ची की मौत

22 अक्टूबर 2019-भूमिया पुल के निकट ओडियन नाले में गिरकर युवक की मौत हो गई।

 28 फरवरी 2019-लिसाड़ी गेट लक्खीपुरा नाले में मासूम की गिरकर मौत।

29 जनवरी 2019-जसवंत मिल के पास तालाब और नाले के दलदल में दो मासूम बच्चे फंस गए थे।

नालों की पूरी सफाई न होने से हो रहे हैं हादसे

पार्षद भी कई बार निगम में रख चुके हैं प्रस्ताव

शहर वासियों के लिए नासूर बने शहर के नालों की यदि पूरी ईमानदारी से सफाई होती रहे तो बच्चों के डूबकर असमय काल का ग्रास बनने के हादसों पर न सिर्फ अंकुश लग सकेगा, बल्कि शहर में मामूली बरसात पर होने वाले जलभराव से भी मुक्ति मिल सकेगी।

यहां यह बात भी काबिले गौर है कि नगर निगम के सभी दलों के पार्षद भी नालों की तली झाड़ सफाई के सैकड़ों बार प्रस्ताव रख चुके हैं, लेकिन इनपर आज तक ईमानदारी से अमल नहीं हो सका है।

गत दिवस कमेले के पुल पर डूबे आशियाना कालोनी के मासूम अफ्फान को भी शहर के मौत का कुंड बन चुके नालों ने भेंट ले ही ली। मंगलवार की तड़के अफ्फान का शव फूलने के बाद ऊपर तैरता हुआ मिला। यह कोई पहला मामला नहीं है।

शहर में हर साल कई बच्चे इन्हीं नालों में डूबने से अपनी जान गंवा रहे हैं। शहर में बड़े तो दूर, छोटे नालों तक की सफाई नहीं कराई जाती है। हालांकि नगर निगम के पास पूरा अमला है। पर्याप्त संख्या में मशीनें भी हैं, इसके बावजूद भी नाले पूरी तरह साफ नहीं हो पाते हैं।

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वर्तमान से पहले वाले बोर्ड में जब हरिकांत अहलूवालिया महापौर थे तो उन्होंने शहर के सभी नालों को तलीझाड़ सफाई कराने का बीड़ा उठाया था। वह सवेरे ही हर नाले की सफाई के लिए निकल पड़ते थे, लेकिन अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में वह मेरठ के नालों की तलीझाड़ सफाई नहीं करा सके।

जो हालात आज से दस साल पहले थे, कमोबेश वही हालात आज भी हैं। दिखावे के लिए पहले नाले साफ होते थे और दिखावे के लिए आज भी नाले साफ किये जाते हैं। जबकि हकीकत यह है कि पहले भी नाले पूरे तरीके से साफ नहीं हुए थे और न ही अब तक साफ हो सके हैं।

शहर के लिए सबसे बड़ी दुश्वारी दो बड़े नाले बने हुए हैं। आधे शहर का बड़ा नाला बेगम पुल से कचहरी पुल होता हुआ गुजरता है तो आधे शहर के गंदे पानी की निकासी ओडियन नाले से होती है। अहमद रोड वाला नाला भी इसमें ही मर्ज होता है।

यह पूरा नाला कमेले वाले नाले पर पहुंचता है तो यहां अंग्रेजों के जमाने का बना हुआ डाट वाला पुल बड़ी बाधा बनता है। इस नाले का यहां कमेले पुल पर मुंह संकरा होने से इसमें कूड़ा फंस जाता है। फिर इसमें गंदे पानी की भी निकासी नहीं हो पाती है।

बरसात होने पर नाले के ऊपर सड़क से गंदा पानी होकर गुजरता है। यदि यहां के पुल का निर्माण करा दिया जाये तो जलभराव की समस्या नहीं होगी तथा नालों में कूड़ा भी नहीं अटकेगा।

सफाई कर्मियों का दर्द-साफ नहीं करने देते नाले

सफाई कर्मचारियों का दर्द है कि वह शहर के नालों की सफाई तो करना चाहते हैं, लेकिन दुकानदार ही इसमें बड़ी बाधा बने हैं। कोई चबूतरे तोड़ने से रोकता है तो कोई नाले में जेसीबी नहीं जाने देता है। जिससे हमें पूरी तरह सफाई करने का मौका नहीं मिल पाता है।

शहर में कई स्थानों पर नालों के ऊपर दुकानदारों ने खोके बनाकर रख रखे हैं। नगर निगम के कुछ कर्मचारी इन अवैध खोकों से वसूली करता है इन अवैध खोको की वजह से नाले की पूरी तरह से सफाई नहीं हो पाती है। नगर निगम के सफाई कर्मचारी कहते हैं कि शहर के सभी बाजारों में दुकानदारों ने नालों को पाटकर पक्के चबूतरे बना रखे हैं।

जब भी सफाई के लिए चबूतरे तोड़ते हैं तो सारे ही व्यापारी एक होकर विरोध करने के लिए आ जाते हैं। जिस दुकानदार ने नाले पर खोका रख रखा है। वह नाले के अंदर जेसीबी नहीं उतरने देता है। सिर्फ नाले के बीच-बीच में से कूड़ा निकाल दिया जाता है। जबकि बीच में कूड़ा अटका ही रहता है। इससे सफाई होना और न होना एक जैसा ही है।

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