Friday, March 29, 2024
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दुष्टों का अंत

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Amritvani


जरासंध मगध राज्य का नरेश था। उस ने बहुत से राजाओं को अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा था। वह चक्रवर्ती सम्राट बनने की लालसा में वह इन राजाओं को बंदी बनाकर रख रहा था, ताकि जिस दिन 101 राजा हों और वे महादेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी बलि दे सके। जरासंध मथुरा के नरेश कंस का ससुर था उसकी दोनों पुत्रियों अस्ति और प्राप्ति का विवाह कंस से हुआ था। कंस की मृत्यु पर जो सबसे अधिक कुपित हुआ वह था कंस का ससुर जरासंध। जरासंध बदले की आग में जल रहा था। उसने कृष्ण व बलराम को मारने हेतु मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया…प्रत्येक पराजय के बाद वह अपने विचारों का समर्थन करने वाले सभी अधर्मी और दुष्ट राजाओं से संपर्क करता और उनसे महागठबंधन बनाता और मथुरा पर हमला करता।

श्री कृष्ण हर बार पूरी सेना को मार देते, मात्र जरासंध को ही छोड़ देते। यह सब देख श्री बलराम जी बहुत क्रोधित हुये और श्री कृष्ण से कहा, बार-बार जरासन्ध हारने के बाद पृथ्वी के कोने-कोने से दुष्टों और अधर्मी राजाओं के साथ महागठबंधन कर हम पर आक्रमण कर रहा है और तुम पूरी सेना को मार देते हो किंतु हमलों की असली जड़ को ही छोड़ दे रहे हो?

श्री कृष्ण ने हंसते हुए बलराम जी को समझाया, हे भ्राता, जरासंध को बार-बार जानबूझकर इसलिए छोड़ दे रहा हूं कि ये जरासंध पूरी पृथ्वी से दुष्टों के साथ महागठबंधन करता है और मेरे पास लाता है और मैं बहुत ही आसानी से एक ही जगह रहकर धरती के सभी दुष्टों और अधर्मियों को मार दे रहा हूं, नहीं तो मुझे इन दुष्टों को मारने के लिए पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना पड़ता और पृथ्वी के कोने कोने से खोज-खोज कर निकाल कर मारना पड़ता और बहुत कष्ट झेलना पड़ता। दुष्टदलन का मेरा यह कार्य जरासंध ने बहुत आसान कर दिया है। जब सभी दुष्टों को मार लूंगा तो सबसे आखिरी में इसे भी खत्म कर ही दूंगा, चिंता न करो भ्राताश्री।

                                                                                  प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


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