- लगातार हो रही हत्या की घटनाओं ने पुलिस पर डाला दबाव
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: तीन दिन में छह हत्याएं। हर हत्या के पीछे रंजिश निकल कर आ रही है। क्या एक दिन की रंजिश किसी की मौत का कारण बन रही है या फिर खानदानी रंजिश चल रही है। पुलिस के सामने एक बड़ी समस्या सामने आ रही है कि थानेदार से लेकर बीट सिपाही तक के पास गांवों में बनने वाले रंजिश रजिस्टर अपडेट नहीं है।
यही कारण है कि जैसे ही कोई हत्या की सूचना आती है। पुलिस का काफी समय रंजिश का पता लगाने में लग जाता है। पूर्व के पुलिस कप्तानों ने इस रजिस्टर पर काफी फोकस किया था, लेकिन अब यही कमी लगातार पुलिस के लिये परेशानी का कारण बनती जा रही है।
हस्तिनापुर में हुई दो हत्या की वारदातों ने पुलिस अधिकारियों को दौड़ा दिया था। पलड़ा में गुर्जर युवक विशु के ऐलानिया कत्ल ने पुलिस की चार दिन से नींद उड़ा रखी है। विशु के परिवार की किससे रंजिश थी और हत्या में कौन नामजद कराए गए इसको लेकर पुलिस के पास अभी कोई ठोस जानकारी नहीं है। इस कारण चार दिन से चार आरोपियों को हिरासत में रखने के बाद भी पुलिस अभी तक उनको जेल नहीं भेज पा रही है।
पूर्व एसएसपी नवनीत सिकेरा ने एसएसपी के कार्यकाल में गांव में रंडुआ रजिस्टर और रंजिश रजिस्टर पर ज्यादा जोर दिया था। हर गांव के बीट सिपाही और उस गांव के चौकीदार की डयूटी रहती थी कि वो गांव में चलने वाली और पनपने वाली रंजिशों को अपडेट करता रहता था और जो लोग सुधरने का नाम नहीं लेते थे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती थी।
इससे पुलिस को काफी फायदा मिला था और कई संभावित हत्याओं को टालने में पुलिस को सफलता भी मिली थी। बाद में कई कप्तानों ने इस रजिस्टर पर ज्यादा जोर दिया। जब से गांवों के चौकीदारों के आर्थिक पक्ष का ध्यान सरकार और थानेदारों ने रखना कम कर दिया, तभी से पुलिस का निचला नेटवर्क काफी कमजोर हो गया है। पुलिस के पास गांवों से मुखबिरों के जरिये जो सूचनाएं मिल रही है
उसमें स्वार्थपन और राजनीति ज्यादा होती है। पलड़ा के मर्डर में पुलिस के हाथ पूरी तरह खाली है। इस साल ग्रामीण क्षेत्र में जो हत्याएं हुई हैं उनमें यही समस्या पुलिस को झेलनी पड़ी है। जमीनी रंजिश को लेकर हुई हत्याओं में इस साल इजाफा हुआ और अगर पुलिस का गांव स्तर पर नेटवर्क मजबूत होता तो शायद कई लोगों की जानें बच सकती थी।