कहा जाता है कि लिखने के लिए सर्वोत्तम शिक्षा पढ़ना होता है। जब हम पुस्तकें पढ़ते हैं तो हम जीवन के एक विचित्र संसार में पहुंच जाते हैं, जहां हमारी कल्पनाशीलता को पंख लग जाते हैं। नए विचारों का सृजन होता है और नए अनुभवों और ऐहसासों की दुनिया के दरवाजे खुल जाते हैं, जिससे लिखने का कार्य आसान हो जाता है। लिहाजा लेखक का जन्म पुस्तकों के पढ़ने की आदत विकसित होने से होता है। हम जितना अधिक पुस्तक पढ़ते हैं उतना ही अधिक हमें लिखने के लिए सामग्रियां प्राप्त होती हैं। इसलिए अच्छा लिखने के लिए बहुत पढ़ना अनिवार्य शर्त में शुमार होता है।
लिखने की कला के बारे में कहा जाता है कि यह एक कठिनतम विधा है और इस पर मास्टरी प्राप्त करना एक कठिन कला है। लेखन कला के कठिन होने का मुख्य कारण इसमें भावों और विचारों की सटीकता के साथ भाषा की शुद्धता का भी बड़ी कठोरता से ध्यान रखा जाता है। यही कारण है कि यह सबसे अनुशासित विधा है जिसमें सफलता के लिए कठिन मिहनत और निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। इस लिहाज से यहां पर एक प्रश्न उठना लाजिमी है कि आखिर शुद्ध और सटीक लेखन की कला पर मास्टरी के लिए अनिवार्य शर्तें क्या हैं?
कुछ कहने के लिए दिल में जरूर होने चाहिए
लेखन कला के बारे में प्रसिद्ध अमेरिकी कवि और सामाजिक कार्यकर्ता माया एंजेलो ने एक बार कहा था, ‘जीवन में बिना कहे हुए किसी कहानी को अपने अंदर ढोने से बढ़कर और बड़ा कोई दर्द नहीं हो सकता है।’ आशय यह है कि लिखने के लिए आपके दिल में कोई एक गंभीर विषय अवश्य होना चाहिए जो कि बाहर आने के लिए तड़प रहा हो। यदि ऐसी कोई बात जो आपके जीवन से गहरा संबंध रखता हो तो फिर उसे एक अच्छी कहानी के रूप में ढालना आसान हो जाता है और जिसको पढ़ने के बाद दिल में ऐहसास होता है कि गोया यह मेरी अपनी ही दिल की बात हो। इसीलिए जब भी लिखने के लिए बैठें तो यह निश्चित कर लें कि आपके दिल में लिखने के लिए कुछ उमड़ और घुमड़ रहा हो। इस प्रकार के विषय वस्तु के अभाव में लिखने का कार्य काफी जटिल हो जाता है और ऐसे लेख पाठकों जो जरा भी अभिभूत नहीं कर पाते हैं।
अपनी पहचान अलग बनाएं
प्राय: लेखक दूसरे मशहूर लेखकों की तरह ही लिखना चाहते हैं और उनकी तरह ही मशहूर होना चाहते हैं। लेकिन इस सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हर व्यक्ति की अपनी अलग राइटिंग स्टाइल होती है जिसकी बराबरी कोई और नहीं कर सकता है। इस संबंध में प्रसिद्ध अमेरिकी उपन्यासकार अर्निस्ट हेमिंग्वे का मानना था, ‘इस बात से किसी को सरोकार नहीं होना चाहिए कि आपको यह सीखना है कि किस तरह लिखा जाए।
उनको यह पता होना चाहिए कि आप इसी तरह से लिखने के लिए पैदा हुए थे।’ अर्थात इस दुनिया में हर व्यक्ति की लेखन शैली अद्भुत होती है जो उसकी पहचान का सृजन करती है। इसलिए किसी दूसरे लेखकों की लेखन शैली की कॉपी किए बिना खुद की अपनी अलग शैली विकसित करने से आपको एक अलग पहचान मिलती है जो अंतत: आपको कामयाबी के शीर्ष पर ले जाती है।
जमीन से जुड़ी चीजें लिखें
कहते हैं कि एक लेखक जब अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांकने की आदत विकसित कर लेता है तो वह लिखना प्रारंभ कर देता है। खिड़की से बाहर झाँकने का अर्थ जीवन से जुड़ना है, प्रकृति को समझना है, अपने आसपास की घटनाओं को बारीकी से परखना है। इससे लिखने के लिए ऐसे विषय प्राप्त होते हैं जो जीवन से जुड़े होते हैं, प्रैक्टिकल होते हैं, यथार्थ से जुड़े होते हैं और यही कारण है कि ऐसी रचनाएं पाठकों के दिल को छू लेती हैं।
जिसे खुद जिया है उसे ही लिखें
कहते हैं कि महान पुरुषों की आत्मकथाओं में जीवन के अनमोल मोती छुपे होते हैं क्योंकि उनमें जीवन की वास्तविक घटनाएं बड़ी बेबाकी से पिरोये होते हैं। एक पाठक इसी प्रकार के लेख पढ़ना पसंद करते हैं जो कि जीवन की वास्तविकता से जुड़े होते हैं। शीशमहल में रहनेवाले किसी राजकुमार की कहानी जमीन से जुड़ी नहीं होती है और यही कारण है कि वे पाठकों को अभिभूत नहीं कर पाते हैं। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की इन दो पंक्तियों में लेखन कला का मर्म
बड़ी बेबाकी से उभर कर सामने आ जाता है झ्र
वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान
निकलकर आँखों से चुपचाप वही होगी कविता अनजान।
जीवन के दर्द के बारे में महान अंग्रेजी रोमांटिक कवि पीबी शैली ने लिखा था, ‘हमारे जीवन के सबसे मीठे गीत हमारे सबसे दर्द भरे विचारों से जन्म लेते हैं।’ इसका आशय मात्र इतना है कि हम जो भी लिखें वो शिद्दत से लिखें और उसमें अनुभूतियों की वेदना और भावों की पीड़ा साफ तौर पर रिसता हो।
नसीहतें नहीं दें, वो खुद चुन लेंगे
लेखक प्राय: अपनी रचनाओं के द्वारा अपने पाठकों को प्रत्यक्ष रूप से नसीहतें देने की कोशिश करता है जो किसी भी लिहाज से उचित और शालीन नहीं समझा जाता है। क्योंकि किसी लेखक को इस प्रकार से अपने पाठकों को सुझाव देने या सिखाने का कोई अधिकार नहीं होता है। जब भी कुछ लिखें तो उसकी क्वालिटी ऐसी हो कि पाठक अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाए, प्रेरित हुए बिना नहीं रह पाए।
एक पेज या पैराग्राफ पढ़ने के बाद उसे लगे कि जीवन में भ्रम का मकड़जाल हट चुका है और नए ज्ञान की सुबह से जीवन रोशन हो गया है। पढ़ने के क्रम में रुक कर सोचने के लिए पाठक को बाध्य करने का जादू पैदा करने की विलक्षण क्षमता ही एक उत्कृष्ट लेखक का निर्माण करती है।
जैसे बोलते हैं वैसे लिखें
प्रख्यात साहित्यकार भगवती प्रसाद मिश्र ने लेखन की कला में उत्कृष्टता के बारे में कहा था, ‘जिस तरह से हम बोलते हैं/उस तरह तू लिख/और इसके बाद भी/हमसे बड़ा तू दिख/चीज ऐसी दे कि स्वाद सर चढ़ जा/बीज ऐसा बो कि जिसकी
बेल बन बढ़ जाए
आशय यह है कि लेखन में जहां तक संभव हो साधारण शब्दों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए जो कि पाठकों को पड़ने में आसान हो। बातचीत की विधा में स्वाभाविकता होती है और यही चीज लेखन में भी होना चाहिए। अर्थात लेखन में कोई आडंबर नहीं होना चाहिए।
मां तू कह एक कहानी
बचपन में दादा-दादी और मां-पिता से हम सभी ने कहानियां अवश्य सुनी होंगी। ये कहानियां प्राय: राजाओं की, रानियों की, जंगली जानवरों और परियों की होती थीं और हम इन कहानियों के पात्रों में खो जाया करते थे। कहानियां लेखन की विधा में भी अपने पाठकों को बांधे रखने के लिए जादू सरीखा ही कार्य करता है। कुछ लिखना हो तो उसकी शुरुआत यदि खुद के जीवन की किसी सच्ची घटना या किसी महापुरुष की प्रेरक कहानी से करें तो इससे लेख काफी आकर्षक बन जाता है। पाठक इस प्रकार की लेखों की तरफ अनायास ही खींचता चला आता है। किसी लेख या पुस्तक को यदि पाठक इस प्रकार से पढ़ने के लिए आकर्षित हो तो यही लेखन कला की उत्कृष्टता की पहचान है।
पढ़ना भी है उतना ही जरूरी
कहा जाता है कि लिखने के लिए सर्वोत्तम शिक्षा पढ़ना होता है। जब हम पुस्तकें पढ़ते हैं तो हम जीवन के एक विचित्र संसार में पहुंच जाते हैं, जहां हमारी कल्पनाशीलता को पंख लग जाते हैं। नए विचारों का सृजन होता है और नए अनुभवों और ऐहसासों की दुनिया के दरवाजे खुल जाते हैं, जिससे लिखने का कार्य आसान हो जाता है। लिहाजा लेखक का जन्म पुस्तकों के पढ़ने की आदत विकसित होने से होता है।
हम जितना अधिक पुस्तक पढ़ते हैं उतना ही अधिक हमें लिखने के लिए सामग्रियां प्राप्त होती हैं। इसलिए अच्छा लिखने के लिए बहुत पढ़ना अनिवार्य शर्त में शुमार होता है।
प्रख्यात अमेरिकी उपन्यासकार अर्निस्ट हेमिंग्वे ने आर्ट आॅफ राइटिंग के बारे में एक बड़े कड़वे सत्य अत्यंत ही साधारण ढंग से कहा था, ‘हम सभी लिखने की कला में हमेशा नौसिखिए ही रहते हैं, इसमें कोई भी मास्टर नहीं बन सकता है।’ आशय यही है कि लेखन का कार्य निरंतर अभ्यास का है, निरंतर संघर्ष का है और सबसे अधिक धैर्य का है। निरंतर सीखकर और अपनी गलतियों को सुधार कर ही कोई लेखक इस दिशा में पूर्णता और सर्वश्रेष्ठता को प्राप्त कर सकता है।
श्रीप्रकाश शर्मा
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