- किसान अपनी मांगों पर कायम, सरकार कई विकल्पों के साथ तैयार
- अमित शाह का मंत्री समूह के साथ मंथन, एमएसपी, पराली-बिजली पर वैकल्पिक राहत
- सरकार ने वार्ता से हल निकालने की पहल की
जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने अपने मंत्रियों से वार्ता कर फैसला कर लिया है। गृहमंत्री अमित शाह ने मंत्री समूह के साथ विधिवत मंथन किया और किसान संगठनों से आज वार्ता करेंगे। हालांकि विपक्षी दलों की सियासत अभी भी ज़ारी है। वैसे किसान संगठनों ने सरकार को बता दिया है कि वे वार्ता सिर्फ और सिर्फ अपने एजेंडे पर ही करेंगे। हालांकि किसान संगठनों की मांग तीनों कृषि कानूनों को ख़त्म करने की है और यही मांग देश के सभी विपक्षी दलों की भी है। किसान संगठन इससे अलग कुछ मानने को राज़ी नहीं हैं।
उधर, कल मंगलवार का शुभ दिन भी था कहा जाता है कि मंगलवार के दिन मंगल ही होता है। अब देखना है कि मंगलवार को लिया फैसला किसान संगठनों और देश के विपक्षी दलों के लिए आज मंगल साबित होता है या फिर कुछ और। एक डर और है कि अगर सरकार और किसान संगठन दोनों ही अड़े रहे तब तो नतीजा अ’मंगल’ भी हो सकता है।
डेडलॉक से डायलॉग के लिए करीब 20 दिन बाद यह गतिरोध टूटा। दोनों पक्षों की 30 दिसंबर की वार्ता पर सभी की नजरें टिकी हैं।
किसान संगठन तीनों कानूनों की वापसी पर कायम हैं। सरकार एमएसपी पर नरमी के साथ पराली-बिजली पर राहत के साथ कई विकल्पों को लेकर तैयार है। वार्ता शुरू होने से पहले ही विपक्ष की सियासत तेज हो गई। उम्मीद और अड़ंगे की स्थिति बरकरार है।
किसान संगठनों के साथ-साथ सरकार ने भी वार्ता से पहले नरमी के संकेत दिए। संयुक्त किसान मोर्चा ने वार्ता के मद्देनजर 30 दिसंबर को कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस वे ट्रैक्टर-ट्रॉली से जाम करने का प्रस्तावित कार्यक्रम टाल दिया है।
वार्ता और विरोध की एक साथ दबाव वाली रणनीति से नरम पड़े किसान संगठनों ने ऐसा करके आस जगाई है। संयुक्त किसान मोर्चा ने तमाम पहलुओं पर आपसी मंत्रणा की।
आगे के लिए फिलहाल किसी आंदोलन की घोषणा से परहेज किया लेकिन संकेत दिए कि कानून वापसी की प्रक्रिया, एमएसपी को कानूनी जामा और बिजली-पराली जैसे चार एजेंडे पर भी बात होगी। 30 और 31 दिसंबर तक यथास्थिति रख किसान संयम के साथ डटे हैं।
उधर, सरकार की ओर से भी वार्ता से पहले नरमी दिखी। न केवल फिजूल के बयानों से परहेज किया गया बल्कि अमित शाह ने सरकार के वार्ताकार मंत्री समूह के नरेंद्र तोमर, पीयूष गोयल, सोमप्रकाश से मंत्रणा की। तीनों कानूनों को रद्द करने के बजाए न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत तीनों एजेंडे (बिजली-पराली) पर वैकल्पिक राहत की तैयारी की गई है।
किसानों ने चर्चा के चार एजेंडे तय किए। सरकार को पत्र भेजा। 29 को वार्ता की पेशकश की। कृषि सचिव ने सुझाए गए चारों एजेंडे पर ‘खुले मन, साफ नीयत’ से चर्चा के लिए एक दिन बाद 30 दिसंबर का न्योता भेजा।
40 किसान संगठनों की तरफ से संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार के अंदाज में केवल इन चार एजेंडे पर बातचीत के लिए हामी भरी, लेकिन सचेत भी किया कि बात सिर्फ इन्हीं चार एजेंडे पर होगी। ऐसे में दोनों तरफ से यदि गोलमोल या टालमटोल की स्थिति रही तो तल्खी बढ़ने का खतरा ज्यादा है।
बता दें कि 25 दिसंबर को अटल जयंती और क्रिसमस पर कड़वाहट दूर कर डेडलॉक से डायलॉग की पेशकश कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि तर्कों के आधार पर बात हो।
इस बार सरकार सुनेगी भी, सुझाव भी मांगेगी। किसान संगठनों से ठोस वजह जानना चाहेगी कि आखिर कानून रद्द क्यों हों। न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म करने का अंदेशा क्यों, जब लिखित गारंटी देने को सरकार तैयार है।
एमएसपी के दायरे में कुछ और फसल शामिल करने पर विचार हो सकता है। इनमें वैसी फसलें होंगी जो विविधीरण से किसानों के साथ-साथ खेतीबाड़ी की दशा सुधार सकते हैं। पंजाब में ही फसली विविधीकरण से कई प्रगतिशील किसानों की आर्थिक हालत बदली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुर्जा फ्रेट कॉरिडोर को हरी झंडी दिखाते हुए खासतौर से नुकसान का जिक्र किया। अपील की संपत्ति पर चोट राष्ट्र के साथ खुद का भी नुकसान है। पंजाब-हरियाणा से लगातार कनेक्टिविटी प्रभावित है। संचार सुविधाओं के स्तंभ मोबाइल टॉवर्स को नुकसान पहुंचाएं जा रहे हैं।
पंजाब हरियाणा समेत उत्तर रेल क्षेत्र की कई ट्रेनें रद्द हैं तो कई मार्ग परिवर्तित किए गए। एसोचैम की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक, किसान आंदोलन से 3500 करोड़ का नुकसान है। उत्तर रेलवे को 2 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का अनुमान करीब 14 हजार करोड़ का है।
कोरोना संक्रमण के चलते अर्थव्यवस्था पहले से बेपटरी है। अनलॉक के बाद कुछ हद तक जनजीवन पटरी पर है तो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी समेत कई हिस्से में किसान आंदोलन का असर सामने दिख रहा है। शांतिपूर्ण आंदोलन में अब कहीं-कहीं गुस्सा भी दिखने लगा है।
अर्थव्यवस्था को लेकर चुनौतियां बरकरार है। आत्मनिर्भरता की कोशिशों के बीच आंदोलन से आर्थिक तौर पर अतिरिक्त चपत हमें ही पीछे धकेल रहा है। आर्थिक संकट के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह चुनौती काल है। एक तरफ, कोरोना संकट में वैक्सीन मुहिम को लेकर कदम बढ़ाना है, तो दूसरी तरफ इन्हीं आंदोलन स्थलों पर इस कड़ाके की ठंड में रोजाना किसानों के बीमार होने की खबर है।
सियासत का आलम यह है कि एक तरफ आंदोलनकारी मोबाइल टॉवर्स को नुकसान पहुंचा रहे हैं, दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री सिंघु बॉर्डर पर मुफ्त वाई-फाई (हॉटस्पॉट) की बात कर रहे हैं। शरद पवार ने सरकार से तीनों कानूनों की वापसी की वकालत की। चेतावनी दी है कि यदि बातचीत से हल नहीं निकला तो विपक्ष अगली रणनीति तय करेगा। कांग्रेस के राजीव शुक्ला भी मैदान में नजर आए।
यह कालचक्र है। पांच चक्र की वार्ता के बाद छठे दौर की बातचीत से ठीक एक दिन पहले 8 दिसंबर को मंगलवार ही था। गृह मंत्री अमित शाह के साथ 13 किसान नेताओं की अनौपचारिक बातचीत हुई। बात नहीं बनी। अब 29 दिसंबर को भी मंगलवार पड़ा, जब डेडलॉक टूट रहा है।
9 दिसंबर को छठे दौर की होने वाली वार्ता टल गई। बुधवार था, तब किसान वार्ता की मेज तक नहीं पहुंच सके। 30 दिसंबर को फिर बुधवार है और वार्ता की मेज पर पहुंचने का श्रीगणेश हो रहा है। यह संकट चौतरफा है। किसान, सरकार,आम लोग, नौकरीपेशा, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य संकट में हैं। मौसम के मिजाज की तरह यदि दोनों पक्ष थोड़ी-थोड़ी नरमी बरतें तो उम्मीद की किरण बरकरार है, वरना हठ से तो बात बिगड़ेगी ही।