Saturday, June 21, 2025
- Advertisement -

किसानों का सम्मान नहीं तो समाधान कैसे?

NAZARIYA 3


TANVIR ZAFARI 2देश के दर्जनों राष्ट्रीय व क्षेत्रीय किसान संगठनों द्वारा गठित ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ द्वारा संचालित किया जा रहा किसानों का धरना व आंदोलन शीघ्र ही अपने एक वर्ष पूरे करने जा रहा है। पिछले दिनों इस आंदोलन को एक बड़ी सफलता तब हाथ लगी जबकि दिल्ली के अनेक सीमाओं पर चलने वाला किसानों का यह धरना-आंदोलन दिल्ली की सीमाओं से आगे बढ़कर संसद भवन के द्वार पर स्थित राजधानी के सबसे प्रमुख धरना स्थल ‘जन्तर मंतर’ तक पहुंचने में कामयाब रहा। गत 22 जुलाई से किसान मोर्चा के प्रमुख नेता जन्तर मंतर पर किसान संसद के नाम पर लगभग 200 किसान नेताओं के समूह साथ प्रतिदिन इकठ्ठा हो रहे हैं और भारतीय संसद के समानांतर किसानों की संसद चलाकर नए कृषि कानूनों की कमियों इसकी खामियों तथा किसानों को इस कानून से होने वाले नुकसान पर चर्चा कर रहे हैं। किसान आंदोलन को लेकर सबसे बड़ा गतिरोध इसी बात को लेकर चल रहा है कि सरकार बार-बार किसानों से इन कृषि कानूनों में संशोधन संबंधी सुझाव मांग रही है और उन सुझाए गए संशोधनों पर विचार करने के लिए तैयार है, जबकि किसान मोर्चा के सभी नेता इस नए कृषि कानूनों को रद्द किए जाने सिवा सरकार की किसी भी दूसरी शर्त या प्रस्ताव को मानने के लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं।

इन गतिरोधों से इतर सत्ता पक्ष की ओर से कुछ ऐसी बातें या बयान अथवा सरकारी प्रयास सामने आते रहते हैं जिनसे यह पता चलता है कि सत्ता के अनेक जिम्मेदार लोग या तो किसान आंदोलन को मान्यता ही नहीं देना चाहते या जानबूझकर किसी रणनीति के तहत इसे बदनाम करना चाहते हैं। सत्ता के अनेक पियादों व वजीरों द्वारा इन्हीं आंदोलनकारी किसानों को कभी खालिस्तानी बताया गया, कभी इन्हें एके 47 धारी किसान बताया, कभी इनके आर्थिक स्रोतों पर सवाल खड़ा किया गया, यहां तक कि इसे विदेशी फंडिंग से चलने वाला आंदोलन बताकर इस पूरे आंदोलन को ही एक अंर्तराष्ट्रीय साजिश बताने की कोशिश की गई। इस तरह की बातें साधारण पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा नहीं, बल्कि सांसद व मंत्री स्तर के नेताओं द्वारा बार-बार कही गईं।

26 जनवरी की लाल किले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद तो इस आंदोलन को अराजक तत्वों का आंदोलन तक बताया जाने लगा था। किसान आंदोलनकारियों को आन्दोलनजीवी तक कहा गया। आंदोलनजीवी शब्द तो स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा संसद में इस्तेमाल किया गया। और अब पिछले दिनों जब 22 जुलाई को जंतर मंतर पर किसानों द्वारा किसान संसद की शुरुआत की जा रही थी ठीक उसी समय नव नियुक्त विदेश राज्यमंत्री तथा भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने प्रेस वार्ता के दौरान कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों को किसान मानने से ही इनकार कर दिया। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि आप उनको किसान कहना बंद कीजिए क्योंकि वो किसान नहीं हैं। किसानों के पास इतना समय नहीं है कि वो जंतर-मंतर पर धरना देकर बैठे। वो अपने खेतों में काम कर रहा है। ये सिर्फ साजिशकर्ताओं द्वारा भड़काए हुए लोग हैं, जो किसानों के नाम पर ऐसी हरकतें कर रहे हैं। ये सिर्फ आढ़तियों द्वारा बैठाए हुए लोग हैं, ताकि किसानों को कृषि कानून का फायदा न मिल सके। आप उन लोगों को किसान बोल रहे हैं, वे किसान नहीं ‘मवाली’ हैं।

इस तरह की तमाम बातें हैं, जिससे साफ जाहिर होता है कि बावजूद इसके कि सरकार इन्हीं आंदोलनकारी से केंद्रिीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर व अन्य प्रमुख मंत्रियों की मौजूदगी में 12 दौर की वार्ता कर चुकी है। और आज भी सरकार के मंत्रियों की ओर से कृषि कानून में संशोधन संबंधी सुझाव इन्हीं किसान नेताओं से मांगे जाते हैं। जंतर मन्तर पर 22 जुलाई से सीमित संख्या में अपना विरोध दर्ज करने की इजाजत सरकार ने इन्हीं आंदोलनकारियों को दी है। किसानों से किसी संभावित टकराव को टालने के लिए उन्हें सीमित संख्या में सशर्त आने देना सरकार का एक समझदारी भरा कदम है। परंतु सत्ता के जिम्मेदारों द्वारा वक़्त-वक़्त पर किसानों को अपमानित करने की जो कोशिशें की जाती हैं, और ऐसा करने वालों के विरुद्ध सरकार या पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई भी नहीं की जाती इसके आखिर क्या मायने हैं?

जिस किसान मोर्चा से सरकार बार-बार बातें करती रही और आज भी बातचीत की इच्छुक है, उन्हीं किसानों के धरने पर भाजपा विधायक अपने समर्थकों की भीड़ के साथ हमला कर देता है। इसके क्या मायने हैं? इस आंदोलन को विपक्ष के इशारे पर चलने वाला किसान आंदोलन बताने वाले सत्ताधारी, विपक्ष से आखिर क्या उम्मीद रखते हैं। नि:संदेह विपक्ष किसानों के साथ खड़ा होकर अपने कर्तव्यों का ही निर्वाहन कर रहा है। आज के सत्ताधीशों को खुद सोचना चाहिए कि जब वे विपक्ष में थे तो क्या किया करते थे?

चूंकि सरकार किसान संयुक्त मोर्चा से बार-बार अधिकृत तौर पर वार्ता करती रही है और आगे भी बातचीत के दरवाजे खोल रखे हैं तो उसे अपने सभी वजीरों को साफतौर पर यह संदेश देना चाहिए कि अन्नदाताओं व उनके संगठनों का सम्मान करना सीखें। उनके साथ दोहरेपन का व्यवहार करना देश के अन्नदाताओं का अपमान है। और यदि यह आतंकी, खालिस्तानी, मवाली, पाक-चीन प्रायोजित, विपक्ष के मोहरे, देश विरोधी आदि हैं तो इनसे बात करना भी सरकार का अपमान है। किसान आंदोलन का समाधान निकलने से पहले सरकार व किसान मोर्चे का एक-दूसरे के प्रति सम्मान व विश्वास का होना बहुत जरूरी है। यदि एक-दूसरे का एक-दूसरे के प्रति सम्मान नहीं होगा तो आखिर समाधान कैसे निकलेगा?


SAMVAD 14

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Dipika Kakar: शोएब के जन्मदिन पर दीपिका की दिल छूने वाली पोस्ट, याद किए अस्पताल के मुश्किल पल

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Saharanpur News: कोतवाली सदर बाजार पुलिस की वाहन चोर गिरोह से हुई मुठभेड़

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: कोतवाली सदर बाजार पुलिस की वाहन...
spot_imgspot_img