Friday, March 29, 2024
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घाटे का सौदा हो चुकी है खेती

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Samvad


KP MALIKबेमौसम बारिश भी खुद में कितने अजब रंग समेटे है। इस समय इस बारिश के भी अलग-अलग असर देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ जहां अमीर और शहरी लोग सुखद मौसम का अहसास करते हुए घूमने और पकौड़े खाने की सोच रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर इन लोगों का पेट भराने के लिए दिन-रात मेहनत करने वाले किसान अपने खेतों को देखकर खून के आंसू रो रहे हैं और जहर खाने की सोच रहे हैं। अफसोस की बात है कि किसान ईमानदार और मेहनती होने के बावजूद हमेशा से ही परेशान रहे हैं। सरकार और बेमौसम बारिश से खुश होने वालों को सोचना चाहिए कि अगर किसान अन्न और सब्जियां न उगाए, तो लोग खाएंगे क्या? किसानों के साथ दोहरा बर्ताव और उनके दुख में खुशी मनाना किसी का हक नहीं है। इस देश के उन लोगो को जो किसानी नहीं करते, देश के किसानों और जवानों का एहसानमंद होना चाहिए कि इन दो की वजह से ही वो जीवित हैं। खराब मौसम के चलते कभी सूखा, कभी बारिश, तो कभी पाला, तो कभी ओलावृष्टि को लेकर किसान परेशान रहते हैं। अगर जैसे-तैसे उनकी फसल पककर घर में आ जाए, तो उन्हें उचित भाव नहीं मिलता। लेकिन इन सब चीजों की मार झेलने के बावजूद भी किसान कभी हार नहीं मानते हैं।

हाल में बेमौसम हुई बारिश और ओलावृष्टि के चलते उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और अन्य कुछ प्रदेशों के किसानों की दुर्दशा हो रखी है, जो कि बहुत ही निराशाजनक है। जब भी भारी बारिश होती है, तो खेतों में पानी भर जाता है और इससे फसले तो नष्ट होती ही है, परंतु उससे ज्यादा उस फसल पर निर्भर किसान के सपनों का कत्ल होता है। ज्यादातर किसान छोटे और सीमांत होने के कारण दोबारा से फसल बोने का खर्च भी वहन नहीं कर पाते हैं।

बाजार में नकली बीजों और उर्वरकों की भरमार और सरकार की किसान विरोधी नीतियों ने जहां पहले ही किसानो की कमर तोड़ रखी है, वहीं प्रकृति की मार ने किसानों को मौत के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में किसान आत्महत्या न करें, तो आखिर क्या करें। इस बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद हुई फसलों का सदमा इतना ज्यादा किसानों को लगा है कि बांदा के एक किसान ने मंगलवार को जहर खाकर आत्महत्या कर ली। क्या सरकार इस किसान के परिवार को मुआवजा देने और उसके बीबी बच्चों के भरण-पोषण का इंतजाम करेगी?

हिंदुस्तान में कृषि मात्र जीविकोपार्जन का साधन ही नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति भी है, जिसके बगैर हिंदुस्तान जिंदा नहीं रह सकता। बावजूद इसके खेती करने वाले अन्नदाता को, जो दिन-रात कड़ी मेहनत करता है और अपना पेट काटकर, अपने बच्चों की हर इच्छा को मारकर और उनकी पढ़ाई सरकारी स्कूलों में कराकर फसलें उगाता है।

दुर्भाग्य से इतनी तपस्या के बावजूद तमाम समस्याओं से जूझने वाले किसानों का बहुत सारा जीवनधन खेती से जुड़ा होता है और इसलिए उन्हें अपने विवेक से बेहतर विकल्प नहीं होते हैं। अगर आज की स्थिति हम देखें, तो किसान बुरी तरह से टूटता जा रहा है, कोई भी किसान खेती के नाम पर खुश नहीं है। क्योंकि खेती में जितनी लागत लगती है, उससे कई गुना ज्यादा नुकसान हो जाता है।

एक किसान परिवार पर उनकी वार्षिक आय से अधिक ऋण बकाया है। प्रत्येक फसल की विफलता के साथ कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है। भारत के मराठवाड़ा क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या पर किये एक सर्वेक्षण के अनुसार साल 2010 और 2017 के बीच अध्ययन किए गए 320 किसान आत्महत्याओं में से लगभग 76 फीसदी बढ़ते कर्ज के कारण किसान आत्महत्या कर रहे। इस तरह की समस्याएं किसानों के लिए आर्थिक, भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि के कई पहलुओं को प्रभावित करती हैं।

हालांकि सरकार किसानों के घाव भरने के लिए ऐसे ही मरहम का फोआ रख देती है, जैसे कोई गहरे जख्म पर बीटाडिन लगाकर रूई रख दे। यह राहत इतनी ही होती है, जितना ऊंट के मुंह में जीरा। वो भी काफी लंबे समय बाद किसानों के हाथ आती है। दरअसल, हिंदुस्तान में अफसरों की लापरवाही और आपदा से हुए नुकसान के आकलन के लिए एक सफल तंत्र न होने के कारण यह सहायता पर्याप्त नहीं मिलती और किसान अफसरों और मुआवजा देने वाले कर्मचारियों के पास चक्कर लगा-लगाकर परेशान होते रहते हैं।

सवाल यह है कि इस छोटी सी राहत के सहारे किसान कब तक जीवित रहेंगे? किसान बिसन ढिंढार नेहवाल कहते है कि आज किसान पहले से ही बदतर स्थिति से गुजर रहे हैं ऊपर से बेमौसम की भारी बारिश और ओलावृष्टि ने उनकी कमर तोड़ दी है। इतने पर भी नेता किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं, जबकि पीड़ित किसानों की सुध लेने को कोई तैयार नहीं है।

बहरहाल एक कहावत है कि ‘जिसका खाओ, उसका बजाओ।’ लेकिन आज किसान का उगाया हुआ अन्न सब खा तो रहे हैं, परंतु कोई भी उसके पक्ष में बोलने को तैयार नहीं है। आज सरकार को किसानों को इस दुर्दशा से बचाने के लिए जहां एक ठोस नीति और मजबूत तंत्र बनाने की आवश्यकता है, साथ में वर्तमान स्थिति से जुझ रहे किसानों को तुरंत राहत पहुंचाते हुए बिना कोई सर्वे सीधे मुआवजा देना चाहिए और केसीसी बैंक वसूली पर रोक लगाते हुए किसानों के बिजली बिल माफ करने चाहिए।

इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वो अगली फसल के लिए किसानों को मुफ्त बीज उपलब्ध करवाए। कभी कहा जाता था कि ‘उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान’ लेकिन आज खेती सबसे ज्यादा घाटे का सौदा हो चुकी है। और व्यापार सबसे उत्तम हो चुका है, तथा नौकरी दूसरे दर्जे का अच्छा काम माना जाता है। वहीं जिंदा रहने के लिए जो किसान खाने-पीने की चीजें पैदा करके देते हैं, उनकी दुर्दशा सबसे ज्यादा इस कृषि प्रधान देश में हो रही है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और इस देश का क्या हो सकता है?


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