राजेंद्र कुमार शर्मा |
आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर , स्नान आदि से निवृत होकर, व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करते हुए प्रतिज्ञा करें कि मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।
इंदिरा एकादशी का त्यौहार बहुत महत्व रखता है, क्योंकि भक्त जो इंदिरा एकादशी उपवास का पालन करते हैं उन्हें समृद्धि व उनके पिछले पापों से राहत का आशीर्वाद मिलता है। भक्त पूर्वजों को शांति प्रदान करने के लिए इंदिरा एकादशी उपवास करते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह उपवास अश्वमेध यज्ञ के समान महत्व रखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को आश्विन कृष्ण एकादशी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे राजन! मैं इस अनुष्ठान का विस्तार से वर्णन करता हूं।
प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो ब्रह्मलोक से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य देकर आदर सत्कार किया। मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा, हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप मेरे वचनों को सुनकर आश्चर्य करेंगे।
मैं एक समय यमलोक को गया। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को देखा जो मोक्ष न मिलने के कारण दुखी थे और यह सब उनके पिछले जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण हुआ। उन्होंने तुम्हारे लिए संदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि पूर्व जन्म में एकादशी व्रत के भंग होने के कारण मैं यमलोक में रह रहा हूं, हे पुत्र ! यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे विष्णुलोक की प्राप्ति हो सकती है।
इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर , स्नान आदि से निवृत होकर , फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।
हे अच्युत! मैं आपकी शरण में हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें। ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।
भगवान का रात्रि जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। सपरिवार मौन रहकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही विष्णुलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।
नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने परिवार के सदस्यों तथा दासों सहित व्रत पूरे विधि विधान से संपन्न करने पर , उसके पिता की मुक्ति यमलोक होकर , राजा के पिता ने पुष्पवर्षा के साथ, विष्णुलोक को प्रस्थान किया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर सौंपकर स्वर्गलोक को गया। हे युधिष्ठिर! पितृ पक्ष की यह इंद्राणी एकादशी के व्रत मोक्ष प्राप्ति का सबसे सुगम पथ है।
कब है इंद्राणी एकादशी
इस वर्ष (2023) इंदिरा एकादशी 10 अक्टूबर को मनाई जाएगी। जो 9 अक्टूबर को दोपहर 12:36 से आरंभ होकर 10 अक्टूबर को दोपहर 03:08 तक रहेगी । पारण समय प्रात: 6 बजकर 19 मिनट से 8 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।