- प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री की भी जान ले चुके हैं खालिस्तानी आतंकवादी
- अब नए सिरे से रची जा रही है खतरनाक साजिश
जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: पंजाब पुलिस के मोहाली स्थित इंटेलिजेंस विंग के हेडक्वार्टर पर सोमवार को रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड (आरपीजी) से हमला हुआ। मोहाली एसपी रविंदर पाल सिंह ने बताया कि हमला इमारत के बाहर से हुआ। राहत की बात ये है कि इस हमले में कोई हताहत या नुकसान नहीं हुआ। 11 दिन के भीतर ये चौथी बड़ी वारदाता है।
कहा जा रहा है कि एक बार फिर से पंजाब को अशांत करने के लिए पाकिस्तान से साजिश रची जा रही है। पाकिस्तान में बैठे खालिस्तानी आतंकी हरविंदर सिंह रिंदा का नाम भी इसमें आ रहा है। हम आपको पंजाब के राज्य बनने के बाद से अब तक खालिस्तानी आतंक से जुड़ी पूरी दास्तां बताने जा रहे हैं।
सबसे पहले 29 अप्रैल को पटियाला में खालिस्तानी आतंकियों के समर्थन में हिंसा हुई। इस हिंसा में चार लोग घायल हुए। दरअसल, इस दिन एक संगठन के लोग खालिस्तान मुर्दाबाद मार्च निकाल रहे थे। इस दौरान कुछ लोगों ने मार्च निकालने वालों पर हमला कर दिया था।
पांच मई को हरियाणा के करनाल जिले से चार संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया। उनके पास से भारी मात्रा में हथियार बरामद हुआ। पुलिस ने खुलासा किया कि आतंकियों की साजिश दिल्ली और पंजाब को दहलाने की थी।
बीते शनिवार को धर्मशाला में तपोवन स्थित हिमाचल प्रदेश विधानसभा के भवन के मुख्य गेट और दीवार पर आतंकी समर्थकों ने खालिस्तान के झंडे लगा दिए। विधानसभा की दीवार पर पेंट से भी खालिस्तान लिख दिया।
पंजाब चुनाव के दौरान भी आया खालिस्तान का नाम
पंजाब चुनाव के वक्त भी कवि कुमार विश्वास ने आरोप लगाया था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खालिस्तानी समर्थकों के संपर्क में हैं। कुमार विश्वास ने यह भी कहा था, ‘केजरीवाल को अलगाववादियों की मदद लेने में भी कोई परहेज नहीं है। हालांकि, बाद में केजरीवाल ने इसको लेकर सफाई दी। उन्होंने कुमार विश्वास के आरोपों को झूठा
बताया था।
देश को जब आजादी मिली तो हिन्दुस्तान के साथ पंजाब का भी बंटवारा हुआ। एक हिस्सा पाकिस्तान को और दूसरा हिंदुस्तान को मिला। आजादी के साथ ही पंजाब में पंजाबी बोलने वालों के लिए अलग राज्य की मांग के साथ पंजाबी सूबा आंदोलन शुरू हुआ।
1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ये मांग मान ली। पंजाब को तीन हिस्सों में बांट दिया गया। पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़। पंजाबी बोलने वालों के लिए पंजाब, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा अस्तित्व में आया। दोनों राज्यों की राजधानी चंडीगढ़ बनाई गई। चंडीगढ़ केंद्रशासित शहर है। दोनों राज्यों के बीच इस शहर को लेकर अभी भी विवाद जारी है। नया राज्य बनने के कुछ दिनों बाद सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग उठने लगी।
ऐसे उठी खालिस्तान की मांग
1969 में पंजाब विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में टांडा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगजीत सिंह चौहान को हार मिली। चुनाव हारने के बाद वह लंदन चला गया। वहां से वह सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग उठाने लगा। 1971 में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक विज्ञापन जारी कर उसने लोगों से चंदा भी मांगा। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने खालिस्तान बनाने के लिए मदद का प्रस्ताव दिया और आईएसआई को इसमें सक्रिय कर दिया। 1977 में जगजीत भारत लौटा और 1979 में वह फिर वापस चला गया। यहां उसने खालिस्तान नेशनल काउंसिल की स्थापना की।
एक तरफ ब्रिटेन से जगजीत खालिस्तान को लेकर देश के खिलाफ साजिश रच रहा था, तो दूसरी ओर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने राज्य को अधिक अधिकार देने मांग उठा दी। 1973 और फिर 1978 में अकाली दल ने आनंदपुरी साहिब प्रस्ताव पास किया। इसमें पंजाब को अधिक अधिकार देने का जिक्र था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि भारत सरकार का पंजाब में दखल केवल रक्षा, विदेश, संचार और मुद्रा के मामलों तक ही सीमित रहेगा। हालांकि, इसमें अलग देश की मांग नहीं थी। लेकिन इसके बाद जो हुआ… उसने पूरे देश को भयभीत कर दिया।
हिंसा की आग में जला पंजाब
13 अप्रैल 1978 को अकाली दल और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इसमें 13 अकाली दल के कार्यकर्ताओं की मौत हो गई। इसके बाद पंजाब में रोष दिवस मनाया गया और यहीं से जरनैल सिंह भिंडरावाले की एंट्री हुई।
भिंडरावाले ने पूरे पंजाब में रैलियां शुरू कर दीं और इसमें वह भड़काऊ भाषण देने लगा। अलग खालिस्तान की मांग उठाने लगा। 1980 आते-आते पंजाब में गैर सिखों की हत्याएं होने लगीं। 1981 में पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाल जगत नारायण की हत्या हो गई।
1982 में भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर यानी श्री हरमंदिर साहिब को अपना घर बना लिया। यहीं से वह पूरे प्रदेश को कंट्रोल करने लगा। 1983 में पंजाब के डीआईजी एएस अटवाल की हत्या हो गई। इन सभी हत्याओं के पीछे भिंडरावाले का हाथ बताया गया।
इसके कुछ दिन बाद ही रोडवेज बसों पर हमला हुआ और कई गैर सिखों को इसमें मार डाला गया। बढ़ती हिंसक घटनाओं को देखते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
पंजाब की स्थिति खराब हो रही थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार लॉन्च हुआ। एक जून 1984 को सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू की। तीन जून 1984 को पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और इसके एक दिन बाद यानी चार जून की शाम से स्वर्ण मंदिर के पास गोलियां चलने लगीं।
सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंक भी पहुंची और सेना ने चारों तरफ से मोर्चा संभाल लिया। छह जून को भिंडरावाला मारा गया। सेना ने स्वर्ण मंदिर को आतंकियों के कब्जे से मुक्त करा लिया। इस ऑपरेशन में 84 सेना के जवान शहीद हुए थे, 249 घायल हुए थे। 493 अलगाववादी मारे गए थे। 1592 अलगाववादियों को गिरफ्तार भी किया गया था।
प्रधानमंत्री की हत्या
स्वर्ण मंदिर पर हुई कार्रवाई से कांग्रेस में फूट पड़ गई। कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। कई जगहों पर सिखों का प्रदर्शन शुरू हो गया। इस बीच, 31 अक्तूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। उनके ही बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उन पर कई राउंड गोलियां चलाईं। इसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। अकेले दिल्ली में ही 2,733 सिखों की हत्या हुई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देशभर में 3,350 सिख इस दंगे में मारे गए थे।
खून खराबा सालों तक चलता रहा
23 जून 1985 को कनाडा से लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट को हवा में ही बम से उड़ा दिया गया। इसमें क्रू सदस्यों के साथ सभी 329 यात्रियों की मौत हो गई। इस हमले की जिम्मेदारी बब्बर खालसा ने ली। उसने कहा कि ये भिंडरावाले की मौत का बदला है।
10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल एएस वैद्य की पुणे में हत्या कर दी गई। मौतों का ये सिलसिला यहीं नहीं थमा। इसके बाद 31 अगस्त 1995 को एक सुसाइड बॉमर ने पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की गाड़ी के आगे खुद को ब्लास्ट कर लिया। इसमें मुख्यमंत्री की भी मौत हो गई।