एक भक्त ने ईश्वर का नाम जपते हुए जीवन बिता दिया, पर कभी कुछ नहीं मांगा। एक दिन वे भक्त ईश्वर के मंदिर गए। उन्हे वहां ईश्वर के दर्शन नहीं हुए, आसपास पूछने पर सभी ने कहा की ईश्वर तो यहीं हैं। तुम्हें नहीं दिख रहे हैं। भक्त ने सोचा कि मेरे सिर पर पाप बहुत चढ़ गया होगा, इसीलिए मुझे नहीं दिखते। आखिर ऐसे शरीर का क्या लाभ, जिससे भगवान के दर्शन न हों? ऐसा सोच कर भक्त यमुना में डूबने चल पड़ा। भगवान एक ब्राह्मण के वेश में एक कोढ़ी के पास पहुंचे और उसको बताया कि एक भक्त यमुना को जा रहे हैं।
वे तुझे आशीर्वाद दे दें, तो तेरा कोढ़ तुरंत ठीक हो जाएगा। यह सुन कर कोढ़ी यमुना की ओर दौड़ा और भक्त का रास्ता रोक लिया। उनके पैर पकड़कर, उनसे आशीर्वाद मांगने लगा। भक्त कहने लगे, भाई! मैं तो पापी हूं, मेरे आशीर्वाद से क्या होगा? पर जब बार-बार समझाने पर भी कोढ़ी ने पैर न छोड़े, तो उन भक्त ने अनमने भाव से कह ही दिया, भगवान तेरी इच्छा पूरी करें।
ऐसा कहते ही कोढ़ी बिल्कुल ठीक हो गया। पर भक्त इस चमत्कार से स्तब्ध खड़े ही थे कि साक्षात भगवान सामने आ खड़े हुए। भक्त ने भगवान को देखा तो भगवान के चरणों में गिर गए। भगवान ने उठाया। वे भगवान से पूछने लगे, भगवान पहले तो आप मंदिर में भी दिखाई न दिए, अब दर्शन दे दिए? भगवान ने कहा, भक्त श्री! आपने जीवन भर बिना कुछ मांगे मेरा स्मरण किया, आपका मुझ पर बहुत ॠण चढ़ गया था।
मैं आपका ॠणी हो गया था, इसीलिए पहले मुझे आपके सामने आने में संकोच हो रहा था। आज आपने उस कोढ़ी को आशीर्वाद देकर, अपने पुण्यपुञ्ज में से कुछ मांग लिया, जिससे अब मैं कुछ ॠण मुक्त हो सका हूं। इसीलिए मैं आपके सामने प्रकट होने की हिम्मत कर पाया हूं। वे भक्त धन्य हैं जो भगवान से कभी कुछ नहीं मांगते, जिनके भगवान भी ॠणी हैं।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा