Monday, June 17, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादबुलंदी और नरमी

बुलंदी और नरमी

- Advertisement -

Amritvani


गुरु ज्ञानानंद के गुरुकुल में कई शिष्य शिक्षा प्राप्त करते थे। एक दिन ज्ञानानंद के एक प्रिय शिष्य विक्रांत ने उनसे कहा, ‘गुरुजी, मैंने इस गुरुकुल में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया है। लेकिन मुझे पेड़ पर चढ़ना नहीं आता।

मेरा पेड़ पर चढ़ने का बहुत मन करता है, लेकिन मुझे लगता है कि यदि मैं पेड़ पर चढ़ने का प्रयास करूंगा तो गिर जाऊंगा। इसलिए चाहकर भी कोशिश नहीं कर पाता हूं।’ गुरु बोले, ‘यदि तुम पेड़ पर चढ़ने का प्रयास करोगे, तो मेरा विश्वास है कि तुम नहीं गिरोगे।’

इसके बाद उन्होंने विक्रांत को एक बड़े पेड़ के आखिरी सिरे तक चढ़ने के लिए कहा। विक्रांत संभल-संभल कर पेड़ पर चढ़ने लगा। गुरु ने उसे कुछ भी नहीं कहा। आखिर वह संभल-संभल कर चढ़ गया। जैसे ही वह पेड़ से उतरने लगा तो गुरु बार-बार जोर-जोर से कहने लगे, ‘बेटा, संभल कर उतरो।’

विक्रांत उतरते समय गुरु के निदेर्शों को सुनकर हैरान रह गया। उसने सोचा पेड़ पर चढ़ते समय तो गुरुजी ने कोई निर्देश नहीं दिया। पेड़ से उतरकर उसने पूछा, ‘गुरुजी, जब मैं पेड़ पर चढ़ रहा था तो उस समय मुझे आपके निर्देशों की आवश्यकता थी, लेकिन तब आप कुछ नहीं बोले जबकि उतरते समय मार्गदर्शन करने लगे, जिसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी।’

इस पर गुरु मुस्कराते हुए बोले, ‘पेड़ पर चढ़ते समय तुम स्वयं सावधान थे, इसलिए मुझे कुछ कहने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। लेकिन चढ़ जाने के बाद तुम अति आत्मविश्वास से भर गए, इसलिए मैंने तुम्हें सावधान किया। जीवन में भी ऐसा ही होता है।

शिखर पर पहुंचकर लोग अति आत्मविश्वास का शिकार हो जाते हैं, इसलिए उनके शिखर से गिरने की आशंका अधिक होती है। जबकि शिखर पर भी विनम्र रहने वाले कभी नहीं गिरते।’


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments