Tuesday, March 19, 2024
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मानवीय संवेदना से लबरेज लघुकथाएं

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‘भूख से भरा पेट’ सुपरिचित लघुकथाकार राम मूरत ‘राही’ का दूसरा लघुकथा संग्रह है। इसके पूर्व लेखक का ‘अन्तहीन रिश्ते’ लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुका है। लघुकथाकार ने इस संग्रह की लघुकथाओं में मानवीय संवेदना, सामाजिक सरोकार और पारस्परिक संबंधों का ताना-बाना प्रस्तुत किया है। अधिकतर लघुकथाएं भावनात्मक और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। ये सहज संप्रेषणीय, सार्थक लघुकथाएं हैं। राम मूरत ‘राही’ की लघुकथाएं जनसाधारण की मानवीय संवेदनाओं को जगाने वाली हैं। लघुकथाएं पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम है। इनमें अनुभूति की सच्चाई है। इस संग्रह में कुल 111 लघुकथाएं हैं, जो हमारे आसपास की हैं। इस संग्रह की रचनाएं अपने आप में मुकम्मल और उद्देश्यपूर्ण हैं और पाठकों को मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती हैं। संग्रह की शीर्षक लघुकथा ‘भूख से भरा पेट’ शीर्षक को सार्थक करती रचना है जिसमें एक वृद्धा भिखारिन भीख में मिली हुई रोटी और सब्जी को एक दूसरे भीख मांगते हुए बालक को दे देती है और जब भीख देने वाली औरत उससे पूछती है कि तुमने सारी सब्जी रोटी उस बालक को क्यों दे दी, क्या तुम्हें भूख नहीं लगी है? तब भूख से बेहाल वह भिखारिन पानी पीकर बोलती है, मुझे तो भूखे रहने की आदत है। मेरा पेट तो भूख से ही भर जाता है। ‘अनपेक्षित’ लघुकथा में एक पुलिस वाले की संवेदनशीलता और इंसानियत के दर्शन होते हैं। ‘मैं द्रोपदी नहीं हूं’ रचना में एक नारी के भावों की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। ‘ठिठुरते रिश्ते’ सुखद अनुभूति का एहसास कराती है तथा पाठक को भावुकता के सागर में भिगो देती है। ‘टिप’, ‘खजाना’, ‘औकात’, ‘हम जैसे’ जैसी लघुकथाओं में संवेदना का भाव स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त हुआ हैं। ‘ठिठुरते रिश्ते’, ‘मेरा तीर्थ’, ‘भूख से भरा पेट’, ‘हमारा भगवान मर गया’, ‘सर्वोपरि’, ‘औकात’, ‘डर’, ‘जो है सबसे जरुरी’ जैसी लघुकथाएं लंबे अंतराल तक जेहन में प्रभाव छोड़ती हैं।

पुस्तक : भूख से भरा पेट (लघुकथा संग्रह), लेखक : राम मूरत ‘राही’, प्रकाशक : अक्षरविन्यास, उज्जैन, मूल्य : 300 रुपये

दीपक गिरकर


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