जनवाणी ब्यूरो |
रुड़की: आईआईटी रुड़की के जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग और भारतीय जल संसाधन समिति (आईडबल्यूआरएस) द्वारा ‘एनहैंसमेंट ऑफ इरीगेशन वाटर यूज एफिशिएंसी फॉर फ्यूचर फ़ूड सिक्योरिटी’ विषय पर नेशनल वेबिनार आयोजित किया गया।
बतौर मुख्य अतिथि, जल शक्ति मंत्रालय (भारत सरकार) के जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार विभाग तथा पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के सचिव व भारतीय जल संसाधन समिति के अध्यक्ष यूपी सिंह ने वेबिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।
वेबिनार के तकनीकी सत्र में अंतरराष्ट्रीय सिंचाई एवं जल निकास आयोग(नई दिल्ली) के पूर्व महासचिव ईं. अविनाश चंद्र त्यागी, आईआईटी खड़गपुर से प्रो. के एन तिवारी, जल शक्ति मंत्रालय, जल संसाधन विभाग (नई दिल्ली) के कमिश्नर के. वोहरा, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से प्रो. पी. के सिंह, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस(बेंगलुरु) से प्रो. शेखर मुड्डु और हरियाणा से ई.दिनेश राठी समेत कई वक्ताओं ने अलग-अलग विषयों पर अपना वक्तव्य दिया।
इस अवसर पर सचिव यूपी सिंह ने कहा, ’यह बहुत ही प्रासंगिक विषय है। मैं मानता हूं हमारे देश में पानी और नदियों के बारे में हमारी समझ अच्छी नहीं है। इसलिए पानी की सिर्फ चिंता ही नहीं, पानी पर चर्चा भी बहुत जरूरी है। आज वॉटर रिसोर्स डेवेलपमेंट से ज्यादा वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट की आवश्यकता है।
पानी को लेकर आज 5-आर मॉड्यूल (रिड्यूस, रिसाइकिल, रीयूज, रिचार्ज और रिस्पेक्ट) को अपनाने की जरूरत है। प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना हमारी संस्कृति रही है लेकिन पिछले कुछ दशकों में पानी को लेकर हमारा रवैया उदासीनता का रहा है। पानी को लेकर फिलहाल देश में इमरजेंसी जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन हमें ग्राउंड वॉटर और वॉटर फुटप्रिंट जैसी जरूरी बातों को समझने की आवश्यकता है। कृषि में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके वॉटर एफिशिएंसी को बढ़ाने की जरूरत है।‘
उन्होंने ‘अटल भूजल योजना’ के शुभारंभके अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री द्वारा कहे शब्दों का जिक्र करते हुए कई उदाहरणों सेकिसानों से इस बात को समझने का आग्रह किया कि वास्तव में हमें अपनी फसलों को पानी देना है, न कि खेत को।
आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजित के चतुर्वेदी ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा,‘ तकनीकी का इस्तेमाल कर किसानों को सिंचाई में प्रयोग के लिए जल की उपयुक्त मात्रा की जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है. किसानों के फ़ोन से ली गई तस्वीरों, सैटेलाइट्स द्वारा मिटटी में नमी की मात्रा का आकलन, एवं सैटेलाइट इमेजरी से संकलित जानकारी पर विकसित कंप्यूटरों द्वारा शोध कर कृषि वैज्ञानिक और इंजिनियर किसानों को आसान भाषा में किसी ख़ास फ़सल की सिंचाई में प्रयोग के लिए जल की मात्रा एवं आवृत्ति की सूचना दे सकते हैं.
प्रो० चतुर्वेदी ने आगे कहा कि,‘यदि किसानों को यह सूचना सरल व स्थानीय भाषा में उनके मोबाइल फ़ोन पर एप के जरिए मिल जाए तो इससे न सिर्फ सिंचाई जल में अनावश्यक व्यय में बचत होगी बल्कि किसान को आर्थिक लाभ भी होगा। इसके लिए उन्होंने जल क्षेत्र में काम करने वाले इंजीनियर्स को इस तकनीक पर काम करने का सुझाव दिया।
वहीं,भारतीय जल संसाधन समिति के कार्यकारी उपाध्यक्ष एवं जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभागाध्यक्ष प्रो. एमएल कंसल ने कहा,‘पानी की सबसे ज्यादा खपत कृषि क्षेत्र में होती है। देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए कृषि उत्पादन को बढ़ाना हमारी प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है। इसलिए सिंचित क्षेत्र को बढ़ाने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में सिंचाई जल दक्षता में वृद्धि के लिए प्रभावशाली नीति की आज अत्यंत आवश्यकता है।‘
वेबिनार का संचालनकर रहे भारतीय जल संसाधन समिति के सचिव तथा डब्ल्यूआरडीएम विभाग में प्राध्यापक प्रो. आशीष पाण्डेय ने भारतीय जल संसाधन समिति के कार्य एवं इतिहास के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा किया।
नेशनल वेबिनार के तकनीकी सत्र की अध्यक्षता अंतरराष्ट्रीय सिंचाई एवं जल निकास आयोग(नई दिल्ली) के पूर्व महासचिव ईं. अविनाश चंद्र त्यागी, आईडब्ल्यूआरएस के पूर्व अध्यक्ष,राष्ट्रीय जल आयोग के पूर्व चेयरमैन तथा अंतरराष्ट्रीय सिंचाई एवं जल निकास आयोग(नई दिल्ली) के महासचिवएबी पांड्या और सह-अध्यक्षता राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की के निदेशक डॉ. जेवी त्यागी ने किया। वेबिनार केओपन सेशन में संबंधित विशेषज्ञों द्वारा प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। वेबिनार में भारतीय जल संसाधन समिति के सदस्यों सहित आईआईटी रुड़की एवं अन्य शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थी, प्राध्यापक, वैज्ञानिक एवं किसान जुड़े रहे।